क्या आप जानते हैं कन्या संक्रांति 2025 कब है? जानें सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश का शुभ मुहूर्त, व्रत-पूजन का महत्व और इस दिन किए जाने वाले धार्मिक कार्य।
कन्या संक्रांति उस दिन मनाई जाती है जब सूर्य सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में प्रवेश करता है। यह घटना भाद्रपद और आश्विन मास के संधिकाल में होती है। इस दिन दान, स्नान और भगवान विष्णु-गणेश की पूजा का विशेष महत्व है।
भाद्रपद मास में जब भगवान सूर्य 'सिंह राशि' से 'कन्या राशि' में गोचर करते हैं, तो उस संक्रांति को कन्या संक्रांति कहा जाता है। आपको बता दें कि कन्या संक्रांति पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में विशेष रूप से मनाई जाती है। इस संक्रांति के अवसर पर भगवान विष्णु, सूर्य देव और भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का विधान है।
2025 कन्या संक्रान्ति फलम्
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:11 ए एम से 04:58 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:34 ए एम से 05:45 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 01:55 पी एम से 02:44 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:00 पी एम से 06:23 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:00 पी एम से 07:10 पी एम |
अमृत काल | 12:06 ए एम, सितम्बर 18 से 01:43 ए एम, सितम्बर 18 |
निशिता मुहूर्त | 11:29 पी एम से 12:16 ए एम, सितम्बर 18 |
जब सूर्य अपनी गति बदलकर कन्या राशि में प्रवेश करता है, तब उस दिन को कन्या संक्रांति कहा जाता है। यह बारह संक्रांतियों में से एक है और इसे धार्मिक दृष्टि से अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य उपासना और दान-पुण्य करने की परंपरा है।
कन्या सक्रांति के अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना करने का भी विधान है, क्योंकि मान्यता है कि इसी दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विश्वकर्मा पूजा का ये पर्व उड़ीसा और बंगाल के साथ साथ देश के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। कहा जाता है कि देवों के महल और शस्त्र आदि का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा ही किया गया था। पौराणिक मान्यता ये है कि ब्रह्मा जी के आदेश पर ही भगवान विश्वकर्मा ने इस दुनिया की रचना की थी।
इस दिन कारखानों और कार्यालयों में भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापना करके विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में लोहे की चीज़ों, जैसे तराजू, गाड़ी, साइकिल आदि को साफ करके, उसे गंगा जल से स्नान कराकर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं, और भगवान विश्वकर्मा से सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। कहते हैं कि भगवान विश्वकर्मा की पूजा से कार्यक्षेत्र में तरक्की मिलती है।
शास्त्रों में संक्रांति के दिन धर्म-कर्म का विशेष महत्व माना गया है। इस बार भाद्रपद माह में पड़ने से कन्या संक्रांति को बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। आइये जानें इस दिन ज्यादा से ज्यादा पुण्य कमाने के लिए किस प्रकार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
कन्या संक्रांति के दिन स्नान, दान और पूजा करने से साधक को अनेक आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं—
पापों का क्षय – इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।
पितरों की तृप्ति – श्राद्ध और तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनका आशीर्वाद बना रहता है।
सूर्यदेव की कृपा – सूर्योपासना और अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
धन और समृद्धि – कन्या संक्रांति पर दान-पुण्य करने से घर में सुख-समृद्धि, वैभव और सौभाग्य का आगमन होता है।
आध्यात्मिक उन्नति – सूर्य मंत्रों का जप और पूजा करने से साधक की आत्मिक शक्ति बढ़ती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है।
इस पावन दिन पर कुछ नियम और सावधानियां अपनाने से पुण्यफल और अधिक मिलता है—
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