
क्या आप जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत 2026 कब है? जानिए इस पवित्र व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
शुक्रवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। यह दिन बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस व्रत से धन, सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख की प्राप्ति होती है।
शास्त्रों में शुक्र प्रदोष व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायी बताया गया है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली होता है। जो व्यक्ति सच्चे मन से शिव परिवार की आराधना करता है, उसे संतान और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। व्रत के दौरान शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनना या पढ़ना भी आवश्यक माना गया है।
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी 16 जनवरी 2026 (शुक्रवार)
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कृष्ण पक्ष त्रयोदशी 12 जून 2026 (शुक्रवार)
शुक्ल पक्ष त्रयोदशी 23 अक्टूबर 2026 (शुक्रवार)
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी – 6 नवंबर 2026 (शुक्रवार)
बहुत समय पहले एक नगर में तीन घनिष्ठ मित्र रहते थे, एक राजा का बेटा, दूसरा ब्राह्मण का पुत्र और तीसरा सेठ का बेटा। इनमें से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र का विवाह हो चुका था, जबकि सेठ-पुत्र का गौना अभी बाकी था।
एक दिन तीनों मित्र आपस में स्त्रियों के विषय में बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान ब्राह्मण-पुत्र ने कहा — “नारी के बिना घर भूतों का निवास जैसा होता है।” यह सुनकर सेठ-पुत्र ने तुरंत अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया।
वह घर जाकर अपने माता-पिता से बोला कि वह अपनी पत्नी को ससुराल से लाना चाहता है। माता-पिता ने समझाया कि इस समय शुक्र देव अस्त हैं, इसलिए बहू-बेटियों को विदा कराना अशुभ माना जाता है। लेकिन सेठ-पुत्र ने किसी की बात नहीं मानी और ससुराल चला गया।
ससुराल में सास-ससुर ने भी उसे रोकने की कोशिश की, परंतु वह नहीं माना और अपनी पत्नी को विदा कराकर ले चला। रास्ते में उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया, एक बैल घायल हो गया और पत्नी को भी चोट लगी। फिर भी वे आगे बढ़े तो डाकुओं ने उन पर हमला कर दिया और सारा धन लूट लिया।
किसी तरह दोनों रोते हुए घर पहुंचे। घर आते ही सांप ने सेठ-पुत्र को डस लिया। वैद्यों ने बताया कि वह तीन दिन में मर जाएगा। यह बात ब्राह्मण-पुत्र को पता चली, तो उसने सेठ से कहा कि अपने बेटे और बहू को वापस ससुराल भेज दो, क्योंकि यह सब शुक्रास्त काल में पत्नी को लाने के कारण हुआ है।
सेठ ने वैसा ही किया। जैसे ही उनका पुत्र और बहू ससुराल पहुंचे, सेठ-पुत्र की तबीयत सुधरने लगी और वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया। इसके बाद दोनों ने मिलकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया और मृत्यु के बाद स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।
1. व्रत की तैयारी:
2. संकल्प:
3. पूजा विधि:
4. व्रत कथा:
5. आरती और पारण:
निष्कर्ष: शुक्र प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसे भक्ति, श्रद्धा और संयम के साथ करने से व्यक्ति के जीवन में धन, सौभाग्य, वैवाहिक सुख और संतान सुख आता है। व्रत करते समय नियमों, सावधानियों और पूजा विधि का पालन करना बेहद आवश्यक है। सही समय पर पूजा, मंत्र जाप और कथा श्रवण से व्रत का प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
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