शनि प्रदोष व्रत कब है
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शनि प्रदोष व्रत कब है

क्या आप जानते हैं शनि प्रदोष व्रत 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, शुभ मुहूर्त और इस दिन भगवान शिव व शनि देव की कृपा प्राप्त करने के उपाय — सब कुछ एक ही जगह!

शनि प्रदोष व्रत के बारे में

शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और शनि देव को समर्पित होता है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। इस व्रत से शनि दोषों से मुक्ति, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शिवजी की आराधना विशेष फल देती है।

शनि प्रदोष व्रत

शनि प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है, जब वह दिन शनिवार को हो। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव को समर्पित है और शनि दोष से मुक्ति, सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके, शिवजी और शनिदेव की पूजा की जाती है और शाम को 'प्रदोष काल' में विशेष पूजा और दान का विधान है। शनि त्रयोदशी का ये पावन संयोग एक वर्ष में कुल तीन या चार बार आता है।

शनि प्रदोष व्रत 2026 में कब है

  • फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 14 फरवरी 2026, शनिवार को पड़ रही है।
  • इस प्रदोष व्रत पर शनिवार का संयोग बन रहा है, इस वार शनि प्रदोष व्रत कहा जायेगा।
  • त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ 14 फरवरी 2026, शनिवार, शाम 04 बजकर 01 मिनट से होगा।
  • त्रयोदशी तिथि का समापन 15 फरवरी 2026, रविवार को शाम 05 बजकर 04 मिनट पर होगा।
  • शनि प्रदोष काल पूजा का समय 14 फरवरी 2026, शनिवार को शाम 05 बजकर 51 मिनट से रात 08 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
  • जिसकी कुल अवधि 02 घंटे 32 मिनट्स रहेगी।

शनि प्रदोष व्रत का महत्व

शनि त्रयोदशी के दिन 'शिव पूजा' शाम के समय प्रदोष काल में करने का विधान है। मान्यता के अनुसार, शनि प्रदोष के दिन शंकर भगवान की विधि-विधान से पूजा करने से हर पाप से मुक्ति मिलती है और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो लोग संतानहीन हैं, उनको विशेष रूप से शनि प्रदोष व्रत करना चाहिए। भगवान शिव की कृपा से जातक को उत्तम संतान प्राप्त होती है। ये भी माना जाता है कि इस दिन शनि के प्रकोप से बचने के लिए यदि उनकी आराधना की जाए तो समस्त प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है, और शनिदेव की विशेष कृपा होती है। जो जातक जीवन में चल रहे शनि ग्रह के दुष्परिणामों से मुक्ति पाना चाहते हैं, उन्हें इस दिन विशेष रूप से पूजा- अर्चना कर शनिदेव को प्रसन्न करना चाहिए।

शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि

  • शनि प्रदोष व्रत विशेष रूप से शनिवार के दिन करना शुभ माना जाता है।
  • प्रदोष काल यानी सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले से लेकर सूर्यास्त के बाद 1.5 घंटे तक पूजा का समय उत्तम होता है।
  • व्रत के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • एकांत स्थान में बैठकर व्रत का संकल्प लें और मन में यह विचार करें कि आप शनि देव और भगवान शिव की आराधना करके जीवन में सुख, वैभव और सफलता प्राप्त करेंगे।

पूजा सामग्री

  • शुद्ध पीले या सफेद वस्त्र
  • बेलपत्र, धतूरा, सफेद फूल
  • जल, दूध, घी, चावल
  • दीपक और अगरबत्ती
  • शनि देव की मूर्ति या चित्र
  • भगवान शिव का लिंग या शिवलिंग

पूजा विधि

  • सबसे पहले घर को स्वच्छ करें और पूजा स्थल पर आसन बिछाएं।
  • शनि देव और शिवलिंग को स्थापित करें।
  • दीपक जलाएं और अगरबत्ती प्रज्वलित करें।
  • जल, दूध और घी से शिवलिंग का अभिषेक करें।
  • बेलपत्र और फूल अर्पित करें।
  • शनि देव की मूर्ति या चित्र पर तुलसी, सफेद फूल और हल्दी-अक्षत अर्पित करें।
  • शनि मंत्र का जप करें- “ॐ शं शनिश्चराय नमः”
  • कम से कम 108 बार जप करना उत्तम है।
  • भगवान शिव के लिए “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का पाठ करें।
  • अंत में शनि देव और शिव जी से जीवन में दुख निवारण, सफलता, समृद्धि और परिवार की भलाई की प्रार्थना करें।
  • श्रद्धा और नियम से किया गया शनि प्रदोष व्रत जीवन के कष्टों को दूर करता है।
  • व्रत करने से धन, स्वास्थ्य, सम्मान, यश और वैवाहिक सुख की प्राप्ति होती है।
  • विशेष रूप से शनि की अनुकूलता प्राप्त होती है और दोषों का नाश होता है।
  • व्रत के दिन दूध, दही, अनाज और हल्के भोजन का सेवन करें।
  • काले वस्त्र पहनना और काले तिल का दान करना भी शुभ माना जाता है।
  • व्रत एक दिन या लगातार कई शनि प्रदोष पर किया जा सकता है।

शनि प्रदोष व्रत के नियम

  • शनि प्रदोष व्रत विशेष रूप से शनिवार को मनाया जाता है।
  • प्रदोष काल (सूर्यास्त से लगभग 1.5 घंटे पहले से 1.5 घंटे बाद) में पूजा करना शुभ होता है।
  • व्रत वाले दिन स्नान अवश्य करें।
  • स्वच्छ वस्त्र धारण करें। विशेष रूप से काले या नीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
  • पूर्ण एक दिन का उपवास रखना उत्तम है।
  • अगर कठिन लगे तो फलों, दूध या हल्का भोजन लिया जा सकता है।
  • घर में पूजा स्थल स्वच्छ और व्यवस्थित रखें।
  • शिवलिंग और शनि देव की मूर्ति/चित्र स्थापित करें।
  • दीपक, अगरबत्ती और शुद्ध जल का प्रयोग करें।
  • शनि मंत्र: “ॐ शं शनिश्चराय नमः” का जप करें।
  • शिव मंत्र: “ॐ नमः शिवाय” का पाठ करें।
  • काले तिल, काले वस्त्र, चने या अन्य अनाज गरीबों या जरूरतमंदों को दान करें।
  • भक्ति भाव से पूजा करें और किसी से द्वेष या वैमनस्य न रखें।
  • व्रत के दौरान सकारात्मक विचार और संयमित आचरण रखें।
  • गुस्सा, झगड़ा या नकारात्मक क्रियाएं वर्जित हैं।
  • शनि प्रदोष व्रत पालन करने से जीवन में सुख, समृद्धि, सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।
  • शनि की अनुकूलता बढ़ती है और कष्ट, रोग और आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।

शनि प्रदोष व्रत के दिन क्या करें और क्या न करें

शनि प्रदोष व्रत के दिन क्या करें

  • व्रत वाले दिन स्नान अवश्य करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • घर में शिवलिंग और शनि देव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
  • दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
  • शनि मंत्र: “ॐ शं शनिश्चराय नमः” का जप करें।
  • शिव मंत्र: “ॐ नमः शिवाय” का पाठ करें।
  • काले तिल, चने, काले वस्त्र या अनाज गरीबों को दान करें।
  • माता-पिता, गुरुओं और जरूरतमंदों का सम्मान करें।
  • पूरे दिन का उपवास रखना उत्तम है।
  • कठिन लगे तो हल्का भोजन (फल, दूध, दही) लिया जा सकता है।
  • दिन भर सकारात्मक विचार, शांति और संयम रखें।
  • घर और वातावरण को स्वच्छ रखें।

शनि प्रदोष व्रत के दिन क्या न करें

  • झगड़ा, गुस्सा, बहस या किसी पर क्रोध न करें।
  • दूसरों के प्रति द्वेष या ईर्ष्या न रखें।
  • मांसाहार, शराब या नशीली वस्तुओं का सेवन वर्जित है।
  • अनियमित और अस्वच्छ भोजन से बचें।
  • व्रत के दिन आलस्य न करें, पूजा और भक्ति में समय दें।
  • अपमानजनक बातें न करें और किसी को नुकसान न पहुंचाएं।
  • पूजा स्थल को गंदा न करें।
  • शनि देव की मूर्ति या चित्र की अनादर न करें।

शनि प्रदोष व्रत के लाभ

  • व्रत करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले संकट, कष्ट और आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं।
  • शनि प्रदोष व्रत से धन, वैभव और आर्थिक स्थिरता बढ़ती है।
  • व्रत करने से समाज में सम्मान, प्रतिष्ठा और यश प्राप्त होता है।
  • शनि प्रदोष व्रत करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य ठीक रहता है और शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • जन्मकुंडली में शनि दोष होने पर इस व्रत का पालन करने से शनि के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं।
  • व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, मानसिक शांति और संतुलन आता है।
  • व्रत करने से घर में सुख, शांति और वैवाहिक जीवन में समृद्धि आती है।

शनि प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहा था। रोज़ी-रोटी का संकट इतना गहरा था कि उसकी पत्नी को अपने दोनों पुत्रों के साथ दर-दर भटकना पड़ता था। आखिरकार, एक दिन वे तीनों ऋषि शाण्डिल्य के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने उन्हें देखकर करुणा से पूछा, “हे देवी, तुम इतनी व्याकुल और पीड़ित क्यों हो?” ब्राह्मण की पत्नी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “हे मुनिवर, हमारा जीवन अत्यंत कठिनाई में बीत रहा है। हम गरीबी के कारण दुखी हैं। मेरा बड़ा पुत्र धर्म वास्तव में एक राजकुमार है, लेकिन दुर्भाग्यवश उसका राज्य उससे छिन गया। मेरा छोटा पुत्र शुचिव्रत अत्यंत विनम्र और धर्मनिष्ठ बालक है। कृपया हमें कोई उपाय बताइए जिससे हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आ सके।”

ऋषि शाण्डिल्य ने उनकी पीड़ा को समझते हुए कहा, “हे देवी, तुम शनि प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन करो। यह व्रत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। विशेष रूप से शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत अत्यधिक फलदायक होता है। इस व्रत को श्रद्धा, नियम और संयम से करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख, वैभव और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।” ब्राह्मण की पत्नी ने ऋषि के निर्देशानुसार व्रत आरंभ किया। थोड़े ही समय में उसका चमत्कार दिखाई देने लगा। एक दिन छोटा पुत्र शुचिव्रत खेलते-खेलते गांव के पास एक पुराने कुएं के पास पहुँचा। वहां उसे एक कलश मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति अचानक सुधर गई।

इसी बीच बड़े पुत्र धर्म की भेंट एक दिव्य सौंदर्य वाली कन्या से हुई। वह कन्या गंधर्व पिता विद्रविक की पुत्री अंशुमति थी। धर्म और अंशुमति एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए। अंशुमति ने धर्म से अपना परिचय दिया और बताया कि वह भी भगवान शिव की भक्त है और प्रदोष व्रत का पालन करती है।

कुछ ही समय बाद भगवान शिव ने गंधर्व पिता विद्रविक को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह धर्म से करें, क्योंकि वह एक योग्य, धर्मनिष्ठ और शिवभक्त युवक है। विद्रविक ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया और धूमधाम से अंशुमति का विवाह धर्म से करवा दिया। विवाह के बाद धर्म को उसका राजपाट पुनः प्राप्त हुआ और उसका जीवन सुख, समृद्धि और यश से भर गया।

इस प्रकार, शनि प्रदोष व्रत की महिमा ने एक निर्धन ब्राह्मण परिवार का भाग्य पूरी तरह बदल दिया। यह व्रत न केवल आर्थिक संकट दूर करता है, बल्कि जीवन में खोया हुआ यश, सम्मान, वैभव और वैवाहिक सुख भी प्रदान करता है।

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Published by Sri Mandir·December 23, 2025

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