
क्या आप जानते हैं शनि प्रदोष व्रत 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, शुभ मुहूर्त और इस दिन भगवान शिव व शनि देव की कृपा प्राप्त करने के उपाय — सब कुछ एक ही जगह!
शनि प्रदोष व्रत भगवान शिव और शनि देव को समर्पित होता है। यह व्रत त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। इस व्रत से शनि दोषों से मुक्ति, सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। शिवजी की आराधना विशेष फल देती है।
शनि प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है, जब वह दिन शनिवार को हो। यह व्रत भगवान शिव और शनिदेव को समर्पित है और शनि दोष से मुक्ति, सुख-समृद्धि और संतान प्राप्ति के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन सुबह स्नान करके, शिवजी और शनिदेव की पूजा की जाती है और शाम को 'प्रदोष काल' में विशेष पूजा और दान का विधान है। शनि त्रयोदशी का ये पावन संयोग एक वर्ष में कुल तीन या चार बार आता है।
शनि त्रयोदशी के दिन 'शिव पूजा' शाम के समय प्रदोष काल में करने का विधान है। मान्यता के अनुसार, शनि प्रदोष के दिन शंकर भगवान की विधि-विधान से पूजा करने से हर पाप से मुक्ति मिलती है और मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। जो लोग संतानहीन हैं, उनको विशेष रूप से शनि प्रदोष व्रत करना चाहिए। भगवान शिव की कृपा से जातक को उत्तम संतान प्राप्त होती है। ये भी माना जाता है कि इस दिन शनि के प्रकोप से बचने के लिए यदि उनकी आराधना की जाए तो समस्त प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिलती है, और शनिदेव की विशेष कृपा होती है। जो जातक जीवन में चल रहे शनि ग्रह के दुष्परिणामों से मुक्ति पाना चाहते हैं, उन्हें इस दिन विशेष रूप से पूजा- अर्चना कर शनिदेव को प्रसन्न करना चाहिए।
प्राचीन समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहा था। रोज़ी-रोटी का संकट इतना गहरा था कि उसकी पत्नी को अपने दोनों पुत्रों के साथ दर-दर भटकना पड़ता था। आखिरकार, एक दिन वे तीनों ऋषि शाण्डिल्य के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने उन्हें देखकर करुणा से पूछा, “हे देवी, तुम इतनी व्याकुल और पीड़ित क्यों हो?” ब्राह्मण की पत्नी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “हे मुनिवर, हमारा जीवन अत्यंत कठिनाई में बीत रहा है। हम गरीबी के कारण दुखी हैं। मेरा बड़ा पुत्र धर्म वास्तव में एक राजकुमार है, लेकिन दुर्भाग्यवश उसका राज्य उससे छिन गया। मेरा छोटा पुत्र शुचिव्रत अत्यंत विनम्र और धर्मनिष्ठ बालक है। कृपया हमें कोई उपाय बताइए जिससे हमारे जीवन में सुख और समृद्धि आ सके।”
ऋषि शाण्डिल्य ने उनकी पीड़ा को समझते हुए कहा, “हे देवी, तुम शनि प्रदोष व्रत का नियमपूर्वक पालन करो। यह व्रत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। विशेष रूप से शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत अत्यधिक फलदायक होता है। इस व्रत को श्रद्धा, नियम और संयम से करने पर सभी कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख, वैभव और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।” ब्राह्मण की पत्नी ने ऋषि के निर्देशानुसार व्रत आरंभ किया। थोड़े ही समय में उसका चमत्कार दिखाई देने लगा। एक दिन छोटा पुत्र शुचिव्रत खेलते-खेलते गांव के पास एक पुराने कुएं के पास पहुँचा। वहां उसे एक कलश मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। इससे परिवार की आर्थिक स्थिति अचानक सुधर गई।
इसी बीच बड़े पुत्र धर्म की भेंट एक दिव्य सौंदर्य वाली कन्या से हुई। वह कन्या गंधर्व पिता विद्रविक की पुत्री अंशुमति थी। धर्म और अंशुमति एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए। अंशुमति ने धर्म से अपना परिचय दिया और बताया कि वह भी भगवान शिव की भक्त है और प्रदोष व्रत का पालन करती है।
कुछ ही समय बाद भगवान शिव ने गंधर्व पिता विद्रविक को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह धर्म से करें, क्योंकि वह एक योग्य, धर्मनिष्ठ और शिवभक्त युवक है। विद्रविक ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया और धूमधाम से अंशुमति का विवाह धर्म से करवा दिया। विवाह के बाद धर्म को उसका राजपाट पुनः प्राप्त हुआ और उसका जीवन सुख, समृद्धि और यश से भर गया।
इस प्रकार, शनि प्रदोष व्रत की महिमा ने एक निर्धन ब्राह्मण परिवार का भाग्य पूरी तरह बदल दिया। यह व्रत न केवल आर्थिक संकट दूर करता है, बल्कि जीवन में खोया हुआ यश, सम्मान, वैभव और वैवाहिक सुख भी प्रदान करता है।
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