शुक्र प्रदोष व्रत कब है
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शुक्र प्रदोष व्रत कब है

क्या आप जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत 2026 कब है? जानिए इस पवित्र व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!

शुक्र प्रदोष व्रत के बारे में

शुक्रवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। इस व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। यह दिन बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस व्रत से धन, सौभाग्य और दांपत्य जीवन में सुख की प्राप्ति होती है।

शुक्र प्रदोष व्रत

शास्त्रों में शुक्र प्रदोष व्रत को अत्यंत शुभ और फलदायी बताया गया है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की श्रद्धापूर्वक पूजा की जाती है। माना जाता है कि यह व्रत संतान सुख की प्राप्ति के लिए विशेष रूप से प्रभावशाली होता है। जो व्यक्ति सच्चे मन से शिव परिवार की आराधना करता है, उसे संतान और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। व्रत के दौरान शुक्र प्रदोष व्रत की कथा सुनना या पढ़ना भी आवश्यक माना गया है।

शुक्र प्रदोष व्रत कब है?

शुक्र प्रदोष व्रत 2026 की तिथियाँ और समय

कृष्ण पक्ष त्रयोदशी 16 जनवरी 2026 (शुक्रवार)

  • व्रत आरंभ: 15 जनवरी 2026, रात्रि 8:16 बजे
  • व्रत समाप्त: 16 जनवरी 2026, रात्रि 10:21 बजे

शुक्ल पक्ष त्रयोदशी 30 जनवरी 2026 (शुक्रवार)

  • व्रत आरंभ: 30 जनवरी 2026, सुबह 11:09 बजे
  • व्रत समाप्त: 31 जनवरी 2026, सुबह 8:25 बजे

कृष्ण पक्ष त्रयोदशी 12 जून 2026 (शुक्रवार)

  • व्रत आरंभ: 12 जून 2026, शाम 7:36 बजे
  • व्रत समाप्त: 13 जून 2026, दोपहर 4:07 बजे

शुक्ल पक्ष त्रयोदशी 23 अक्टूबर 2026 (शुक्रवार)

  • व्रत आरंभ: 23 अक्टूबर 2026, दोपहर 2:35 बजे
  • व्रत समाप्त: 24 अक्टूबर 2026, दोपहर 1:36 बजे

कृष्ण पक्ष त्रयोदशी – 6 नवंबर 2026 (शुक्रवार)

  • व्रत आरंभ: 6 नवंबर 2026, सुबह 10:30 बजे
  • व्रत समाप्त: 7 नवंबर 2026, सुबह 10:47 बजे

पौराणिक कथा और महत्व

बहुत समय पहले एक नगर में तीन घनिष्ठ मित्र रहते थे, एक राजा का बेटा, दूसरा ब्राह्मण का पुत्र और तीसरा सेठ का बेटा। इनमें से राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र का विवाह हो चुका था, जबकि सेठ-पुत्र का गौना अभी बाकी था।

एक दिन तीनों मित्र आपस में स्त्रियों के विषय में बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान ब्राह्मण-पुत्र ने कहा — “नारी के बिना घर भूतों का निवास जैसा होता है।” यह सुनकर सेठ-पुत्र ने तुरंत अपनी पत्नी को लाने का निश्चय कर लिया।

वह घर जाकर अपने माता-पिता से बोला कि वह अपनी पत्नी को ससुराल से लाना चाहता है। माता-पिता ने समझाया कि इस समय शुक्र देव अस्त हैं, इसलिए बहू-बेटियों को विदा कराना अशुभ माना जाता है। लेकिन सेठ-पुत्र ने किसी की बात नहीं मानी और ससुराल चला गया।

ससुराल में सास-ससुर ने भी उसे रोकने की कोशिश की, परंतु वह नहीं माना और अपनी पत्नी को विदा कराकर ले चला। रास्ते में उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया, एक बैल घायल हो गया और पत्नी को भी चोट लगी। फिर भी वे आगे बढ़े तो डाकुओं ने उन पर हमला कर दिया और सारा धन लूट लिया।

किसी तरह दोनों रोते हुए घर पहुंचे। घर आते ही सांप ने सेठ-पुत्र को डस लिया। वैद्यों ने बताया कि वह तीन दिन में मर जाएगा। यह बात ब्राह्मण-पुत्र को पता चली, तो उसने सेठ से कहा कि अपने बेटे और बहू को वापस ससुराल भेज दो, क्योंकि यह सब शुक्रास्त काल में पत्नी को लाने के कारण हुआ है।

सेठ ने वैसा ही किया। जैसे ही उनका पुत्र और बहू ससुराल पहुंचे, सेठ-पुत्र की तबीयत सुधरने लगी और वह पूरी तरह स्वस्थ हो गया। इसके बाद दोनों ने मिलकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत किया और मृत्यु के बाद स्वर्गलोक को प्राप्त हुए।

महत्व

  • शुक्र प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा पाने का शुभ अवसर माना जाता है।
  • इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में धन, सौभाग्य और वैवाहिक सुख की वृद्धि होती है।
  • संतान की इच्छा रखने वाले दंपत्तियों के लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना गया है।
  • इस व्रत से शुक्र ग्रह से जुड़ी नकारात्मकता दूर होती है, जिससे प्रेम, आकर्षण और समृद्धि का संचार होता है।
  • भक्ति और निष्ठा से व्रत करने पर भगवान शिव पापों का नाश कर भक्त की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।
  • यह व्रत दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य और परिवार में शांति स्थापित करता है।

व्रत और पूजा विधि

1. व्रत की तैयारी:

  • शुक्रवार की सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें। घर के मंदिर को साफ करें और भगवान शिव व माता पार्वती की मूर्ति या चित्र को सजाकर स्थापित करें।

2. संकल्प:

  • दीपक जलाकर भगवान शिव के सामने व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन श्रद्धा और संयम के साथ उपवास रखेंगे तथा प्रदोष काल में पूजा करेंगे।

3. पूजा विधि:

  • सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में भगवान शिव का अभिषेक करें।
  • शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाएं।
  • माता पार्वती को लाल फूल, सुगंधित इत्र और मिठाई का भोग लगाएं।
  • धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित कर “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जप करें।

4. व्रत कथा:

  • पूजा के बाद शुक्र प्रदोष व्रत की कथा अवश्य पढ़ें या सुनें। ऐसा करने से पूजा का फल कई गुना बढ़ जाता है और भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

5. आरती और पारण:

  • पूजा पूरी होने पर भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। उसके बाद प्रसाद बांटें। रात्रि में फलाहार करें या अगले दिन प्रातः व्रत का पारण करें।

नियम, सावधानियाँ और सुझाव

1. व्रत के नियम

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और शरीर व मन को शुद्ध रखें।
  • व्रत के दौरान क्रोध, विवाद और नकारात्मक विचारों से बचें।
  • दिनभर फलाहार या केवल जल ग्रहण करें।
  • सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें।
  • शिवलिंग पर बेलपत्र, जल, दूध और पुष्प अर्पित करें और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

2. सावधानियाँ

  • व्रत के दिन मांसाहार, शराब और भारी भोजन से बचें।
  • किसी को दुख पहुँचाने वाले शब्द या व्यवहार से दूर रहें।
  • पूजा करते समय मन को एकाग्र रखें और केवल भगवान शिव का ध्यान करें।
  • झूठ बोलना या दिखावा करना व्रत के लिए अशुभ माना जाता है।

3. सुझाव

  • व्रत शुरू करने से पहले सही प्रदोष काल की जानकारी अवश्य लें।
  • पूजा में हल्के या सफेद रंग के वस्त्र पहनें, यह शुभ माना जाता है।
  • परिवार के साथ मिलकर आरती करें, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है।
  • व्रत कथा पढ़ें या सुनें, इससे व्रत का फल बढ़ता है।
  • व्रत समाप्ति पर जरूरतमंदों को भोजन या वस्त्र दान करना पुण्यदायक होता है।

निष्कर्ष: शुक्र प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इसे भक्ति, श्रद्धा और संयम के साथ करने से व्यक्ति के जीवन में धन, सौभाग्य, वैवाहिक सुख और संतान सुख आता है। व्रत करते समय नियमों, सावधानियों और पूजा विधि का पालन करना बेहद आवश्यक है। सही समय पर पूजा, मंत्र जाप और कथा श्रवण से व्रत का प्रभाव और भी बढ़ जाता है।

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Published by Sri Mandir·November 13, 2025

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