
क्या आप जानते हैं शनि त्रयोदशी 2026 कब है? यहां जानें तिथि, पूजा-विधि, व्रत नियम, शुभ मुहूर्त और इस दिन भगवान शनि की कृपा प्राप्त करने के उपाय, सब कुछ एक ही जगह!
शनि त्रयोदशी हिन्दू पंचांग का एक विशेष दिन है, जब महीने की 13वीं तिथि यानी त्रयोदशी और शनिवार का मेल होता है। त्रयोदशी महीने में दो बार आती है, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष और शनिवार शनि ग्रह का दिन होता है। शनि देव को न्याय और कर्म का दाता माना जाता है, जो जीवन में कठिनाइयाँ और बाधाएँ लाता है। इसलिए शनि त्रयोदशी को शनि दोष से मुक्ति और परेशानियों को कम करने के लिए बहुत शुभ दिन माना जाता है।
शनि त्रयोदशी, जिसे शनि प्रदोष भी कहा जाता है, वह दिन है जब महीने की त्रयोदशी तिथि शनिवार के साथ मेल खाती है। इस अवसर पर भगवान शिव, देवी पार्वती और शनिदेव की विधिपूर्वक पूजा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और शनि दोष के प्रभाव को कम किया जा सकता है। शनि त्रयोदशी का व्रत रखने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
शनि त्रयोदशी 2026 इस वर्ष दो बार आएगी। पहली शनि त्रयोदशी 14 फरवरी 2026 को फाल्गुन कृष्ण पक्ष में पड़ रही है, जबकि दूसरी शनि त्रयोदशी 28 फरवरी 2026 को फाल्गुन शुक्ल पक्ष में है। दोनों ही दिन शनिवार हैं, जो शनि देव के लिए विशेष रूप से शुभ माने जाते हैं।
शनि त्रयोदशी हिन्दू पंचांग में एक विशेष और अत्यंत शुभ दिन माना जाता है। यह वह अवसर है जब महीने की त्रयोदशी तिथि शनिवार के साथ मेल खाती है। इस दिन का पालन करने से शनि दोष के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं और व्यक्ति के जीवन में कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं।
शनि ग्रह को न्याय और कर्म का प्रतीक माना जाता है। यदि किसी की कुंडली में शनि दोष हो, तो इससे जीवन में कठिनाइयाँ, मानसिक तनाव, रोग और बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं। शनि त्रयोदशी के दिन व्रत, पूजा और मंत्र जाप करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और शनि दोष के दुष्प्रभाव कम होते हैं। यह उपाय व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक स्थिरता भी प्रदान करता है।
इस दिन किए गए व्रत, पूजा और दान से जीवन में शांति, खुशहाली और आर्थिक समृद्धि आती है। धार्मिक और निस्वार्थ कर्म करने से परिवार और जीवन में सौहार्द बढ़ता है और दीर्घकालिक लाभ की प्राप्ति होती है।
शनि देव न्याय और कर्म के देवता माने जाते हैं। इस दिन किए गए अच्छे कर्म और धार्मिक कार्य जल्दी और सकारात्मक परिणाम देते हैं। शनि त्रयोदशी व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति सचेत और जिम्मेदार बनाती है।
शनि देव की पूजा से मानसिक संतुलन, धैर्य और अनुशासन बढ़ता है। जीवन की कठिनाइयों और तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना आसानी से किया जा सकता है। इस दिन की गई पूजा से व्यक्ति में मानसिक स्थिरता और आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
शनि त्रयोदशी का व्रत विशेष रूप से शनिवार के दिन रखा जाता है। यह व्रत शनि दोष को शांत करने, जीवन में समृद्धि लाने और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है।
शनि त्रयोदशी, जिसे शनि प्रदोष भी कहते हैं, का पालन विशेष नियमों के अनुसार करना चाहिए। इन नियमों का पालन करने से व्रत का प्रभाव अधिक होता है और शनि दोष कम होता है।
शनि त्रयोदशी का व्रत शनि दोष को शांत करने और जीवन में सुख-शांति व समृद्धि लाने के लिए रखा जाता है। इसे सफलतापूर्वक पालन करने के लिए कुछ नियमों का ध्यान रखना आवश्यक है।
स्नान और स्वच्छता:
पूजा और अर्चना:
दान-पुण्य:
अच्छे कर्म और अनुशासन:
अनैतिक और अशुभ कर्म:
क्रोध और झूठ:
सफाई की अनदेखी:
भौतिक सुखों में अति:
शनि त्रयोदशी का व्रत शनिवार के दिन विशेष रूप से किया जाता है। इसे रखने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में कई प्रकार के सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं।
शनि दोष से राहत
जीवन में सुख-समृद्धि
यश और सम्मान
धैर्य और मानसिक स्थिरता
जीवन में सकारात्मक परिवर्तन
निष्कर्ष: शनि त्रयोदशी, जिसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण धार्मिक व्रत है जो जीवन में सकारात्मक बदलाव और शुभ फल लाने के लिए किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से शनिवार को रखा जाता है और इसमें शनि देव, भगवान शिव तथा देवी पार्वती की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है।
शनि त्रयोदशी या शनि प्रदोष का व्रत हिन्दू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा और व्रत बहुत समय पहले की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण परिवार बहुत कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन कर रहा था। गरीबी इतनी गहरी थी कि ब्राह्मण की पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ रोज़ी-रोटी के लिए दर-दर भटकती रहती थी। अंततः एक दिन वे सभी ऋषि शाण्डिल्य के आश्रम पहुँचे। ऋषि ने उन्हें देखकर करुणा व्यक्त की और पूछा, “हे माता, तुम इतनी व्याकुल क्यों हो?”
ब्राह्मण की पत्नी ने हाथ जोड़कर कहा, “हे मुनि, हमारा जीवन अत्यंत कठिनाइयों से भरा है। हम दीन-दुखी हैं और सुख-समृद्धि से दूर हैं। मेरे बड़े पुत्र का नाम धर्म है। वह वास्तव में राजकुमार है, लेकिन दुर्भाग्यवश उसके पिता का राज्य खो गया और अब वह मेरे पास है। मेरा छोटा पुत्र शुचिव्रत बहुत ही धर्मनिष्ठ और विनम्र है। कृपया हमें कोई उपाय बताइए जिससे हमारे जीवन में खुशहाली लौट सके।” ऋषि शाण्डिल्य ने उनकी बात सुनकर कहा, “हे देवी, शनि प्रदोष व्रत का पालन श्रद्धा और नियम से करो। यह व्रत भगवान शिव को अति प्रिय है और शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष व्रत विशेष रूप से फलदायक होता है। इसे ईमानदारी और संयम के साथ करने से सभी कठिनाइयाँ दूर होती हैं और जीवन में सुख, समृद्धि और प्रतिष्ठा आती है।”
ब्राह्मण की पत्नी ने ऋषि की बातों का पालन किया और व्रत आरंभ किया। कुछ ही समय में इसका प्रभाव दिखाई देने लगा। एक दिन छोटा पुत्र शुचिव्रत खेलते-खेलते गांव के पास एक पुराने कुएं के पास पहुँचा। वहां उसे एक कलश मिला, जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था। इस घटना ने परिवार की आर्थिक स्थिति पूरी तरह बदल दी।
इसी दौरान बड़े पुत्र धर्म की भेंट अंशुमति नामक एक दिव्य सौंदर्य वाली कन्या से हुई। अंशुमति एक गंधर्व की पुत्री थी और अपने पिता विद्रविक के साथ रहती थी। धर्म और अंशुमति एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गए। अंशुमति ने धर्म को बताया कि वह भी शिवभक्त है और प्रदोष व्रत का पालन करती है।
कुछ ही समय बाद भगवान शिव ने गंधर्व पिता विद्रविक को स्वप्न में आदेश दिया कि वे अपनी पुत्री का विवाह धर्म से करें। विद्रविक ने प्रभु की आज्ञा का पालन किया और बड़े धूमधाम से विवाह सम्पन्न हुआ। विवाह के बाद धर्म को उसका राजपाट वापस मिला और उसका जीवन खुशियों, वैभव और यश से भर गया।
इस प्रकार शनि प्रदोष व्रत ने एक निर्धन ब्राह्मण परिवार का भाग्य पूरी तरह बदल दिया। यह व्रत न केवल आर्थिक कठिनाइयों को दूर करता है, बल्कि जीवन में सम्मान, वैभव, सुख और वैवाहिक खुशियाँ भी प्रदान करता है।
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