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कर्क संक्रांति 2025

जानिए कर्क संक्रांति 2025 के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और जीवन में आने वाले बदलावों की गहराई से जानकारी

कर्क संक्रांति के बारे में

कर्क संक्रांति उस समय को कहते हैं जब सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करता है। यह घटना वर्षा ऋतु की शुरुआत का संकेत देती है। इस दिन स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व होता है। धार्मिक दृष्टि से यह अत्यंत शुभ दिन माना जाता है।

कर्क संक्रांति 2025

सूर्य हर मास एक राशि से दूसरी राशि में गोचर होते हैं। इस प्रकार सूर्य की राशि के परिवर्तन तिथि को संक्रांति कहा जाता है। एक साल में कुल बारह संक्रांति होती हैं, इस प्रकार कर्क संक्रांति भी इन्हीं में से एक है। कर्क संक्रांति को सूर्य उत्तरायण काल से दक्षिणायण काल में आते हैं, और मकर संक्रांति तक इसी काल में रहते है। दक्षिणायन के समय रातें लंबी होने लगती हैं और दिन छोटे होने शुरू हो जाते हैं।

2025 में कब है कर्क संक्रांति? कर्क संक्रान्ति फलम् व तिथि

  • कर्क संक्रांति- 16 जुलाई 2025, बुधवार (श्रावण, कृष्ण अमावस्या)
  • कर्क संक्रान्ति पुण्य काल - 05:40 ए एम से 05:40 पी एम
  • अवधि - 12 घण्टे 00 मिनट्स
  • कर्क संक्रान्ति महा पुण्य काल - 03:24 पी एम से 05:40 पी एम
  • अवधि - 02 घण्टे 16 मिनट्स
  • कर्क संक्रान्ति का क्षण - 05:40 पी एम

कर्क संक्रांति का शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

03:54 ए एम से 04:36 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:15 ए एम से 05:17 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

कोई नहीं

विजय मुहूर्त

02:20 पी एम से 03:14 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:49 पी एम से 07:10 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:51 पी एम से 07:53 पी एम तक

अमृत काल

12:13 ए एम, जुलाई 17 से 01:46 ए एम, 17 जुलाई तक

निशिता मुहूर्त

11:43 पी एम से 12:25 ए एम, 17 जुलाई तक

रवि योग

05:46 ए एम से 04:50 ए एम, 17 जुलाई तक

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कर्क संक्रांति के दिन भगवान सूर्य के साथ ही सभी देवता गण शयन अवस्था में चले जाते हैं। सभी देवताओं व भगवान विष्णु के निंद्रा में लीन होने के कारण भगवान शंकर सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं

क्या है कर्क संक्रांति?

कर्क संक्रांति वह दिन होता है जब सूर्य देवता का गोचर मिथुन राशि से निकलकर कर्क राशि में प्रवेश करता है। यह घटना हर वर्ष लगभग 16 या 17 जुलाई को होती है। यह दिन आषाढ़ मास की समाप्ति और वर्षा ऋतु की शुरुआत का संकेतक माना जाता है।

जैसे मकर संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर जाने का संकेत देती है, वैसे ही कर्क संक्रांति सूर्य के उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर गमन का आरंभ मानी जाती है। यह दिन वैदिक पंचांग के अनुसार अत्यंत महत्वपूर्ण है।

कर्क संक्रांति क्यों मनाई जाती है?

  • यह संक्रांति सूर्य के दक्षिणायन होने का प्रतीक है। इस दिन से दिन छोटे और रातें लंबी होनी शुरू हो जाती हैं।
  • यह दिन देवताओं के विश्राम का आरंभ माना जाता है, क्योंकि दक्षिणायन काल को ‘देव शयन’ की अवधि कहा जाता है।
  • कर्क संक्रांति से पितृ कार्यों, श्राद्धों, और तर्पण आदि का काल धीरे-धीरे शुरू होता है, क्योंकि दक्षिणायन को पितरों का समय कहा गया है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन को वर्षा ऋतु का स्वागत करने वाले पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
  • कई स्थानों पर यह दिन दान-पुण्य, गंगा स्नान और सूर्य पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

कर्क संक्रांति का महत्व

  • धार्मिक दृष्टिकोण से: यह संक्रांति सूर्य की गति से जुड़ी हुई है और इसका सीधा संबंध ऋतुओं और मौसम से होता है। यह दिन पवित्र नदियों में स्नान, व्रत, दान और जप के लिए अत्यंत पुण्यकारी होता है।
  • आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से: कर्क संक्रांति के बाद का समय शरीर के लिए संवेदनशील माना जाता है। इसलिए संयमित दिनचर्या अपनाने और प्राकृतिक चिकित्सा की ओर लौटने की परंपरा रही है।
  • ज्योतिषीय दृष्टिकोण से: सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश राशिचक्र के आधे चक्र की पूर्णता दर्शाता है। यह समय चंद्र प्रधान ऊर्जा के प्रभाव में आता है, जिससे मन व भावना का महत्व बढ़ जाता है।
  • सांस्कृतिक दृष्टिकोण से: भारत के कई राज्यों में इस दिन को खास लोक पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। विशेषकर खेती-किसानी से जुड़े समाजों में वर्षा की शुरुआत का यह दिन अत्यंत हर्षोल्लास से स्वागत किया जाता है।

कर्क संक्रांति की पूजा कैसे करें?

कर्क संक्रांति पर सूर्य देव और भगवान विष्णु की पूजा करने का विशेष महत्व है। इस दिन की जाने वाली पूजा अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है, इसलिए आज हम सभी भक्तजनों के लिए कर्क संक्रांति की पूजा विधि लेकर प्रस्तुत हुए हैं। चलिए जानते हैं इस दिन किस प्रकार पूजा-पाठ करके आप भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं।

कर्क संक्रांति के दिन प्रातःकाल उठकर, स्नान तथा नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है। अगर ऐसा संभव न हो तो आप घर के ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाकर स्नान कर लें। फिर इसके पश्चात् स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

इसके अलावा इस दिन सूर्यदेव की पूजा अर्चना करने का भी विशेष महत्व है, इसलिए तांबे के कलश में जल भरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें और सूर्य मंत्र का जाप करें। फिर सूर्य देव को प्रणाम करने के बाद उनका आशीष मांगे।

इसके बाद घर के मंदिर में गंगाजल का छिड़काव करें। फिर दीप प्रज्वलित करें। अब सूर्य भगवान की प्रतिमा पर कुमकुम, धूप, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करें। अंत में उनकी आरती उतारें। इस दिन भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना भी शुभ माना गया है। इसलिए उन्हें तुलसी दल चढ़ाएं।

इस प्रकार पूजा-अर्चना करने से आप पर भगवान विष्णु और सूर्य देव की कृपा हमेशा बनी रहेगी। इस दिन को धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण माना गया है, अगर आप इसके महत्व को विस्तार से जानना चाहते हैं तो श्रीमंदिर ऐप पर उपलब्ध इससे संबंधित वीडियो अवश्य देखें। इसी के साथ मैं अब आपसे लेती हूँ विदा। धन्यवाद!

कर्क संक्रांति के अनुष्ठान

कर्क संक्रांति पर किए जाने वाले अनुष्ठान न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करते हैं। इस दिन मुख्य रूप से ये अनुष्ठान किए जाते हैं:

  • पवित्र नदियों में स्नान: गंगा, यमुना, गोदावरी, या किसी भी तीर्थ स्थान में स्नान करना विशेष पुण्यदायक माना गया है।
  • सूर्य देवता को अर्घ्य देना: तांबे के पात्र में जल, लाल पुष्प, अक्षत, और कुश डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए।
  • दान-पुण्य करना: गुड़, तिल, अमावस्या का अन्न, जल, वस्त्र, छाता, फल, और पंखा आदि का दान करने का विशेष महत्व होता है।
  • पितृ तर्पण: दक्षिणायन का प्रारंभ होने के कारण पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध प्रारंभ किए जाते हैं।
  • गाय, ब्राह्मण और गरीबों को भोजन कराना: यह पुण्य फल को कई गुना बढ़ाता है।

कर्क संक्रांति पर क्या खाना चाहिए?

कर्क संक्रांति पर सात्विक और शुद्ध भोजन करने का विधान है। कुछ विशेष रूप से खाए जाने वाले भोजन हैं:

  • तिल और गुड़ से बने व्यंजन – जैसे तिल के लड्डू, तिल-गुड़ की चक्की।
  • कच्चे आम, सत्तू, खीरा, दही – शरीर को ठंडक देने वाले पदार्थ।
  • खिचड़ी – विशेष रूप से कुछ क्षेत्रों में यह पर्व खिचड़ी के रूप में भी जाना जाता है।
  • फलाहार – जो व्रत रखते हैं वे फल, दूध, और सूखे मेवे ग्रहण कर सकते हैं।

कर्क संक्रांति के लाभ

  • पुण्य की प्राप्ति: इस दिन किया गया एक भी सत्कर्म सौ गुना फल देता है।
  • पितृ दोष की शांति: तर्पण व दान से पितरों को तृप्ति मिलती है।
  • आध्यात्मिक उन्नति: सूर्य उपासना व ध्यान से चित्त शुद्ध होता है।
  • रोगों से मुक्ति: स्नान, उपवास और सात्विक आहार से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है।
  • परिवारिक समृद्धि: दान और सेवा से गृहस्थ जीवन में सुख और शांति आती है।

कर्क संक्रांति पर क्या करें?

  • सूर्योदय से पहले स्नान करें और ताजे वस्त्र धारण करें।
  • सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें और ‘ॐ घृणिः सूर्याय नमः’ का जाप करें।
  • गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, जल, और तिल का दान करें।
  • किसी भी प्रकार का व्रत अथवा उपवास करने का संकल्प लें।
  • गौमाता को चारा, रोटी या गुड़ खिलाएं।
  • देवताओं की पूजा करें, विशेषकर सूर्य, विष्णु और पितरों की।

कर्क संक्रांति पर क्या न करें?

  • दिन में सोना वर्जित है, इससे आलस्य और मानसिक जड़ता आती है।
  • मांस-मदिरा और तामसिक भोजन का पूर्णतः त्याग करें।
  • किसी से कटु वचन, झगड़ा या अपशब्दों का प्रयोग न करें।
  • नाखून काटना, बाल कटवाना, शेविंग कराना जैसे कार्य भी शुभ नहीं माने जाते।
  • धन या अन्न का अपव्यय न करें, जितना संभव हो, उतना दान-पुण्य करें।

भक्तों, ये थी कर्क संक्रांति के से जुड़ी पूरी जानकारी। कर्क संक्रांति न केवल एक ज्योतिषीय घटना है, बल्कि यह आत्मचिंतन, संयम, सेवा और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का भी अवसर है। इस दिन के सत्कर्म हमारे जीवन में उजाला भर सकते हैं। हमारी कामना है कि आपको इस पर्व का संपूर्ण फल प्राप्त हो, और भगवान सूर्य की कृपा से जीवन में सुख सम्पन्नता बनी रहे। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।

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Published by Sri Mandir·July 2, 2025

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