जानें 2025 के महालक्ष्मी व्रत की तिथि, महत्व, व्रत की कथा और मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने की विधि, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और धन की वृद्धि हो।
महालक्ष्मी व्रत आरम्भ धन-समृद्धि और खुशहाली के लिए किया जाता है। इस व्रत की शुरुआत उज्ज्वल वातावरण में, सुबह के समय, घर की पूजा स्थल पर लक्ष्मी माता की स्थापना और मंत्रोच्चारण से होती है। यह व्रत सौभाग्य बढ़ाता है।
धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भाद्रपद मास में 16 दिन के महालक्ष्मी व्रत का अनुष्ठान किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत का आरंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होता है, और ये व्रत अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर समाप्त होता है। मान्यता है इस व्रत में मां लक्ष्मी की उपासना करने से धन, ऐश्वर्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
महालक्ष्मी व्रत साल 2025 में 31 अगस्त 2025, रविवार से आरंभ होगा
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:08 ए एम से 04:53 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:30 ए एम से 05:38 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:33 ए एम से 12:23 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:05 पी एम से 02:55 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:18 पी एम से 06:41 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:18 पी एम से 07:26 पी एम तक |
अमृत काल | 05:49 ए एम से 07:37 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:36 पी एम से 12:21 ए एम, सितम्बर 01 तक |
महालक्ष्मी व्रत माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारम्भ होता है और अगले 16 दिनों तक चलता है। इस व्रत का समापन आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होता है। तिथियों के घटने-बढ़ने के आधार पर, उपवास की अवधि पन्द्रह दिन या सत्रह भी हो सकती है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार महालक्ष्मी व्रत के अनुष्ठान से दुख, दरिद्रता का नाश होता है। कहा जाता है कि इस व्रत के प्रताप से खोया हुआ धन, राज-पाट, संपत्ति व सम्मान पुन: प्राप्त होता है। इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार जब पांडव चौपड़ में अपना सब कुछ हार गये थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें महालक्ष्मी व्रत का अनुष्ठान करने के लिए कहा था।
धन प्राप्ति और सुखी समृद्ध जीवन के लिए रखा जाने वाला महालक्ष्मी व्रत स्त्रियों के साथ-साथ पुरुष भी रख सकते हैं। वैसे ये व्रत 16 दिनों का होता है, लेकिन यदि आपके लिए सोलह दिनों तक व्रत रखना संभव न हो, तो पहले, आठवें और अंतिम दिन उपवास रखकर भी महालक्ष्मी जी कृपा प्राप्त की जा सकती है। हालांकि माता की पूजा-अर्चना इस पर्व के 16 दिनों तक नियमित रूप से करते रहें।
हालाँकि यह व्रत परंपरागत रूप से 16 दिनों तक किया जाता है, लेकिन समय या परिस्थिति के अनुसार कम दिनों में भी इसे श्रद्धा और विधिपूर्वक किया जा सकता है। कुछ प्रमुख विकल्प इस प्रकार हैं:
एक दिन का संकल्प: यदि आप पूरा व्रत नहीं कर सकते तो केवल एक दिन — विशेषतः प्रारंभिक अष्टमी या अंतिम अष्टमी तिथि — को महालक्ष्मी व्रत का संकल्प लेकर उपवास करें और विधिवत पूजन करें। चार दिन का व्रत: कुछ श्रद्धालु केवल पहले चार दिनों तक व्रत रखते हैं, जिसमें विशेष पूजा और व्रत कथा श्रवण करते हैं। यह भी मान्य माना जाता है। हर शुक्रवार व्रत: महालक्ष्मी की कृपा के लिए भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से आरंभ कर अगले चार शुक्रवार तक उपवास और पूजन किया जाता है। सप्ताहांत व्रत: जिनके पास प्रतिदिन पूजन का समय नहीं होता, वे व्रत की अवधि में केवल शनिवार या रविवार को विशेष पूजन करके पुण्यफल प्राप्त कर सकते हैं। वैकल्पिक दिनों में पूजन: आप एक दिन छोड़कर, जैसे पहले, तीसरे, पाँचवे, सातवें, और सोलहवें दिन विशेष पूजा कर सकते हैं। इससे भी देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
चाहे जितने भी दिन व्रत करें, श्रद्धा, आस्था और शुद्धता सबसे महत्वपूर्ण हैं। देवी लक्ष्मी भावना से प्रसन्न होती हैं, केवल विधि-विधान से नहीं।
महालक्ष्मी व्रत की पूजा में श्रद्धा और विधि के साथ साथ समुचित पूजन सामग्री का होना भी आवश्यक होता है। नीचे प्रमुख सामग्री सूचीबद्ध है जो महालक्ष्मी व्रत पूजन में प्रयोग की जाती है:
महालक्ष्मी व्रत के पालन से अनेक लौकिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। इसके प्रमुख लाभ हैं:
इस व्रत में कुछ विशेष उपाय भी बताए गए हैं, जो श्रद्धा से करने पर शीघ्र फलदायी होते हैं:
महालक्ष्मी व्रत का समापन कोजागरी पूर्णिमा (या शरद पूर्णिमा) के पास आने वाली आश्विन कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। व्रत की अवधि भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर 15 या 16 दिन चलती है, और यह अवधि कोजागरी के निकट आती है।
कोजागरी पूर्णिमा को भी महालक्ष्मी की विशेष रात्रि माना जाता है, क्योंकि यह वह रात होती है जब देवी लक्ष्मी भ्रमण पर निकलती हैं और देखती हैं..."को जागर्ति?" अर्थात "कौन जाग रहा है?" जो जागता मिलता है, देवी उसे धन और समृद्धि का वरदान देती हैं।
इसलिए महालक्ष्मी व्रत और कोजागरी पूर्णिमा का संबंध धन, सौभाग्य और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति से जुड़ा है। व्रत रखने वाला व्यक्ति यदि कोजागरी की रात भी जागरण, जप और ध्यान करता है, तो यह व्रत पूर्णता और फल की सिद्धि की ओर ले जाता है।
तो यह थी महालक्ष्मी व्रत के शुभ मुहूर्त व महत्व से जुड़ी जानकारी, हमारी कामना है कि आपका ये व्रत सफल हो, और माता महालक्ष्मी आपकी मनोकामना शीघ्र पूर्ण करें। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर
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