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महालक्ष्मी व्रत समापन 2025

क्या आप जानते हैं महालक्ष्मी व्रत समापन 2025 कब है? मां लक्ष्मी की कृपा, घर में सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति के लिए रखा जाने वाला यह व्रत क्यों है खास, जानें शुभ मुहूर्त व पूजा विधि।

महालक्ष्मी व्रत समापन के बारे में

महालक्ष्मी व्रत समापन पर भक्त माँ लक्ष्मी की पूजा-अर्चना कर व्रत का विधिवत समापन करते हैं। यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और घर में लक्ष्मी कृपा प्राप्त करने हेतु किया जाता है।

महालक्ष्मी व्रत 2025

महालक्ष्मी व्रत की शुरुआत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होती है और इसका समापन आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को समर्पित होता है, जिन्हें धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि इस व्रत को करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे भक्तों को आर्थिक समृद्धि, कर्ज से मुक्ति और जीवन में सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है।

महालक्ष्मी व्रत समापन 2025 का शुभ मुहूर्त

महालक्ष्मी व्रत का समापन 14 सितम्बर 2025, रविवार से आरंभ हुआ था

  • चन्द्रोदय समय - 12:38 पी एम
  • महालक्ष्मी व्रत प्रारम्भ रविवार, अगस्त 31, 2025 को
  • महालक्ष्मी व्रत पूर्ण रविवार, सितम्बर 14, 2025 को
  • सम्पूर्ण महालक्ष्मी व्रत के दिन - 15
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 30, 2025 को 10:46 पी एम बजे से
  • अष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 01, 2025 को 12:57 ए एम बजे तक

क्या है महालक्ष्मी व्रत समापन?

महालक्ष्मी व्रत, माँ लक्ष्मी को समर्पित एक विशेष व्रत है जो भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारम्भ होकर 15 दिनों तक चलता है। इस व्रत का समापन आश्विन, कृष्ण अष्टमी को होगा। समापन के दिन महालक्ष्मी माता की विशेष पूजा-अर्चना, व्रत का विधान और गजलक्ष्मी स्वरूप की आराधना की जाती है। इसे महालक्ष्मी व्रत समापन कहा जाता है।

क्यों करना चाहिए महालक्ष्मी व्रत का समापन?

  • व्रत का समापन उसी प्रकार आवश्यक है जैसे किसी कार्य का पूर्ण होना।
  • समापन के दिन की गई पूजा से व्रत का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है।
  • इस दिन हाथी पर विराजमान माँ लक्ष्मी की पूजा से आर्थिक संकट, दरिद्रता और कष्टों का नाश होता है।
  • समापन पूजा के बिना व्रत अधूरा माना जाता है और इसका पूर्ण फल नहीं मिलता।

महालक्ष्मी व्रत समापन का महत्व

गजलक्ष्मी की पूजा का विशेष दिन

  • मान्यता है कि व्रत के अंतिम दिन हाथी पर सवार लक्ष्मी की उपासना करने से धन, सुख और वैभव प्राप्त होता है।

आर्थिक समृद्धि का आशीर्वाद

  • समापन पूजा से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों को अन्न, धन और ऐश्वर्य का वरदान देती हैं।

पौराणिक महत्व

  • कहा जाता है कि जब पांडवों ने चौपड़ में सब कुछ खो दिया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें महालक्ष्मी व्रत करने की सलाह दी।
  • व्रत के समापन दिवस पर की गई आराधना से उनकी कठिनाइयाँ दूर हुईं और उन्हें पुनः सम्मान व वैभव प्राप्त हुआ।

नकारात्मक ऊर्जा का नाश

  • समापन दिन पर की गई पूजा से घर में स्थिर लक्ष्मी का वास होता है और दरिद्रता दूर होती है।

पूर्ण फल की प्राप्ति

  • व्रत की पूरी अवधि का पुण्य फल तभी मिलता है जब भक्त समापन पूजा को विधिवत संपन्न करते हैं।

महालक्ष्मी व्रत समापन पूजा सामग्री सूची

1. मूल पूजन सामग्री

  • पूजा के लिए स्वच्छ चौकी
  • लाल वस्त्र (चौकी पर बिछाने के लिए)
  • गजलक्ष्मी की प्रतिमा (मिट्टी, चांदी या धातु की – हाथी पर विराजमान स्वरूप)
  • कलश (जल, आम्रपल्लव व नारियल सहित)
  • श्री यंत्र
  • चांदी के सिक्के व कौड़ियां

2. स्नान एवं अभिषेक सामग्री

  • पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगाजल)
  • शुद्ध जल

3. श्रृंगार एवं अर्पण सामग्री

  • सिंदूर
  • कुमकुम (रोली)
  • हल्दी
  • अक्षत (चावल)
  • अष्टगंध
  • कमलगट्टा (कमल के बीज)
  • लाल गुलाब व अन्य पुष्प
  • पुष्पमाला
  • सुपारी
  • पान के पत्ते
  • नारियल

4. पूजन दीप व धूप सामग्री

  • घी का दीपक और तेल का दीपक
  • रूई की बाती
  • धूपबत्ती / अगरबत्ती
  • कपूर

5. नैवेद्य एवं भोग सामग्री

  • सोलह प्रकार के विविध पकवान (मिठाइयाँ, खीर, पूड़ी, हलवा, लड्डू आदि)
  • मौसमी फल
  • मेवे (काजू, बादाम, किसमिस आदि)
  • मिश्री
  • पान, इलायची

6. पूजन उपरांत दान हेतु सामग्री

  • ब्राह्मणों व कन्याओं के लिए भोजन की व्यवस्था
  • दान हेतु वस्त्र
  • दक्षिणा
  • सोलह सुहागिनों या कन्याओं के लिए श्रृंगार सामग्री (सिंदूर, चूड़ी, बिंदी, कंघी, मेहंदी, काजल आदि)

विशेष ध्यान दें

  • पूजा में लाल रंग की सामग्री का प्रयोग अधिक शुभ माना जाता है।
  • गजलक्ष्मी की प्रतिमा का पूजन करने के बाद या तो उनका विसर्जन करें अथवा घर के पूजाघर में स्थापित कर दें।
  • समापन के दिन किया गया दान व ब्राह्मण/कन्या भोज, व्रत को पूर्ण फलदायी बनाता है।

महालक्ष्मी व्रत समापन पूजा विधि

1. प्रातः तैयारी

  • ब्रह्म मुहूर्त (प्रातःकाल) में स्नान करें और स्वच्छ, preferably लाल या पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
  • व्रत का दृढ़ संकल्प (संकल्प मंत्र) लेकर पूजा का आरंभ करें।

2. पूजा स्थल की व्यवस्था

  • पूजा स्थल को गंगाजल या गोमूत्र से शुद्ध करें।
  • एक पवित्र चौकी स्थापित करें और उस पर लाल वस्त्र बिछाएँ।
  • चौकी पर गजलक्ष्मी माता की प्रतिमा (मिट्टी, चांदी या धातु की – हाथी पर विराजमान स्वरूप) रखें।
  • प्रतिमा के साथ कलश, श्री यंत्र, चांदी के सिक्के और कौड़ियां भी स्थापित करें।

3. कलश स्थापना

  • कलश में जल भरें, उसमें सुपारी, अक्षत, सिक्का और आम्रपल्लव रखें।
  • कलश के मुख पर नारियल रखें और स्वस्तिक बनाकर उसे लाल वस्त्र से ढक दें।
  • यह कलश लक्ष्मीजी का प्रतीक माना जाता है।

4. देवी का आवाहन व अभिषेक

  • गजलक्ष्मी माता का ध्यान व आवाहन करें।
  • पंचामृत और गंगाजल से प्रतिमा का अभिषेक करें।
  • अभिषेक के बाद माता को स्वच्छ वस्त्र/आभूषण पहनाकर श्रृंगार करें।
  • सिंदूर, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, अष्टगंध, पुष्प, माला, कमलगट्टे और लाल गुलाब अर्पित करें।

5. पूजन क्रम

  • दीपक और धूप जलाएँ।
  • माता लक्ष्मी को चंदन, रोली, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य और सुगंधित वस्तुएँ अर्पित करें।
  • सोलह प्रकार के पकवान, फल, मेवे, मिश्री, खीर और विशेष मिठाइयों का भोग लगाएँ।
  • माता को पान, सुपारी, इलायची और नारियल भी अर्पित करें।

6. मंत्र-जप और पाठ

  • “श्री सूक्त” या “लक्ष्मी अष्टक स्तोत्र” का पाठ करें।
  • माता लक्ष्मी के 108 नामों का जप करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
  • इसके बाद महालक्ष्मी व्रत कथा का श्रवण या पठन करें।

7. आरती और क्षमा-याचना

  • आरती उतारकर भक्तजन मिलकर “ओम जय लक्ष्मी माता” की आरती गाएँ।
  • पूजा में हुई त्रुटियों के लिए माता से क्षमा-याचना करें।

8. दान व विसर्जन

  • पूजन के उपरांत ब्राह्मणों को भोजन कराएँ। यदि संभव हो तो 16 ब्राह्मणों को भोजन करवाना विशेष फलदायी होता है।
  • महालक्ष्मी विसर्जन के दिन 16 सुहागिन स्त्रियों या कन्याओं को भोजन कराएँ और उन्हें श्रृंगार सामग्री (चूड़ी, सिंदूर, बिंदी, मेहंदी आदि) भेंट करें।
  • भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा और वस्त्र देकर सम्मानपूर्वक विदा करें।

9. प्रतिमा विसर्जन

  • पूजा के अंत में गजलक्ष्मी माता की प्रतिमा का विसर्जन करें।
  • यदि विसर्जन न करना चाहें तो प्रतिमा को घर के पूजा स्थान पर स्थापित कर प्रतिदिन पूजा करते रहें।

विशेष सुझाव

  • इस दिन घर में दीपदान करने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
  • रात्रि में लक्ष्मी स्तुति व मंत्र-जप करना विशेष फलदायी होता है।
  • व्रत समापन पर दान-पुण्य और सेवा कार्य को अवश्य करें।

महालक्ष्मी व्रत के लाभ

धन-समृद्धि की प्राप्ति

  • इस व्रत से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर साधक को धन, ऐश्वर्य और भौतिक सुख-सुविधाएँ प्रदान करती हैं।

ऋण-मुक्ति

  • जो जातक कर्ज़ या आर्थिक संकट से जूझ रहे हों, उन्हें इस व्रत से धीरे-धीरे मुक्ति और समाधान प्राप्त होता है।

सौभाग्य व वैवाहिक सुख

  • विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखंड सौभाग्य का वरदान देता है।
  • अविवाहित कन्याओं को योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है।

घर-परिवार में शांति

  • व्रत से घर में सुख-शांति बनी रहती है और पारिवारिक कलह समाप्त होते हैं।

संपत्ति वृद्धि

  • इस व्रत से भूमि, घर, वाहन और अन्य स्थायी संपत्ति की प्राप्ति होती है।

आध्यात्मिक लाभ

  • यह व्रत साधक के मन को पवित्र बनाता है और भक्ति मार्ग में उन्नति देता है।

महालक्ष्मी व्रत समापन के धार्मिक उपाय

व्रत समापन के दिन कुछ विशेष उपाय करने से व्रत का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है:

दीपदान करें

  • रात्रि में घर के प्रत्येक कोने में दीप जलाएँ। विशेषकर मुख्य द्वार पर शंख और दीपक जलाने से दरिद्रता दूर होती है।

कन्या-भोजन व सुहागिन पूजन

  • 16 कन्याओं या सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराएँ और उन्हें श्रृंगार सामग्री भेंट करें। इससे माता लक्ष्मी शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

गरीब व जरूरतमंदों को दान

  • अन्न, वस्त्र, गौ-दान या धन का दान करने से व्रत का फल कई गुना हो जाता है।

श्रीसूक्त और लक्ष्मी अष्टक स्तोत्र का पाठ

  • समापन के दिन इन मंत्रों का पाठ करना अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है।

स्वर्ण या चांदी का दान

  • सामर्थ्य अनुसार सोना, चांदी या तांबे का दान करने से आर्थिक संकट दूर होता है।

अन्नकूट भोग

  • मां लक्ष्मी को 16 प्रकार के पकवानों का भोग अवश्य लगाएँ और बाद में परिवार व ब्राह्मणों में बांटें।

प्रतिमा विसर्जन

  • यदि गजलक्ष्मी प्रतिमा स्थापित की गई हो तो उसे विधिपूर्वक जल में विसर्जित करें।
  • अथवा पूजा घर में पुनः स्थापित कर दैनिक पूजन करते रहें।
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Published by Sri Mandir·September 3, 2025

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