जानें 2025 की राधा अष्टमी की तारीख, महत्व, व्रत की कथा और राधारानी को प्रसन्न करने की विधि, जिससे जीवन में प्रेम, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हो।
राधा अष्टमी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। यह श्री राधा जी का प्रकटोत्सव है। भक्त इस दिन व्रत रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और राधा-कृष्ण की आराधना कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शास्त्रों में श्रीकृष्ण की प्राणप्रिया के रूप में वर्णित, राधा रानी की जन्मतिथि, श्रीकृष्ण के जन्म के पंद्रह दिन बाद मनाई जाती है, जिसे राधा अष्टमी कहते हैं। क्या आप जानते हैं, राधा अष्टमी के पर्व का क्या महत्व है, और इस पर्व को इस नाम से क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो आइए हम आपको इस महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराते हैं।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:08 ए एम से 04:53 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:30 ए एम से 05:38 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:33 ए एम से 12:23 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:05 पी एम से 02:55 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:18 पी एम से 06:41 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:18 पी एम से 07:26 पी एम तक |
अमृत काल | 05:49 ए एम से 07:37 ए एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:36 पी एम से 12:21 ए एम, 01 सितम्बर तक |
राधा अष्टमी हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व श्री राधा रानी के प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, इस दिन वृषभानु जी को एक तालाब में खिले कमल के पुष्प के मध्य बालिका राधा प्राप्त हुई थीं। यही कारण है कि इसे राधा जयंती भी कहा जाता है।
राधा अष्टमी को देवी राधा के दिव्य प्राकट्य की स्मृति में श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाता है। यह दिन राधा-कृष्ण की भक्ति में लीन होने, आत्मिक प्रेम और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर और राधा-कृष्ण की पूजा करके भक्त उन्हें प्रसन्न करते हैं और उनके जीवन में प्रेम, सौभाग्य व शांति आती है।
प्रातः कालीन तैयारी
पूजा स्थल की स्थापना
कलश स्थापना विधि
कलश में भरें:
अन्य देवताओं की स्थापना और पूजन
मूर्ति पूजन की प्रक्रिया
विशेष भोग अर्पण
आरती एवं क्षमा याचना
इस विधि से श्रद्धा सहित राधा अष्टमी की पूजा करने पर राधा-कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है और जीवन में प्रेम, सुख, सौभाग्य और भक्ति की वृद्धि होती है।
राधा रानी की कृपा पाने के लिए भक्त निम्नलिखित मंत्रों का जप कर सकते हैं:
श्री राधा मंत्र
राधा-कृष्ण ध्यान मंत्र
राधा अष्टमी स्तुति
राधा अष्टमी और जन्माष्टमी दोनों ही अत्यंत पावन और महत्त्वपूर्ण पर्व हैं, जो श्रीकृष्ण और राधा रानी के जीवन से जुड़े हुए हैं। इन दोनों पर्वों में मुख्य अंतर इनके उद्देश्य, तिथि और पूजन पद्धति में देखा जाता है। जन्माष्टमी श्रीकृष्ण के प्राकट्य की तिथि है, जो भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अर्धरात्रि के समय मनाई जाती है। वहीं राधा अष्टमी, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और यह राधा रानी के प्राकट्य का उत्सव होता है, जिसे दिन के मध्याह्न काल में मनाया जाता है।
जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, झांकी, झूला और अर्धरात्रि पूजन का विशेष महत्व होता है, जबकि राधा अष्टमी पर राधा रानी के सौंदर्य, भक्ति और प्रेम को केंद्र में रखकर पूजन किया जाता है। इन दोनों पर्वों में व्रत-पूजन का विधान होता है, परंतु जन्माष्टमी पर जहां पुरुष और स्त्रियाँ समान रूप से व्रत रखते हैं, वहीं राधा अष्टमी का व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के बीच अधिक प्रचलित है। जन्माष्टमी की पूजा में तुलसी दल अर्पित किया जाता है, जबकि राधा अष्टमी में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाता। जन्माष्टमी का प्रमुख भाव धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश है, जबकि राधा अष्टमी प्रेम और भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक है।
इस प्रकार, ये दोनों पर्व श्रीराधा-कृष्ण के जीवन के दो पूरक और पूज्य पक्षों को दर्शाते हैं।
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