हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रि आरंभ होता है। इस दौरान 10 महाविद्याओं की पूजा के अलावा तांत्रिक सिद्धियां भी की जाती है। गुप्त नवरात्रि विशेषकर शक्ति साधना, तांत्रिक क्रियाएं, महाकाल आदि से जुड़े लोगों के लिए विशेष महत्व रखती है। मान्यता है कि गुप्त नवरात्रि में तंत्र साधना करने से सामान्य नवरात्रि की तुलना में कई गुना ज्यादा फल मिलता है। तंत्र शास्त्र में भगवान भैरव एवं मां काली को अत्यंत शक्तिशाली एवं महत्वपूर्ण बताया गया है। माना जाता है कि इस दौरान देवी कालरात्रि एवं काल भैरव काल से साधक की रक्षा करते हैं। वहीं इनकी साधना से सभी प्रकार की ऊपरी बाधा और तंत्र बाधा का नाश होता है। मान्यता है कि देवी मां के आशीष पाने से पहले भगवान भैरव की पूजा करना भी अनिवार्य है। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव देवी के 51 शक्तिपीठों की स्थापना कर रहे थे तब असुरों को इस बात का भय सताने लगा कि यदि पृथ्वी पर इन शक्तिपीठों की स्थापना हुई तो असुरों का विनाश हो जाएगा।
जिस कारण सभी असुर इन शक्तिपीठों को खंडित करने के लिए आगे बढ़ने लगे, इस बात को जानकर भगवान शिव ने इन शक्तिपीठों की रक्षा का दायित्व अपने भैरव अवतार को सौंपा। तभी से यह माना जाता है कि भगवान भैरव से अनुमति के बाद ही कोई भी भक्त देवी मां के दर्शन एवं आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। गुप्त नवरात्री के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है, इसलिए इस शुभ अवसर देवी मां का आशीष पाने के लिए काल भैरव की पूजा भी कराई जाएगी। रूद्रप्रयाग के कालीमठ मंदिर एवं काशी के काल भैरव मंदिर में कालरात्रि तंत्र युक्त हवन और काल भैरव अष्टकम पाठ किया जाएगा श्री मंदिर के माध्यम से इस संयुक्त पूजा में भाग लें और मां कालरात्रि के साथ भगवान भैरव से निर्भयता एवं नकारात्मक ऊर्जाओं से सुरक्षा का आशीष पाएं।