हिंदू धर्म में कार्तिगई दीपम का विशेष महत्व है। यह दक्षिण भारत के तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। इसे तमिल महीने कार्तिगई के दौरान मनाया जाता है और यह त्योहार दिव्य प्रकाश को समर्पित है, जो ज्ञान, साहस और आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक है। कार्तिगई दीपम भगवान मुरुगन के भक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है। भगवान मुरुगन को कार्तिकेय या स्कंद के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार की उत्पत्ति भगवान मुरुगन के जन्म और उनके दिव्य उद्देश्य की कहानी से जुड़ी है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच विवाद को सुलझाने के लिए स्वयं को अनंत ज्योति के रूप में प्रकट किया। इस दिव्य प्रकाश की पूजा के लिए ही कार्तिगई दीपम मनाया जाता है। इसके अलावा, भगवान शिव की तीसरी आंख से उत्पन्न दिव्य चिनगारियों से भगवान मुरुगन का जन्म हुआ, जो ज्ञान और साहस का प्रतीक हैं। इस दिन दीप जलाकर भक्त प्रकाश की अंधकार पर विजय का प्रतीक मनाते हैं और सर्वोच्च रक्षक भगवान मुरुगन से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिगई दीपम ज्ञान के अनंत प्रकाश का प्रतीक है और माना जाता है कि इस पावन दिन भगवान मुरुगन की शरण में जाने से दिव्य सुरक्षा प्राप्त होती है और जीवन की चुनौतियां दूर होती हैं। शास्त्रों में सुब्रह्मण्य शक्ति कवचम और वेल अर्चन जैसे अनुष्ठानों का विशेष महत्व बताया गया है, जिनसे भगवान मुरुगन की कृपा प्राप्त की जाती है। सुब्रह्मण्य शक्ति कवचम में भगवान मुरुगन के कवच (रक्षा मंत्र) का पाठ किया जाता है, और वेल अर्चन में देवी पार्वती द्वारा भगवान मुरुगन को प्रदान किए गए पवित्र वेल (भाला) का पूजन किया जाता है। वेल को दिव्य ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है, जो नकारात्मकता को समाप्त करता है और बाधाओं को दूर करता है। स्कंद पुराण के अनुसार, वेल भगवान मुरुगन की शक्ति और करुणा का प्रतीक है, जो उनकी शरण में आने वालों को सुरक्षा प्रदान करता है। इसी भावना से, कार्तिगई दीपम के शुभ अवसर पर श्री कवडी पलानी अंदावर मंदिर, सलेम में सुब्रह्मण्य शक्ति कवचम और वेल अर्चन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पवित्र पूजा में भाग लें और भगवान मुरुगन से सुरक्षा और बाधाओं के निवारण का आशीर्वाद प्राप्त करें।