सनातन धर्म में देवउठनी एकादशी पर पितृ पूजा करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु चातुर्मास की योग निद्रा से जागते हैं और दोबारा शुभ कार्यों का आरंभ होता है। शास्त्रों के अनुसार, जब भगवान जागृत अवस्था में होते हैं, तब पितृों की आत्माओं को भी विशेष तृप्ति और शांति प्राप्त होती है। इस दिन तिल, जल, पुष्प और दीप अर्पित करते हुए पितृों का विशेष स्मरण किया जाता है और उनके कल्याण-मोक्ष की प्रार्थना की जाती है। इस शुभ काल में गया तीर्थ में त्रिपिंडी श्राद्ध, पिंड दान और तिल तर्पण से दिवंगत आत्माओं को प्रभु का मार्ग मिल सकता है।
🕉️ इस अनुष्ठान में त्रिपिंडी श्राद्ध और पिंड दान पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए किए जाने वाले विशेष वैदिक कर्मकांड हैं। त्रिपिंडी श्राद्ध में 3 पीढ़ियों पिता, पितामह और प्रपितामह के लिए तिल, चावल और कुशा से बने तीन पिंड अर्पित किए जाते हैं। मान्यता है कि इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है और परिवार को उनका रुका हुआ आशीर्वाद मिलता है। वहीं, पिंड दान में चावल, तिल, पुष्प और जल से बने पिंड पवित्र नदी या तीर्थ में अर्पित किए जाते हैं। यह कर्मकांड पितृ दोष निवारण के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है और इससे जीवन में शांति, सुख और समृद्धि आती है।
🌿इसी के साथ देवउठनी एकादशी पर किए जाने वाला तिल तर्पण पितरों की आत्मा शांति और तृप्ति के लिए बेहद महत्वपूर्ण वैदिक अनुष्ठान है। श्री मंदिर द्वारा इस शुभ तिथि में गया की धर्मारण्य वेदी पर कुशा, तिल, जल और मंत्रों के साथ पितरों को तर्पण अर्पित किया जाएगा। मान्यता है कि तिल से किया गया तर्पण पितरों की आत्मा को संतुष्टि प्रदान करता है और उनके आशीर्वाद से जीवन में बाधाएं शांत होनी शुरू हो जाती हैं। माना जाता है कि श्राद्ध चतुर्दशी पर तिल तर्पण करने से पितृ दोष के प्रभाव कम होते हैं, परिवार में सुख-समृद्धि बढ़ती है और पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है। यह कृतज्ञता व्यक्त करने का पावन अनुष्ठान है, जो इस साल का आखिरी अवसर है।
🛕 गरुण पुराण में गया से जुड़ी कथा:
ब्रह्माजी ने व्यासजी को बताया कि गय नामक असुर ने कठोर तपस्या से देवताओं और मनुष्यों को कष्ट दिया था। परेशान देवगण विष्णु जी के पास गए, जिन्होंने वध का आश्वासन दिया। शिवजी की पूजा के लिए क्षीरसागर से कमल लाते समय, विष्णुमाया से मोहित गय असुर कीकट देश में शयन करने लगा। उसी समय श्री विष्णु ने अपनी गदा से उसका वध कर देवों और मनुष्यों का कल्याण किया। भगवान विष्णु ने इसके बाद घोषणा की कि उसकी देह अब पुण्यक्षेत्र के रूप में पूजनीय होगी। यहां किए गए यज्ञ, श्राद्ध और पिंडदान से भक्त स्वर्ग-ब्रह्मलोक की प्राप्ति करेंगे।
श्री मंदिर द्वारा इस देवउठनी एकादशी पितृ अनुष्ठान में भाग लेने का अवसर हाथ से न जाने दें!