जयापार्वती व्रत का समापन, जानिए इस विशेष दिन की तिथि, पूजा विधि और वह आध्यात्मिक महत्व, जो आपके जीवन में खुशियों की नई रेखा खींच सकता है
जयापार्वती व्रत समापन के दिन महिलाएं पार्वती माता की पूजा करके व्रत का उद्यापन करती हैं। इस दिन विशेष रूप से शिव-पार्वती की मूर्ति का पूजन, कथा वाचन और व्रत समापन हेतु अन्न-जल ग्रहण किया जाता है।
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जया पार्वती व्रत माता पार्वती को समर्पित पर्व है। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत को रखकर माता से अपना सुहाग अखंड होने की कामना करती हैं, और कुंवारी कन्याएं ये व्रत सुयोग्य वर पाने के लिए रखती हैं। जयापार्वती व्रत हर वर्ष अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष की तृतीया पर समाप्त होता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:51 ए एम से 04:32 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:12 ए एम से 05:14 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:30 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक |
अमृत काल | 05:42 पी एम से 07:26 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 09 तक |
रवि योग | 03:15 ए एम, जुलाई 09 से 05:14 ए एम, जुलाई 09 तक |
ऐसा कहा जाता है कि जया पार्वती व्रत का रहस्य विष्णु जी ने लक्ष्मी मां से कहा था। मान्यता है कि जया पार्वती व्रत रखने से विवाहित स्त्रियां सदा सुहागन रहती हैं, और अविवाहित कन्याएं मनचाहा वर पाती हैं। जया पार्वती का व्रत रखने वाली स्त्रियां बालू या रेत का हाथी बनाकर उस पर 5 प्रकार के पुष्प, फल और प्रसाद चढ़ाती हैं।
जया पार्वती के इस व्रत में नमक का प्रयोग पूरी तरह वर्जित माना गया है। इसके साथ ही इस दिन गेहूं का आटा और सभी प्रकार की सब्जियों का सेवन भी नहीं किया जाता है। इस पर्व पर उपवास रखने वाले भक्त फल, दूध, दही, फलों का रस या दूध से बनी मिठाइयां खा सकते हैं। व्रत के अंतिम दिन मंदिर में पूजा करने के बाद नमक और गेहूं के आटे की रोटी या पुड़ी खाकर व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
आज हम जिस व्रत के महात्म्य के बारे में बात करने जा रहे हैं, उसे करने से भगवान शिव और माता पार्वती दोनों की कृपा भक्तों पर बनी रहती है। हम बात कर रहे हैं जया पार्वती व्रत की, जिसका आरंभ आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के त्रयोदशी से होता है। चलिए जानते हैं इस कल्याणकारी व्रत से जुड़ी हुई संपूर्ण जानकारी।
जया पार्वती व्रत को विजया पार्वती व्रत के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत विवाहित महिलाओं और अविवाहित महिलाओं, दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। जहां विवाहित स्त्रियां इस व्रत को सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से करती हैं, वहीं अविवाहित महिलाएं, इस व्रत को योग्य वर की प्राप्ति के लिए करती हैं। इसे करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति भी होती है।
यह व्रत भक्तों की माता पार्वती के प्रति असीम आस्था का प्रतीक है। साथ ही यह व्रत महिलाओं की भक्ति एवं समर्पण को भी दर्शाता है। दरअसल, जया पार्वती व्रत एक प्रकार की साधना है क्योंकि इसकी अवधि 5 दिनों की होती है। इस व्रत का उद्यापन 5 वर्ष, 9 वर्ष,11 वर्ष या फिर 20 वर्षों के बाद किया जाता है।
यह पर्व मुख्यतः गुजरात में मनाया जाता है और इस दौरान वहां का वातावरण भक्तिमय हो जाता है। उपवास के आखिरी दिन स्त्रियां जागरण करती हैं व पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए माँ की आराधना व ध्यान करती हैं। धार्मिक भजनों तथा रात्रि जागरण की इस प्रथा को जया पार्वती जागरण के नाम से जाना जाता है।
इस विधि से जया पार्वती व्रत करने से माँ पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है, जीवन में सुख, सौभाग्य और वैवाहिक जीवन में मंगल बना रहता है। तो इस लेख में आपने जाना जया पार्वती व्रत की संपूर्ण पूजा विधि के बारे में। हमारी कामना है कि आपका व्रत सफल हो।
1. सुयोग्य वर की प्राप्ति
यह व्रत विशेष रूप से कुंवारी कन्याओं द्वारा किया जाता है ताकि उन्हें शिव समान गुणवान, समर्पित और आदर्श पति की प्राप्ति हो सके। मान्यता है कि जैसे माता पार्वती ने तप से शिवजी को पाया, वैसे ही यह व्रत कन्याओं को योग्य वर दिलाने में सहायक होता है।
2. वैवाहिक जीवन में प्रेम व सौहार्द
विवाहित स्त्रियाँ इस व्रत को पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख के लिए करती हैं। इससे दांपत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है और पारिवारिक जीवन में शुभता आती है।
3. माँ पार्वती का आशीर्वाद
श्रद्धा व नियमपूर्वक व्रत रखने से माँ पार्वती विशेष रूप से प्रसन्न होती हैं, जिससे घर में समृद्धि, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
4. मन की एकाग्रता और संयम का विकास
यह व्रत नियम, संयम और तपस्या की भावना को सशक्त करता है। पाँच दिनों तक की पूजा, कथा, जागरण और उपवास से साधक का मन स्थिर होता है और आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है।
5. संतान सुख व मातृत्व का आशीर्वाद
कुछ क्षेत्रों में यह भी मान्यता है कि माँ पार्वती की विशेष कृपा से निःसंतान दंपत्तियों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है, विशेषकर जब यह व्रत विधिपूर्वक पारण के साथ पूर्ण किया जाए।
6. पारिवारिक संकटों से मुक्ति
यह व्रत करने से गृह क्लेश, अपयश, बीमारी और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और जीवन में स्थायित्व आता है।
तो यह थी जया पार्वती व्रत से जुड़ी पूरी जानकारी, हमारी कामना है कि आपका व्रत सफल हो। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर पर।
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