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गोपाष्टमी 2024

गोपाष्टमी 2024: जानें गोपाष्टमी कब है, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि। गौ माता की पूजा कर पाएं उनके आशीर्वाद से सुख-समृद्धि।

गोपाष्टमी

गोपाष्टमी महोत्सव गोवर्धन पर्वत से जुड़ा है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है, यह मथुरा, वृंदावन और अन्य ब्रज क्षेत्रों में प्रसिद्ध त्योहार है।

गोपाष्टमी कब है?

  • इस वर्ष गोपाष्टमी 09 नवंबर 2024, शनिवार को है।
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 08 नवंबर, 2024 को 11:56 PM से
  • अष्टमी तिथि समाप्त - 09 नवंबर, 2024 को 10:45 PM तक

गोपाष्टमी क्या है?

कहा जाता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से ही भगवान श्री कृष्ण ने गौ-चारण लीला आरम्भ की थी, इसलिए इसे गोपाष्टमी के नाम से जाना जाता है। गोपाष्टमी पर गायों और उनके बछड़ों को सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। गाय और बछड़े की पूजा करने की रस्म महाराष्ट्र में गोवत्स द्वादशी के समान है।

गोपाष्टमी पूजन विधि

इस दिन बछड़े सहित गाय का पूजन करने का विधान है। इस दिन प्रातः काल उठ कर नित्य कर्म से निवृत हो कर स्नान करते हैं, प्रातः काल ही गौओं और उनके बछड़ों को भी स्नान कराया जाता है।

गौ माता के अंगों में मेहंदी, रोली हल्दी आदि के चापे लगाए जाते हैं, गायों को सजाया जाता है, प्रातः काल ही धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र और जल से गो माता की पूजा की जाती है और आरती उतारी जाती है। पूजन के बाद गौ ग्रास निकाला जाता है, गौ माता की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा के बाद गौओं के साथ कुछ दूर तक चला जाता है।

श्री कृष्ण की गौ-चारण लीला की पौराणिक कथा

भगवान श्री कृष्ण ने जब छठे वर्ष की आयु में प्रवेश किया तब एक दिन भगवान माता यशोदा से बोले- मैय्या अब हम बड़े हो गए हैं।

मैय्या यशोदा ने कहा- अच्छा लल्ला अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ अब क्या करें? श्री कृष्ण जी ने कहा- अब हम बछड़े चराने नहीं जाएंगे, अब हम गाय चराएंगे।.

मैय्या यशोदा ने कहा- ठीक है बाबा से पूछ लेना। मैय्या के इतना कहते ही झट से कृष्ण जी नंद बाबा से पूछने पहुंच गए, नंद बाबा ने कहा- लाला अभी तुम बहुत छोटे हो अभी तुम बछड़े ही चराओ, श्री कृष्ण जी ने कहा- बाबा अब मैं बछड़े नहीं गाय ही चराऊंगा।

जब भगवान नहीं माने तब बाबा बोले- ठीक है लाल तुम पंडित जी को बुला लाओ, वह गौ चारण का मुहूर्त देख कर बता देंगे।

बाबा की बात सुनकर भगवान कृष्ण झट से पंडित जी के पास पहुंचे और बोले- पंडित जी आपको बाबा ने बुलाया है, गौ चारण का मुहूर्त देखना है, आप आज ही का मुहूर्त बता देना मैं आपको बहुत सारा माखन दूंगा।

पंडित जी नंद बाबा के पास पहुंचे और बार-बार पंचांग देख कर गणना करने लगे तब नंद बाबा ने पूछा, पंडित जी क्या बात है? आप बार बार क्या गिन रहे हैं? पंडित जी बोले, क्या बताएं नंदबाबा जी केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है, इसके बाद तो एक वर्ष तक कोई मुहूर्त नहीं है, पंडित जी की बात सुन कर नंदबाबा ने भगवान को गौ चारण की स्वीकृति दे दी। भगवान जिस समय कोई कार्य करें वही शुभ मुहूर्त बन जाता है उसी दिन भगवान ने गौ चारण आरंभ किया और वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष अष्टमी, भगवान के गौ-चारण आरंभ करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाई।।

माता यशोदा ने अपने लल्ला का श्रृंगार किया और जैसे ही पैरों में जूतियां पहनाने लगी तो लल्ला ने मना कर दिया और बोले मैय्या यदि मेरी गौएं जूतियां नहीं पहनती तो मैं कैसे पहन सकता हूं। यदि पहना सकती हो तो उन सभी को भी जूतियां पहना दो। बता दें भगवान कृष्ण जब तक वृंदावन में रहे, उन्होंने कभी पैरों में जूतियां नहीं पहनी। आगे-आगे गाय और उनके पीछे बांसुरी बजाते भगवान कृष्ण जी, उनके पीछे बलराम और श्री कृष्ण के यश का गान करते हुए ग्वाल-गोपाल चल दिए। इस प्रकार से विहार करते हुए भगवान कृष्ण जी ने उस वन में प्रवेश किया तब से भगवान की गौ-चारण लीला का आरंभ हुआ।

जब भगवान कृष्ण गौएं चराते हुए वृंदावन जाते तब उनके चरणों से वृंदावन की भूमि अत्यंत पावन हो जाती, वह वन गौओं के लिए हरी भरी घास से युक्त एवं रंग-बिरंगे पुष्पों की खान बन गया था।

तो यह थी गोपाष्टमी की सम्पूर्ण जानकारी, ऐसी ही व्रत, पर्व, त्यौहार से जुड़ी अन्य महत्वपूर्ण जानकारियों के लिए जुड़े रहिए श्री मंदिर के साथ। धन्यवाद!

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Published by Sri Mandir·January 14, 2025

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