इस व्रत से कैसे मिलती है अक्षय सौभाग्य की प्राप्ति? जानिए व्रत की तिथि, पूजा विधि और इसके पीछे छिपा पौराणिक महत्व
गौरी व्रत प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल एकादशी से होता है, जो विशेष रूप से अविवाहित कन्याओं द्वारा किया जाता है। यह व्रत माँ गौरी को समर्पित होता है और अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।
भक्तों नमस्कार, श्री मंदिर पर आपका स्वागत है। गौरी व्रत हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आरंभ होता है, और ये व्रत पूर्णिमा को समाप्त होता है। ये व्रत विशेषकर कुंवारी कन्याएं करती हैं, ताकि उन्हें मां गौरी की कृपा से सुयोग्य वर मिले। यह गौरी व्रत मुख्य रूप से गुजरात में मनाया जाता है। गौरी पूजा का व्रत मुख्य रूप से अविवाहित लड़कियों द्वारा अच्छे पति की प्राप्ति के लिए रखा जाता है।
जया पार्वती व्रत 08 जुलाई 2025, मंगलवार को होगा।
(गुजराती पंचांग के अनुसार)
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:50 ए एम से 04:32 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:11 ए एम से 05:13 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:35 ए एम से 12:30 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:19 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:55 पी एम तक |
अमृत काल | 12:51 पी एम से 02:38 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 11:42 पी एम से 12:24 ए एम, 07 जुलाई तक |
मुहूर्त | समय |
त्रिपुष्कर योग | 09:14 पी एम से 10:42 पी एम तक |
रवि योग | 05:56 ए एम से 10:42 पी एम तक |
गौरी व्रत एक पवित्र व्रत है जिसे विशेष रूप से कन्याएं और सुहागिन स्त्रियां माँ पार्वती (गौरी) की कृपा प्राप्ति के लिए करती हैं। यह व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक लगातार पांच दिनों तक रखा जाता है। इसे विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में श्रद्धा से किया जाता है।
गौरी व्रत का प्रारंभिक दिन (एकादशी) अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि यह व्रत का संकल्प और माता गौरी की आराधना की शुरुआत होती है। मान्यता है कि देवी पार्वती ने भी भगवान शिव को प्राप्त करने हेतु कठोर तप और उपवास किया था। उसी के अनुसरण में कन्याएं यह व्रत करती हैं, ताकि उन्हें एक योग्य वर और सुखमय वैवाहिक जीवन प्राप्त हो।
इस व्रत में मुख्य रूप से माँ गौरी (पार्वती) की पूजा की जाती है। साथ ही भगवान शिव, गणेश जी, और कुमकुम से सजी हुई सौभाग्य सामग्री का पूजन भी होता है। कई जगहों पर देवी गौरी की मिट्टी या धातु की प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
गौरी व्रत केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह एक आत्मिक साधना है, जो मन को पवित्रता, संयम और ईश्वर-भक्ति से जोड़ती है। यह व्रत नारी जीवन के हर चरण में उसे बल, श्रद्धा और संबल प्रदान करता है। तो यह थी गौरी व्रत प्रारंभ के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी, हम आशा करते हैं कि आपका व्रत सफल हो।
Did you like this article?
गुरु पूर्णिमा 2025 का पर्व गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक है। जानें इसकी तिथि, पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से।
कोकिला व्रत 2025 में सुहाग की रक्षा और सुखद वैवाहिक जीवन के लिए रखा जाता है। इस व्रत में देवी sati के कोकिला रूप की पूजा की जाती है। जानें इसकी तिथि, पूजा विधि और धार्मिक महत्व।
आषाढ़ चौमासी चौदस 2025 में चातुर्मास की शुरुआत होती है। जानिए इस शुभ दिन की तिथि, पूजन विधि, धार्मिक महत्त्व और क्या करें इस दिन, हिंदू धर्म की परंपराओं के अनुसार।