
क्या आप जानते हैं रोहिणी व्रत 2026 कब है? जानिए इस शुभ व्रत की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और भगवान विष्णु की कृपा पाने का रहस्य – सब कुछ एक ही जगह!
रोहिणी व्रत को करने से मानसिक शांति, सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति होती है। यह व्रत श्रद्धा और भक्ति से भगवान की उपासना करने का एक उत्तम अवसर होता है। इस दिन विशेष ध्यान और नियमों का पालन करना चाहिए ताकि व्रत का पूर्ण लाभ मिल सके। तो चलिए जानते हैं रोहिणी व्रत से जुड़े कुछ जरूरी नियम और इससे होने वाले लाभ।
रोहिणी व्रत जैन समुदाय के साथ-साथ हिंदू धर्म में भी मनाया जाता है, लेकिन दोनों धर्मों में इसकी पूजा और महत्व अलग-अलग हैं। जानकारी के अनुसार, रोहिणी व्रत जैन समुदाय का एक अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है, जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा अपने पति की दीर्घायु और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है। यह व्रत रोहिणी नक्षत्र के प्रभाव में होता है, जो हिन्दू और जैन कैलेंडर के सत्ताईस नक्षत्रों में से एक है। यह व्रत उस दिन किया जाता है जब सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र का प्रभाव प्रबल होता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति से इस व्रत का पालन करते हैं, वे सभी प्रकार के दुखों और दरिद्रता से मुक्त हो जाते हैं। इस व्रत का पारण रोहिणी नक्षत्र के समाप्त होने पर मार्गशीर्ष नक्षत्र में किया जाता है। प्रत्येक वर्ष में 10 बार से अधिक रोहिणी व्रत मनाया जाता है और इसे आमतौर पर तीन, पाँच या सात वर्षों तक लगातार किया जाता है। इस व्रत की उपयुक्त अवधि पाँच वर्ष, पाँच महीने मानी जाती है। जैन धर्म में इसे अत्यंत पवित्र व फलदायी व्रत माना जाता है, जिसमें विशेष रूप से भगवान वासुपूज्य की पूजा की जाती है।
वहीं, हिंदू धर्म में भी रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है, जिसमें भगवान कृष्ण और देवी रोहिणी की पूजा की जाती है। यह व्रत भी रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाता है, और इसमें भगवान कृष्ण के साथ-साथ रोहिणी देवी की आराधना की जाती है, जो चंद्रमा की माता मानी जाती हैं। साथ ही, चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है, जिसे चंद्र पूजाभी कहा जाता है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपने परिवार, संतान और पति की दीर्घायु के लिए आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
धन और समृद्धि की प्राप्ति: रोहिणी व्रत पर पूजा करने से भक्तों के जीवन में आर्थिक समृद्धि और सफलता का मार्ग खुलता है।
भौतिक सुख-सुविधाएँ: इस व्रत का पालन करने से जीवन में प्रचुरता आती है। संपत्ति, संपदा और अन्य भौतिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं।
पारिवारिक सुख और समृद्धि: रोहिणी व्रत पारिवारिक जीवन में शांति, समृद्धि और सद्भाव बनाए रखने में मदद करता है।
संतान सुख: यह व्रत संतान की भलाई और उनके सुखी जीवन की कामना करने के लिए भी किया जाता है।
आध्यात्मिक विकास: रोहिणी व्रत से आध्यात्मिक उन्नति भी होती है। ध्यान, प्रार्थना और भक्ति से आंतरिक शांति और आत्म-जागरूकता में वृद्धि होती है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन में ईश्वर के साथ एक गहरे संबंध का अनुभव करता है।
रोहिणी व्रत के अनुष्ठान और रीति-रिवाज अलग-अलग स्थानों और समुदायों में भिन्न हो सकते हैं, लेकिन इस व्रत को नियमपूर्वक करना आवश्यक है।
तिथि का चयन: रोहिणी व्रत रोहिणी नक्षत्र के दिन मनाया जाता है, जो चंद्रमा के साथ संरेखित होता है। इस तिथि को सही ढंग से जानने के लिए आप हिंदू पंचांग या ज्योतिषी से परामर्श कर सकते हैं, ताकि व्रत सही समय पर किया जा सके।
करें तैयारी: व्रत से पहले यह तय करें कि आप आंशिक उपवास (केवल फल, दूध आदि) रखना चाहते हैं या पूर्ण उपवास (खाने-पीने से पूर्ण परहेज़) करेंगे। व्रत के दिन सुबह जल्दी स्नान करके शरीर को शुद्ध करें और पवित्रता की भावना से दिन की शुरुआत करें।
वेदी और पूजा स्थल तैयार करें: अपने घर के किसी पवित्र स्थान पर या नजदीकी मंदिर में देवी रोहिणी की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। वेदी पर दीपक और धूप जलाएं। यह स्थान शुद्ध और शांत होना चाहिए ताकि आप बिना किसी विघ्न के पूजा कर सकें।
व्रत की शुरुआत: व्रत की शुरुआत सूर्योदय के समय करें। अगर आप आंशिक उपवास रख रहे हैं तो पूरे दिन केवल फल, दूध और अनाज रहित भोजन का सेवन करें। कठोर उपवास रखने वालों को दिनभर बिना भोजन और पानी के रहना चाहिए।
पूजा और अनुष्ठान: पूजा के दौरान देवी रोहिणी को पुष्प, फल, मिठाई, और खीर अर्पित करें। दीपक जलाकर और धूप दिखाकर पूजा करें। इस समय देवी के मंत्रों का जाप करें और उनकी कृपा और आशीर्वाद के लिए प्रार्थना करें। व्रत के दौरान अपनी मानसिक शांति बनाए रखें और ध्यान केंद्रित करें।
रोहिणी व्रत जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे विशेष रूप से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए रखती हैं। यह व्रत कर्म बंधन से मुक्ति पाने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए किया जाता है।
रोहिणी व्रत की पूजा ब्रह्म मुहूर्त में स्नान कर शुद्ध वस्त्र पहनने से शुरू होती है। इसके बाद भगवान की पूजा की जाती है, कथा का पाठ और चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कुछ लोग फलाहार करते हैं जबकि कुछ निर्जला उपवास रखते हैं।
रोहिणी व्रत की कथा चंपापुरी के राजा माधवा और उनकी बेटी रोहिणी से जुड़ी है। राजा माधवा ने मुनि से अपनी बेटी की शांत स्वभाव के बारे में पूछा, तब मुनि ने एक कथा सुनाई, जिसमें धनमित्र की बेटी दुर्गांधा, जिसकी शरीर से दुर्गंध आती थी, ने रोहिणी व्रत करने के बाद मोक्ष प्राप्त किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा अशोक के पिछले जन्म के पाप भी समाप्त हुए और वह भी मोक्ष को प्राप्त हुए।
रोहिणी व्रत में फलाहार में फल, दूध, दही, पनीर आदि खा सकते हैं। तामसिक भोजन, जैसे मांस, मदिरा, लहसुन और प्याज से परहेज करें। सूर्यास्त के बाद भोजन वर्जित होता है, और व्रत पूजा के बाद ही खोला जाता है।
रोहिणी व्रत का अर्थ है रोहिणी नक्षत्र के दिन किया जाने वाला उपवास, जिसे मुख्य रूप से महिलाएं अपने पति और परिवार की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए करती हैं। यह व्रत कर्म बंधन से मुक्ति और आत्मा के पवित्र होने के लिए किया जाता है।
रोहिणी व्रत हर महीने में एक बार होता है, क्योंकि यह रोहिणी नक्षत्र के आधार पर होता है, जो हर महीने आता है। सामान्यत: यह व्रत साल में 10 बार से अधिक होता है। कुछ लोग इसे लगातार तीन, पांच या सात वर्षों तक करते हैं।
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