प्रदोष व्रत की पूजा विधि

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

30 जुलाई, रविवार जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व


प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। अगर आप भगवान शिव और माता पार्वती के आशीष से जीवन में सुख-समृद्धि पाने की कामना करते हैं और जीवन के उपरांत मोक्ष प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह व्रत आपके लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगा। चलिए जानते हैं, माघ माह के कृष्ण पक्ष में प्रदोष व्रत कब किया जाएगा-

प्रदोष व्रत कब है?

  • हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है।
  • हिन्दू पंचांग के अनुसार श्रावण अधिक मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी 30 जुलाई 2023 रविवार को मनाई जाएगी। यह तिथि रविवार को होने के कारण इसे रवि प्रदोष भी कहा जाएगा।
  • रवि प्रदोष पूजा मुहूर्त 30 जुलाई को शाम 06 बजकर 45 मिनट से 08 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।
  • त्रयोदशी तिथि 30 जुलाई रविवार को सुबह 10 बजकर 34 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • त्रयोदशी तिथि 31 जुलाई सोमवार को सुबह 07 बजकर 26 मिनट पर समाप्त होगी।

प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त-

  • ब्रह्म मुहूर्त प्रातः 03 बजकर 59 मिनट से 04 बजकर 41 मिनट तक होगा।
  • प्रातः सन्ध्या प्रातः 04 बजकर 20 मिनट से 05 बजकर 24 मिनट तक होगा।
  • अभिजित मुहूर्त सुबह 11 बजकर 38 मिनट से दोपहर 12 बजकर 31 मिनट तक होगा।
  • विजय मुहूर्त दोपहर 02 बजकर 18 मिनट से 03 बजकर 11 मिनट तक होगा।
  • गोधूलि मुहूर्त शाम 06 बजकर 45 मिनट से 07 बजकर 06 मिनट तक होगा।
  • सायाह्न सन्ध्या शाम 06 बजकर 45 मिनट से 07 बजकर 49 मिनट तक होगा।
  • अमृत काल दोपहर 03 बजकर 41 मिनट से 05 बजकर 09 मिनट तक होगा।
  • निशिता मुहूर्त रात 11 बजकर 43 मिनट से 31 जुलाई शरू होते ही रात 12 बजकर 26 मिनट तक होगा।
  • सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 24 मिनट से रात 09 बजकर 32 मिनट तक होगा।
  • रवि योग रात 09 बजकर 32 मिनट से 31 जुलाई प्रातः 05 बजकर 24 मिनट तक होगा।

तो यह थी प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त और तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी आइए आगे जानते है प्रदोष व्रत की पूजा विधि के बारे में।

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है जो की हर माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है और इसकी पूजा प्रदोष काल में ही की जाती है।प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के बाद रात्रि का प्रथम पहर, जिसे सायंकाल भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में नकारात्मकता समाप्त होती है और सफलता मिलती है। साथ ही व्यक्ति को मन की शांति भी प्राप्त होती और भगवान के आशीर्वाद से घर में सुख-समृद्धि आती है।

प्रदोष व्रत शुक्ल की पूजा विधि:

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर शिव जी का स्मरण करके और व्रत का संकल्प लेकर अपने दिन की शुरुआत करें। इसके बाद पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान आदि करके सभी नित्य कर्मों से निवृत हो जाएं। तत्पश्चात् स्वच्छ कपड़े धारण करके सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें और घर के मंदिर में दीपक जलाएं।दीप प्रज्वलित करके भोलेनाथ का गंगाजल और कुशा से अभिषेक करें,अगर आपको कुशा नहीं मिलती है तो आप दूध का उपयोग भी कर सकते हैं।

इसके बाद उनके चरणों में पुष्प,फल, अक्षत, भांग, धतूरा, दूध,दही, घी, शहद, चंदन,रोली, तुलसी दल, बेलपत्र और पंचामृत अर्पित करें और शिव चालीसा पढ़े, इसके साथ ही महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप भी कर सकते हैं। आरती के साथ पूजा का समापन करें। प्रदोष व्रत की पूजा के लिए सूर्यास्त के समय को शुभ माना जाता है, इसलिए शाम के समय मंदिर में दीपक जलाएं। साथ ही व्रत कथा सुनें और भगवान शिव, देवी पार्वती समेत नन्दी, कार्तिकेय जी, गणेश जी और सर्पदेव की पूजा करें।वहीं भोलेनाथ को दोबारा पूजा सामग्री चढ़ाएं और आरती करें। विधि-विधान के साथ पूजा करने के बाद फलाहार का सेवन करें। फिर अगले दिन व्रत का पारणा करें।

तो यह थी प्रदोष व्रत की संपूर्ण पूजा विधि। प्रदोष व्रत की व्रत कथा इस पूजा का अहम् हिस्सा है, उसे सुनने के लिए श्री मंदिर के ऐप पर जाएं। आपकी पूजा और व्रत फलीभूत हो।

श्री मंदिर द्वारा आयोजित आने वाली पूजाएँ

देखें आज का पंचांग

slide
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?
कैसा रहेगा आपका आज का दिन?

अभी डाउनलॉड करें श्री मंदिर एप

करें ईश्वर की भक्ति कहीं भी, कभी भी।

Play StoreApp Store
srimandir devotees