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संवत्सरी पर्व 2025 कब है?

संवत्सरी पर्व 2025 की तिथि, पूजा विधि, क्षमा याचना, तपस्या और आत्मशुद्धि के इस विशेष पर्व का धार्मिक महत्व जानें। यह दिन जीवन में शांति और करुणा का संदेश देता है।

संवत्सरी पर्व के बारे में

संवत्सरी पर्व जैन धर्म का प्रमुख उत्सव है, जो क्षमा याचना और आत्मशुद्धि का दिन माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु "मिच्छामि दुक्कडम्" कहकर सभी से क्षमा मांगते हैं और उपवास व प्रार्थना करते हैं।

1.संवत्सरी पर्व कब है?2.संवत्सरी पर्व 2025 का शुभ मुहूर्त3.क्या है संवत्सरी पर्व? 4.क्यों मनाते हैं संवत्सरी पर्व? 5.जानिए संवत्सरी पर्व का महत्व 6.इस पर्व पर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' का क्या उद्देश्य है? 7.'अवसर्पिणी काल' व 'उत्सर्पिणी काल' क्या है? 8.संवत्सरी पर धर्म कर्म से मिलेगा संपूर्ण चातुर्मास का पुण्यफल 9.कौन से लोग मनाते हैं संवत्सरी पर्व? 10.संवत्सरी पर्व की पूजा कैसे करें?11.संवत्सरी पर्व पूजा मंत्र12.संवत्सरी पर्व कैसे मनाते हैं?13.संवत्सरी पर्व के नियम 14.संवत्सरी पर्व का इतिहास15.संवत्सरी पर्व पर क्या करें 16.संवत्सरी पर्व पर क्या न करें17.संवत्सरी पर्व के उपाय18.संवत्सरी पर्व और जैन धर्म

संवत्सरी पर्व कब है?

श्वेतांबर जैन समुदाय के पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन को संवतसरी कहा जाता है। जैन धर्म के सभी लोगों के लिए यह त्योहार विशेष महत्व रखता है, और भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। इतना ही नहीं, इस महापर्व पर किए गए सभी अनुष्ठान मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलते हैं।

संवत्सरी पर्व 2025 का शुभ मुहूर्त

श्वेतांबर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक और दिगंबर भाद्रपद शुक्ल की पंचमी से चतुर्दशी तक पर्युषण पर्व मनाते हैं। श्वेतांबर समाज के व्रत समाप्त होने यानि संवत्सरी पर्व के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।

'संवत्सरी पर्व' 28 अगस्त 2025, बृहस्पतिवार को शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर मनाया जायेगा।

  • पञ्चमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 27, 2025 को 03:44 पी एम बजे से
  • पञ्चमी तिथि समाप्त - अगस्त 28, 2025 को 05:56 पी एम बजे तक

पर्यूषण पर्व का आरंभ 21 अगस्त 2025, बृहस्पतिवार यानि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से हुआ था।

  • त्रयोदशी तिथि का प्रारम्भ - अगस्त 20, 2025 को 01:58 पी एम बजे से होगा।
  • त्रयोदशी तिथि का समाप्त - अगस्त 21, 2025 को 12:44 पी एम बजे पर होगा।

क्या है संवत्सरी पर्व?

संवत्सरी पर्व एक प्रकार से आत्मनिरीक्षण और आत्मशुद्धि का पर्व है। जैन धर्म के अनुसार, यह वह दिन होता है जब मनुष्य को अपने वर्ष भर में किए गए सभी पाप, अपराध और त्रुटियों के लिए क्षमा मांगनी चाहिए – न केवल दूसरों से, बल्कि स्वयं से भी।

श्वेतांबर परंपरा में यह पर्व पर्यूषण के अंतिम दिन, यानी आठवें दिन मनाया जाता है। इस दिन जैन साधु-साध्वियां और गृहस्थ सभी त्याग, तप, उपवास, ध्यान, स्वाध्याय और क्षमा याचना जैसे कार्य करते हैं।

एक-दूसरे से यह वाक्य कहकर क्षमा मांगी जाती है – “मिच्छामि दुक्कडम्”

(यदि मेरे किसी कार्य, वचन या मन से आपको किसी भी प्रकार का दुख पहुँचा हो, तो मैं उसके लिए क्षमा चाहता हूँ।)

क्यों मनाते हैं संवत्सरी पर्व?

संवत्सरी पर्व मनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य है – अपने जीवन का आत्मावलोकन करना, दोषों का प्रायश्चित करना और दूसरों को दिल से क्षमा करना।

यह पर्व हमें भगवान महावीर स्वामी के उपदेशों की स्मृति दिलाता है, जैसे –

  • अहिंसा परमो धर्म
  • जिओ और जीने दो
  • आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो (संपिक्खए अप्पगमप्पएणं)

संवत्सरी का दिन जैन समाज में धर्म, करुणा और मैत्री भावना का विस्तार करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व सामाजिक समरसता, अहंकार-त्याग, और आध्यात्मिक जागरण का माध्यम बनता है।

जानिए संवत्सरी पर्व का महत्व

1. आत्मशुद्धि और आत्मबोध संवत्सरी हमें आत्मा की गहराई में झांकने और उसके दोषों को देखने का अवसर देती है। यह दिन बताता है कि आत्मा की सच्ची उन्नति केवल तप और त्याग से नहीं, बल्कि सच्ची क्षमा और नम्रता से भी होती है।

2. क्षमा का आदान-प्रदान वर्ष भर में जाने-अनजाने में हम कई लोगों को दुख पहुंचाते हैं। संवत्सरी का दिन इस भूल-चूक के लिए क्षमा मांगने और देने का दिन है। इससे हृदय में जमा द्वेष समाप्त होता है और मन शांत होता है।

3. तप और साधना का बल इस दिन जैन साधु-साध्वियां कठिन तप, उपवास और धर्म स्थल भ्रमण करते हैं। गृहस्थ भी धर्म श्रवण, ध्यान, उपवास, संयम, दान और ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।

4. सामाजिक समरसता संवत्सरी का क्षमा पर्व सभी मतभेद मिटाकर मेल-मिलाप का अवसर प्रदान करता है। जब व्यक्ति “मिच्छामि दुक्कडम्” कहता है, तो वह संबंधों में सौहार्द की एक नई शुरुआत करता है।

5. महावीर स्वामी की शिक्षाओं का पालन महावीर स्वामी के सिद्धांत – करुणा, मैत्री, तप, क्षमा और आत्मदर्शन – इस पर्व के केंद्र में हैं। यह पर्व उनके संदेशों को जीवन में उतारने का विशेष अवसर होता है।

इस पर्व पर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' का क्या उद्देश्य है?

पर्युषण पर्व के समापन पर 'विश्व-मैत्री दिवस' या 'संवत्सरी पर्व' मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा-याचना करते हैं। जैन धर्म के अनुसार 'मिच्छामि का अर्थ क्षमा करने और 'दुक्कड़म' का अर्थ भूल से है। यानि इसका अर्थ है- मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं भूल के लिए मुझे क्षमा कीजिए।

आपको बता दें कि 'मिच्छामि दुक्कड़म' प्राकृत भाषा का शब्द है। माना जाता है कि इसके उच्चारण से सभी नकारात्मक भाव नष्ट होते हैं, और मन निर्मल हो जाता है। साथ ही सबके प्रति मैत्रीभाव भी उत्पन्न होता है।

'अवसर्पिणी काल' व 'उत्सर्पिणी काल' क्या है?

कालचक्र के अनुसार समय की सुई जैसे पहले नीचे की ओर, और फिर उपर की और गति करती है, उसी तरह से यहां काल को 'अवसर्पिणी काल' व 'उत्सर्पिणी काल', यानि दो वर्गों में विभाजित किया गया है।

अवसर्पिणी काल में धर्म ऊपर से नीचे की ओर आता है, जोकि प्रकृति के पतन को दर्शाता है, वहीं उत्सर्पिणी काल में धर्म का उत्थान होता है। सरल भाषा में समझें तो अवसर्पिणी काल में प्रकृति और मनुष्य दुख की ओर बढ़ रहे होते हैं, और उत्सर्पिणी काल में सुख की ओर अग्रसर होते हैं। और जब भीषण गर्मी से तपती धरती को मेघ हरा-भरा कर देते हैं, और प्रकृति अपने उत्थान यानि सौंदर्य को पुनः प्राप्त कर लेती है, तब अहिंसा, प्रेम, सद्भावना भाइचारे का पर्व 'संवत्सरी' के रूप में मनाया जाता है।

संवत्सरी पर धर्म कर्म से मिलेगा संपूर्ण चातुर्मास का पुण्यफल

जैन धर्म के अनुसार चातुर्मास प्रारंभ होने के 50वें दिन इस पर्व को मनाया जाता है। संपूर्ण चतुर्मास का समय ही आत्मशुद्धि के लिए उत्तम माना जाता है, लेकिन जो जातक चतुर्मास का पालन नहीं कर पाते हैं, वे पर्युषण के आठ दिनों में सभी नियमों का पालन करके अपनी आत्मशुद्धि कर सकते हैं।

यदि किसी कारणवश पर्युषण के आठ दिनों में भी आप सभी नियमों का पालन न कर सकें, तो संवत्सरी के आठ प्रहरों में सात प्रहर धर्म-कर्म करते हुए आठवें प्रहर में आत्मबोध कर सकते हैं।

कौन से लोग मनाते हैं संवत्सरी पर्व?

संवत्सरी पर्व मुख्य रूप से श्वेतांबर जैन समुदाय द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व पर्यूषण पर्व के आठवें दिन आता है, और इसे ‘क्षमापर्व’ या ‘संवत्सरी महापर्व’ के रूप में मनाया जाता है।

  • श्वेतांबर जैन अनुयायी इस दिन त्याग, तपस्या, आत्मचिंतन, स्वाध्याय और क्षमा याचना करते हैं।
  • जैन साधु-साध्वियां इस दिन कठोर उपवास, ध्यान, और गहन आत्ममंथन करते हैं।
  • जैन गृहस्थजन भी इस दिन उपवास, पूजा-पाठ, शास्त्र श्रवण, दया और करुणा का व्यवहार, तथा क्षमा याचना करते हैं।
  • हालाँकि, जैन धर्म की मूल भावना ‘अहिंसा परमो धर्मः’ और ‘क्षमायाचना’ होने के कारण, अब यह पर्व सभी समुदायों में आत्म-परिष्कार और क्षमा की भावना के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।

संवत्सरी पर्व की पूजा कैसे करें?

संवत्सरी का पर्व मुख्यतः आत्ममंथन और क्षमा याचना का दिन है, लेकिन इसे मनाने की एक साधना-पूरक विधि भी है। गृहस्थों के लिए यह पूजा विधि इस प्रकार है:

संवत्सरी पूजा विधि

  • प्रात: काल स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • शांत स्थान पर दीपक जलाकर भगवान महावीर की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • सामने पवित्र जल, फूल, फल, चावल (अक्षत), धूप, दीप और नैवेद्य रखें।
  • कुछ देर शांति से बैठकर, मन, वचन और काया से हुई भूलों का चिंतन करें।
  • फिर निम्न मंत्रों के साथ भगवान की पूजा करें।

संवत्सरी पर्व पूजा मंत्र

संवत्सरी पूजा में क्षमायाचना और ऋषि परंपरा से जुड़े निम्न मंत्रों का उच्चारण करना पुण्यदायक माना जाता है: 1. क्षमायाचना मंत्र

  • “मिच्छामी दुक्कड़म” (यदि मैंने मन, वचन या काया से आपको जाने-अनजाने में कोई भी कष्ट पहुँचाया हो, तो मैं उसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।)

2. सात ऋषियों का स्मरण मंत्र

  • “कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥”

3. महावीर स्वामी स्मरण मंत्र

  • “णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।”

इन मंत्रों के साथ, आत्मचिंतन करते हुए अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह जैसे महावीर स्वामी के सिद्धांतों को हृदय में धारण करें।

संवत्सरी पर्व कैसे मनाते हैं?

संवत्सरी पर्व मनाने की विधि का सार है – त्याग, तप, क्षमा और आत्मनिरीक्षण। यह पर्व इस प्रकार मनाया जाता है:

गृहस्थों के लिए

  • इस दिन व्रत (उपवास) करें या केवल फलाहार लें।
  • सुबह पूजा करके दिनभर स्वाध्याय, शास्त्र श्रवण, ध्यान और धार्मिक सत्संग करें।
  • मन, वाणी और व्यवहार से शुद्ध रहने का प्रयास करें।
  • सभी परिचितों, मित्रों, रिश्तेदारों और परिजनों से “मिच्छामि दुक्कडम्” कहकर क्षमा याचना करें।
  • किसी को कष्ट पहुँचाया हो – प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से – तो ह्रदय से क्षमा मांगें।
  • जरूरतमंदों को दान, वस्त्र या अन्न देकर पुण्य लाभ प्राप्त करें।

साधु-साध्वियों के लिए

  • वर्षभर की साधना को और अधिक कठोर रूप देकर यह दिन मनाते हैं।
  • प्रतिक्रमण, प्रायश्चित्त, आत्मशुद्धि और घोर तपस्या करते हैं।
  • इस दिन वे अधिक से अधिक धर्म स्थलों का भ्रमण करते हैं और मैत्रीभाव को अपनाते हैं।

संवत्सरी पर्व के नियम

संवत्सरी पर्व आत्मशुद्धि, क्षमा और आत्मचिंतन का पर्व है। इस दिन कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:

  • सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • पूरे दिन व्रत रखें। यदि संभव हो तो निर्जल उपवास करें, अन्यथा केवल फलाहार लें।
  • मन, वचन और शरीर से किसी को दुख न पहुँचाएँ।
  • अपशब्द, कटुवाणी और क्रोध से दूर रहें।
  • दिन भर पूजा, ध्यान, स्वाध्याय और आत्ममंथन में समय बिताएँ।
  • दिन के अंत में "मिच्छामि दुक्कडम्" कहकर सब से क्षमा याचना करें।
  • सबके प्रति मैत्री और क्षमाभाव रखें।

संवत्सरी पर्व का इतिहास

  • संवत्सरी पर्व जैन धर्म में "पर्युषण पर्व" के अंतिम दिन के रूप में मनाया जाता है। प्राचीनकाल में वर्षा ऋतु में जैन मुनिगण एक ही स्थान पर "चातुर्मास" करते थे। इस अवधि के अंत में वे अनजाने में हुई हिंसा या अपराध के लिए समस्त जीवों से क्षमा याचना करते थे। यही परंपरा संवत्सरी पर्व के रूप में स्थापित हुई।
  • भगवान महावीर के सिद्धांत "अहिंसा परमो धर्मः" और "क्षमा वीरस्य भूषणम्" इस पर्व का मूल आधार हैं। यह दिन आत्मविश्लेषण, पश्चाताप और क्षमा की भावना को सुदृढ़ करता है।

संवत्सरी पर्व पर क्या करें

  • प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
  • तीर्थंकरों की पूजा, ध्यान और व्रत का संकल्प लें।
  • तप, दान, जप और स्वाध्याय करें।
  • परिवार, मित्रों और समाज के लोगों से "मिच्छामि दुक्कडम्" कहकर क्षमा माँगें।
  • किसी से बैर, द्वेष या कटुता हो तो उसे प्रेमपूर्वक समाप्त करें।
  • जीवन में शांति, संयम और आत्मनियंत्रण का अभ्यास करें।

संवत्सरी पर्व पर क्या न करें

  • मांसाहार, मद्यपान और तामसिक भोजन का त्याग करें।
  • झूठ बोलना, चुगली करना या किसी की निंदा न करें।
  • मानसिक या शारीरिक रूप से किसी को पीड़ा न पहुँचाएँ।
  • क्रोध, लालच, मोह, अहंकार से बचें।
  • पूजा-पाठ बिना स्नान के न करें, अपवित्र वस्त्र न पहनें।
  • समय व्यर्थ करने वाले कार्यों से दूर रहें।

संवत्सरी पर्व के उपाय

  • गौ, ब्राह्मण, साधु-संतों को अन्न, वस्त्र या धन का दान करें।
  • जरूरतमंदों की सेवा करें और पशु-पक्षियों को भोजन-पानी दें।
  • "णमो अरिहंताणं" या "उत्तम क्षमा धर्म की जय" मंत्र का जाप करें।
  • संकल्प लें कि भविष्य में कोई ऐसा कार्य न करें जिससे किसी को कष्ट पहुँचे।
  • आत्मा के कल्याण के लिए आत्मचिंतन करें और अपने दोषों को स्वीकार कर उनसे मुक्ति का मार्ग अपनाएँ।

संवत्सरी पर्व और जैन धर्म

संवत्सरी पर्व जैन धर्म के मूल तत्वों को जीवन में उतारने का दिन है। यह केवल एक पर्व नहीं, बल्कि एक आचार, एक साधना, और आत्मा के शुद्धिकरण की प्रक्रिया है।

जैन धर्म में इसे आत्मशुद्धि, क्षमायाचना और धर्म पालन के रूप में देखा जाता है। "जीवों को न मारो" और "सबके प्रति प्रेम रखो" — यही इस दिन का सच्चा संदेश है।

तो ये थी जैन धर्म के पवित्र संवत्सरी पर्व से जुड़ी संपूर्ण जानकारी। ये पर्व बुरे कर्मों का नाश करके हमें सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। आप भी महावीर स्वामी द्वारा बताये गये सद्मार्ग पर चलते हुए इस पर्व के सभी नियमों का पालन करें, और नेक इंसान बनें।

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Published by Sri Mandir·August 11, 2025

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