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ऋषि पंचमी 2025 कब है?

ऋषि पंचमी 2025 की तिथि, व्रत विधि, पूजा के नियम और सप्त ऋषियों की पूजा से जुड़ी संपूर्ण जानकारी प्राप्त करें। यह दिन महिलाओं के लिए विशेष रूप से पवित्र और शुभ माना जाता है

ऋषि पंचमी के बारे में

ऋषि पंचमी भाद्रपद शुक्ल पंचमी को मनाई जाती है। इस दिन सप्तऋषियों की पूजा का विशेष महत्व है। महिलाएं व्रत रखकर पापों से मुक्ति और परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। स्नान, दान और जप का पुण्य फल मिलता है।

ऋषि पंचमी 2025 में कब है?

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सप्त ऋषियों का आशीर्वाद मिलता है, और स्त्रियों के रजस्वला होने के दौरान अनजाने में हुई भूल के कारण उससे लगने वाले पापों व दोषों से छुटकारा मिलता है।

ऋषि पंचमी कब है

ऋषि पञ्चमी, 28 अगस्त, 2025, बृहस्पतिवार को मनाई जाएगी।

  • ऋषि पञ्चमी पूजा मुहूर्त 10:43 ए एम से 01:15 पी एम तक रहेगा।
  • पूजा अवधि 02 घंटे 33 मिनट होगी।
  • पञ्चमी तिथि 27 अगस्त 2025, बुधवार को दोपहर 03 बजकर 44 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • पञ्चमी तिथि का समापन 28 अगस्त, 2025, बृहस्पतिवार को शाम 05 बजकर 56 मिनट पर होगा।

ऋषि पंचमी के अन्य शुभ मुहूर्त

मुहूर्त 

समय

ब्रह्म मुहूर्त

04:07 ए एम से 04:52 ए एम तक

प्रातः सन्ध्या

04:29 ए एम से 05:37 ए एम तक

अभिजित मुहूर्त

11:33 ए एम से 12:24 पी एम तक

विजय मुहूर्त

02:06 पी एम से 02:57 पी एम तक

गोधूलि मुहूर्त

06:21 पी एम से 06:44 पी एम तक

सायाह्न सन्ध्या

06:21 पी एम से 07:29 पी एम तक

अमृत काल

01:46 ए एम, अगस्त 29 से 03:34 ए एम, 29 अगस्त तक

निशिता मुहूर्त

11:37 पी एम से 12:22 ए एम, 29 अगस्त तक

रवि योग

08:43 ए एम से 05:37 ए एम, 29 अगस्त तक

क्या है ऋषि पंचमी?

ऋषि पंचमी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण धार्मिक व्रत है, जो विशेष रूप से स्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह पर्व सप्तऋषियों को समर्पित होता है — कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और वशिष्ठ।

क्यों मनाते हैं ऋषि पंचमी?

यह व्रत महिलाओं द्वारा उस रजस्वला दोष के निवारण के लिए किया जाता है जो मासिक धर्म के दौरान अनजाने में पूजा, रसोई या अन्य वर्जित कार्य करने पर लग सकता है। साथ ही इस दिन सप्तऋषियों को श्रद्धा से याद कर उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

ऋषि पंचमी का महत्व

ऋषि पंचमी व्रत महिलाओं के लिए विशेष महत्त्व रखता है। मान्यता है कि मासिक धर्म के दौरान रसोई या पूजा स्थल पर प्रवेश करने व कोई अन्य वर्जित कार्य करने से रजस्वला दोष लग सकता है, जिसे इस व्रत के प्रभाव से समाप्त किया जा सकता है।

मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और सप्तऋषियों का आशीर्वाद मिलता है। हालांकि गंगा स्नान संभव न होने पर गंगाजल डालकर स्नान करने से भी वही फल प्राप्त किया जा सकता है।

  • यह व्रत शुद्धि, प्रायश्चित्त और आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक माना जाता है।
  • ऋषि पंचमी के दिन स्नान, दान, पूजा और व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है।
  • स्त्रियाँ इस दिन व्रत रखकर पूर्व जन्मों के कर्म दोष व अपवित्रता को दूर करने का प्रयास करती हैं।
  • यह व्रत सदाचार, संयम और तपस्या का प्रतीक है, जो मन को पवित्र करता है।

ऋषि पंचमी का धार्मिक महत्व

  • इस दिन सप्तऋषियों के चित्र या प्रतिमा की स्थापना करके उन्हें अर्ध्य, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित किए जाते हैं।
  • व्रती स्त्रियाँ सुबह स्नान कर के शुद्ध वस्त्र पहनती हैं और गंगाजल से स्नान या छिड़काव करती हैं।
  • कथा श्रवण, हवन और ब्राह्मण को भोजन एवं वस्त्रदान करने का भी विशेष महत्व है।
  • रात्रि में सप्तऋषियों का ध्यान कर व्रत का समापन किया जाता है।

कहाँ और कौन से लोग मनाते हैं ऋषि पंचमी?

  • ऋषि पंचमी व्रत उत्तर भारत, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में विशेष श्रद्धा से मनाया जाता है।
  • यह पर्व मुख्यतः हिंदू महिलाएं करती हैं, विशेष रूप से वे जो अपने पारंपरिक कर्तव्यों और धार्मिक शुद्धता को लेकर जागरूक रहती हैं।
  • महाराष्ट्र, कर्नाटक व गुजरात में भी यह पर्व समर्पण और पवित्रता के प्रतीक रूप में मनाया जाता है।

प्रतिवर्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी तिथि को मनाई जाने वाली ऋषि पंचमी भारतीय सनातन परंपरा का एक विशेष पर्व है। यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा सप्त ऋषियों एवं माता अरुंधति की कृपा पाने, पापों के नाश तथा मानसिक-शारीरिक शुद्धता के लिए किया जाता है।

ऋषि पंचमी पूजा की सामग्री लिस्ट

पूजा में उपयोग होने वाली समस्त सामग्री को पहले से एकत्रित कर लेना आवश्यक होता है। निम्न सामग्री आपके पूजन में आवश्यक होगी —

  • रोली, मौली, कुमकुम, चंदन
  • हल्दी, अक्षत (चावल), पुष्प व पुष्पमाला
  • अगरबत्ती, धूप, दीपक
  • जल से भरा हुआ लोटा
  • तांबे या पीतल का कलश व नारियल
  • समा के चावल
  • सोलह श्रृंगार का सामान (माता गौरी व अरुंधति के लिए)
  • दूध, दही, शहद, घी, शक्कर (पंचामृत)
  • भगवान गणेश और माता गौरी की प्रतिमा या चित्र
  • सप्त ऋषियों की प्रतीकात्मक स्थापना हेतु सुपारी
  • पूजा की सुपारी, जनेऊ (यज्ञोपवीत)
  • श्वेत वस्त्र या अंगवस्त्र
  • केला, सेब जैसे फल
  • सूखे मेवे (काजू, छुहारा आदि)
  • ब्राह्मण को दान हेतु वस्त्र व भोजन सामग्री
  • पूजा आसन व पीला कपड़ा
  • ऋषि पंचमी व्रत कथा की पुस्तक

ऋषि पंचमी व्रत कैसे करें?

यह व्रत विशेषकर स्त्रियों द्वारा रखा जाता है। इस दिन सुबह स्नान आदि कर स्वयं को शुद्ध कर व्रत का संकल्प लें और नीचे दी गई पूजा विधि का पालन करें।

ऋषि पंचमी पूजा विधि

प्रारंभिक तैयारी

  • प्रातःकाल उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो मिट्टी और दातून से शरीर की शुद्धि करें।
  • पूजा स्थान पर चौकोर आसन बिछाकर पीले रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • समा के चावल से आठ पुंज बनाएं – सात सप्त ऋषियों के लिए और एक माता अरुंधति के लिए।

स्थापना

  • चावल के पुंजों पर सुपारी रखकर सप्त ऋषियों की स्थापना करें।
  • साथ में माता गौरी और भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र रखें।
  • एक कलश स्थापित करें — उसमें जल, सुपारी, सिक्का, कुशा डालकर नारियल रखें।

स्नान व श्रृंगार

  • सप्त ऋषियों, माता गौरी और अरुंधति माता को जल या दूध से स्नान कराएं।
  • फिर चंदन, रोली, कुमकुम, पुष्प, अक्षत से श्रृंगार करें।
  • सभी को जनेऊ (यज्ञोपवीत) पहनाएं।
  • माता को सोलह श्रृंगार अर्पित करें।

भोग अर्पण

  • नैवेद्य में फल, मिष्ठान, और सूखे मेवे (जैसे काजू, छुहारा) चढ़ाएं।

आरती और मंत्रोच्चारण

  • दीप, धूप जलाकर आरती करें और पूजा में निम्न सप्तऋषि मंत्र का जाप करें —

  • कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥ दहन्तु पापं सर्वं गृह्णन्त्वर्ध्यं नमो नमः॥

  • भक्ति भाव से भगवान गणेश, माता गौरी, माता अरुंधति और सप्त ऋषियों की आरती करें।

व्रत कथा और क्षमायाचन

  • ऋषि पंचमी व्रत कथा का पाठ करें या सुनें।
  • अंत में हाथ जोड़कर सभी ऋषियों से अपनी त्रुटियों के लिए क्षमा मांगें।

ऋषि पंचमी के पूजन मंत्र

पूजा के दौरान श्रद्धापूर्वक निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:

  • सप्त ऋषियों के लिए:

कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः। जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥

  • क्षमायाचन मंत्र:

यदकिञ्चित् व्रतं देव! यथाशक्ति कृतं मया। तत्सर्वं सम्यगस्तु त्वं प्रसन्नो भव सुप्रभो॥

व्रत के विशेष नियम और लाभ

  • यह व्रत रजस्वला दोष को दूर करने के लिए विशेष माना जाता है।
  • गंगाजल से स्नान और सप्त ऋषियों की पूजा से पापों का शमन होता है।
  • विवाहित स्त्रियों को वैवाहिक सुख, संतान सुख एवं पारिवारिक समृद्धि मिलती है।
  • अंत में ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र, दक्षिणा अर्पण करना अत्यंत शुभकारी होता है।

ऋषि पंचमी मनाने के नियम

ऋषि पंचमी व्रत करने के लिए कुछ नियमों और मर्यादाओं का पालन अनिवार्य होता है —

  • प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त में उठें और गंगाजल मिले जल से स्नान करें। यदि संभव हो तो मिट्टी और दातून से शरीर की शुद्धि करें।
  • सादा सात्विक आहार लें; व्रती को दिनभर निराहार रहना चाहिए और केवल फलाहार या पंचगव्य (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) ग्रहण करना चाहिए।
  • चौकोर पीले वस्त्र का आसन बिछाकर सप्त ऋषियों के प्रतीकस्वरूप आठ चावल के पुंज बनाएं।
  • स्नान, तिलक, वस्त्र, पुष्प, माला, जनेऊ, और सोलह श्रृंगार अर्पण के साथ पूजा विधिपूर्वक सम्पन्न करें।
  • ब्राह्मण को भोजन, वस्त्र, दक्षिणा दान करना अनिवार्य माना गया है।
  • ऋषि पंचमी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
  • इस दिन स्त्रियों को धार्मिक वर्जनाओं से मुक्त होने के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।

ऋषि पंचमी पर विशेष उपाय

इस शुभ दिन पर कुछ विशेष उपाय करने से शारीरिक, मानसिक और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति होती है:

  • गंगाजल से स्नान करने से सारे शारीरिक दोष दूर होते हैं।
  • सप्त ऋषियों को वस्त्र, यज्ञोपवीत व श्वेत पुष्प अर्पित करें — यह पाप नाशक माना जाता है।
  • कन्याओं को भोजन व उपहार देना पुण्यकारी होता है और संतान सुख प्रदान करता है।
  • श्वेत वस्त्र दान करें, विशेषकर ब्राह्मण स्त्रियों को — इससे रजस्वला दोष से मुक्ति मिलती है।
  • तुलसी में जल चढ़ाकर "ॐ विष्णवे नमः" का जाप करें — पारिवारिक अशांति दूर होती है।
  • पंचगव्य का सेवन करने से आंतरिक शुद्धि होती है और पूर्व जन्म के दोष मिटते हैं।
  • "कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो..." मंत्र का 11 बार जाप करें — यह विशेष प्रभावकारी है।

ऋषि पंचमी की परंपरा

  • ऋषि पंचमी केवल पूजा का दिन नहीं, बल्कि यह सनातन संस्कृति की नारी के प्रति श्रद्धा, आत्मचिंतन और शुद्धि की परंपरा को दर्शाता है।
  • यह परंपरा विशेष रूप से स्त्रियों के लिए बनाई गई है, जो मासिक धर्म के दौरान अनजाने में धर्म नियमों का उल्लंघन कर बैठती हैं। ऋषि पंचमी उन्हें आत्मशुद्धि और क्षमा प्राप्ति का अवसर देता है।
  • इस दिन स्त्रियां अपनी शारीरिक पवित्रता, धार्मिक शुद्धता और मानसिक निर्मलता की कामना से व्रत करती हैं।
  • इस परंपरा में माता अरुंधति की पूजा यह दर्शाती है कि नारी भी धर्म, साधना और तप की प्रतीक है।
  • गृहस्थ धर्म में सात ऋषियों और उनकी पत्नियों की उपस्थिति एक आदर्श जीवन शैली की प्रेरणा देती है।

ऋषि पंचमी का इतिहास

ऋषि पंचमी व्रत का उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह व्रत विशेषतः "स्कंद पुराण", "पद्म पुराण" और "गरुड़ पुराण" में वर्णित है। इसके पीछे एक लोककथा भी प्रसिद्ध है..

प्राचीन कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण परिवार की कन्या रजस्वला अवस्था में अज्ञानतावश रसोई कार्यों में संलग्न हो गई। विवाह के बाद जब वह गम्भीर रोग से पीड़ित हुई, तब विद्वानों ने बताया कि पूर्व जन्म में ऋषियों का अपमान होने के कारण यह दोष उत्पन्न हुआ है। तब उसके परिजनों ने ऋषि पंचमी का व्रत कर उसे मुक्त कराया।

इस कथा से स्पष्ट होता है कि यह व्रत अनजाने में किए गए पापों के प्रायश्चित हेतु है, जिसमें श्रद्धा और क्षमा भावना प्रमुख है। ऋषि पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि धार्मिक अनुशासन, नारी गरिमा और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। इसके नियमों का पालन और विशेष उपायों का संपादन जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।

इस दिन की पूजा विधि, व्रत नियम और परंपरा हमें यह सिखाते हैं कि त्रुटियों की क्षमा और शुद्धि का मार्ग सदा खुला होता है, बस श्रद्धा और समर्पण की आवश्यकता है।

तो भक्तों, ये थी ऋषि पंचमी के शुभ मुहूर्त से जुड़ी जानकारी। हमारी कामना है कि आपकी उपासना सफल हो, और आपको इस व्रत का संपूर्ण फल मिले।

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Published by Sri Mandir·August 11, 2025

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