होली से जुड़ी पौराणिक कथा

होली से जुड़ी पौराणिक कथा

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होली की पौराणिक कथा (Holika Dahan Ki Kahani)

यूँ तो होली पर सबसे पहले भक्त प्रह्लाद और भगवान नरसिंह की कथा याद आती है। लेकिन इसके साथ ही कुछ अन्य पौराणिक कथाएं भी कही-सुनी जाती रही हैं, जिनका जिक्र हमारे ग्रंथों में भी मिलता है। आज हम आपको ऐसी ही चार कथाएं इस लेख में लेकर आएं हैं।

पहली कथा- राधा - कृष्ण की कथा हजारों वर्षों से मनाया जाने वाला होली का पर्व राधा और कृष्ण के पावन प्रेम से भी जुड़ा हुआ है। आज भी मथुरा-वृन्दावन की होली रंगों से कहीं अधिक राधा और कृष्ण के प्रेम के रंग में रंगी हुई प्रतीत होती है। कहते हैं कि श्रीकृष्ण के श्याम रंग के कारण राधा उन्हें चिढ़ाया करती थी। चिढ़ कर जब श्रीकृष्ण माँ यशोदा से पूछतें हैं कि मैया “राधा गोरी क्यों है? और मेरा रंग काला क्यों हैं”। तब माँ यशोदा ने कृष्ण जी से कहा कि “राधा के मुख पर अपने पसंद का कोई भी रंग तुम लगा सकते हो“। यह सुन कर श्री कृष्ण अत्यंत प्रसन्न हो गए और उन्होंने राधा के साथ ही अन्य गोपियों को भी रंग दिया। ऐसा माना जाता है कि वो दिन फागुन के महीने का ही दिन था। इसी मान्यता के साथ होली मनाने की परम्परा शुरू हुई।

दूसरी कथा- शिव पार्वती एवं कामदेव की कथा शिव और पार्वती से संबंधित एक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी किन्तु शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव जी ने पार्वती की सहायता करने के लिए एक पुष्प बाण चलाया, जिससे शिव जी की तपस्या भंग हो गयी। तब शिवजी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म हो जाने पर उनकी पत्नी रति अत्यंत विलाप करने लगी और उन्होंनें शिव जी से कामदेव को जीवित करने की प्रार्थना की। तब शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित कर दिया। माना जाता है कि यह दिन होली का ही दिन था।

तीसरी कथा- कृष्ण एवं पूतना की कथा जब अत्याचारी राजा कंस नन्हें कृष्ण की हत्या के लिए पूतना नामक राक्षसी को भेजता है तो वह सुंदर रूप धारण कर बालक कृष्ण को स्तनपान की ओट में विषपान कराने का प्रयास करती है। जिसमें बालक कृष्ण अपनी अद्भुत लीला द्वारा पूतना का वध कर देते हैं। मान्यता है कि यह भी फाल्गुन पूर्णिमा का ही दिन था।

चौथी कथा- राक्षसी ढूंढी की कथा राजा पृथु के राज्य काल में ढूंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। घोर तप द्वारा उसने शिव जी से वरदान प्राप्त कर लिया था कि कठोर सर्दी, गर्मी एवं वर्षा, किसी भी मौसम में कोई भी देवता, मनुष्य, अस्त्र या शस्त्र उसे नहीं मार सकता। लेकिन शिव जी ने ढूंढी को वरदान देते समय इस वरदान का समाधान भी दिया था कि जहां बच्चों का समूह हुड़दंग और हल्ला करेगा वहां ढूंढी की शक्तियां निष्फल हो जाएँगी।

जब राजा पृथु ने ढूंढी के अत्याचारों से मुक्ति हेतु राजपुरोहित से उपाय पूछा। तब पुरोहित जी ने कहा कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर, जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी, न ही वर्षा, तब कई सारे बच्चें एक-एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। और उन्हें एक जगह पर रखकर, घास-फूस के साथ जला दें। ऐसा करते हुए वे सभी ऊँचे स्वर में तालियाँ बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें और तेज आवाज़ में हँस-बोल कर शोर करें तो राक्षसी ढूंढी की मृत्यु निश्चित है। इस प्रकार पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और और राक्षसी ढूंढी मृत्यु को प्राप्त हुई। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चें शोरगुल एवं नाच-गाना करते हैं।

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