पुरी की प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 में कब है? जानिए इसकी तिथि, धार्मिक महत्व, तीनों रथों का विवरण और इससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं, जो इसे खास बनाती हैं।
रथ यात्रा विशेष रूप से ओडिशा के पुरी में मनाई जाती है। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं। मान्यता है इस यात्रा में शामिल होने से मनोकामनाएं पूरी होती है। इस रथ यात्रा का इतिहास और इसकी परंपराएं बहुत अद्भुत हैं। यदि आप जानना चाहते हैं इस यात्रा के बारे में और अधिक जानकारी तो पढ़ें हमारे इस लेख को और जानें सब कुछ।
जगन्नाथ रथ यात्रा भारत के ओडिशा राज्य के पुरी शहर में हर वर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाने वाला एक प्रसिद्ध हिंदू पर्व है। यह यात्रा भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण का रूप), उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के सम्मान में निकाली जाती है। इस रथ यात्रा में तीनों देवताओं को भव्य लकड़ी के विशाल रथों में विराजमान कर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है।
वहां एक सप्ताह तक वे विश्राम करते हैं और फिर वापसी यात्रा (जिसे बहुदा यात्रा कहते हैं) के बाद जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं। रथों को खींचने का विशेष धार्मिक महत्व होता है। माना जाता है कि रथ खींचने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह यात्रा प्रेम, भक्ति और उत्साह का प्रतीक है। जानकारी अनुसार, लोगों का ऐसा मानना है कि भगवान अपने भक्तों के बीच आकर उन्हें दर्शन देने के लिए स्वयं निकलते हैं।
जगन्नाथ रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। 2025 में यह शुभ अवसर जून महीने के अंतिम सप्ताह में आ रहा है। उदयातिथि के अनुसार, यह पर्व 27 जून 2025 को मनाया जाएगा और रथ यात्रा नौ दिनों तक चलेगी, जोकि 5 जुलाई 2025 को समाप्त होगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास बहुत ही प्राचीन और रोचक है। यह धार्मिक उत्सव ओडिशा के पुरी में विशेष रूप से मनाया जाता है और इसकी उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मान्यताएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं। माना जाता है कि रथ यात्रा की शुरुआत 12वीं शताबदी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने की थी, जब उन्होंने पुरी में भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर बनवाया। मंदिर के निर्माण के बाद, रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई और यह उत्सव धीरे-धीरे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व प्राप्त करता गया।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, रथ यात्रा भगवान कृष्ण के मथुरा या वृंदावन लौटने के संकेत के रूप में देखी जाती है। यह यात्रा भगवान कृष्ण के घर लौटने की ओर एक रूपक है। वहीं, एक अन्य कथा के अनुसार, रथ यात्रा की शुरुआत राजा इंद्रद्युम्न से जुड़ी हुई है। राजा इंद्रद्युम्न भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे और उन्होंने पुरी में भगवान के लिए रथ यात्रा की परंपरा शुरू की थी।
पौराणिक कथाओं में भी रथ यात्रा की उत्पत्ति को लेकर एक विशेष कहानी है। एक बार देवी सुभद्रा ने पुरी नगर के दर्शन करने की इच्छा जताई, जिसके बाद भगवान जगन्नाथ और उनके भाई बलभद्र ने रथ में सुभद्रा को बैठाकर पुरी नगर की सैर कराई। यात्रा के दौरान वे गुंडिचा मंदिर में कुछ दिनों तक ठहरे, और तब से यह परंपरा हर साल रथ यात्रा के रूप में मनाई जाने लगी। जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचकर रथ खींचने का भाग्य प्राप्त करते हैं।
पुरी की रथ यात्रा एक अत्यंत पवित्र और भव्य हिंदू त्योहार है, जो हर साल ओडिशा के पुरी शहर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के सम्मान में मनाया जाता है। इस यात्रा में तीनों देवताओं को भव्य रथों में विराजमान कर मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह यात्रा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यधिक मूल्यवान है।
हर साल लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं और रथ खींचने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। यदि आप भी इस ऐतिहासिक और आध्यात्मिक यात्रा में शामिल होना चाहते हैं तो इसके लिए कुछ जरूरी तैयारी और कुछ ध्यान देने योग्य बातों को ध्यान में रखकर भाग ले सकते हैं। तो आइए जानें कैसे।
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जगन्नाथ रथयात्रा 2025: जानिए रथयात्रा की तिथि, यात्रा का मार्ग, धार्मिक महत्व और इससे जुड़ी प्राचीन परंपराएं। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के भव्य उत्सव की पूरी जानकारी।
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