क्या आप जानते हैं आषाढ़ अमावस्या 2025 का रहस्य? जानिए इसकी तिथि, महत्व, पूजन विधि और पितृ तर्पण से जुड़ी खास परंपराएं
आषाढ़ अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की अंतिम तिथि होती है। यह दिन पितरों की शांति के लिए तर्पण, स्नान और दान-पुण्य के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन पीपल वृक्ष की पूजा का भी महत्व है।
नमस्कार दोस्तों, वैसे तो पूरे आषाढ़ मास में हिंदू धर्म के लोग कई तरह के अनुष्ठान एवं पूजा-पाठ करते हैं, लेकिन इनमें आषाढ़ अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। आषाढ़ मास की अमावस्या तिथि को पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए विशेष तौर पर मनाया जाता है। उदयव्यापिनी तिथि होने के कारण आषाढ़ अमावस्या आषाढ़ अमावस्या के एक दिन बाद मानी जाएगी।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:47 ए एम से 04:28 ए एम |
प्रातः सन्ध्या | 04:08 ए एम से 05:09 ए एम |
अभिजित मुहूर्त | कोई नहीं |
विजय मुहूर्त | 02:18 पी एम से 03:13 पी एम |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:11 पी एम |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम |
अमृत काल | 11:34 पी एम से 01:02 ए एम, जून 26 |
निशिता मुहूर्त | 11:40 पी एम से 12:21 ए एम, जून 26 |
आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को आषाढ़ अमावस्या कहा जाता है। यह अमावस्या तिथि सूर्य के मिथुन राशि में रहते हुए आती है, जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, पितृ तर्पण और विशेष पूजा करने से अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
यह दिन विशेष रूप से पितृ दोष निवारण, कर्मों की शुद्धि और ईश्वरीय कृपा के लिए मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पितर पृथ्वी पर आते हैं और श्रद्धा से किया गया तर्पण उन्हें तृप्त करता है। साथ ही, भगवान शिव और तुलसी माता की पूजा इस दिन विशेष रूप से फलदायी मानी जाती है।
नमस्कार दोस्तों! आज हम आपके लिए पुण्यदायिनी आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि लेकर प्रस्तुत हुए हैं, अगर आप इस खास दिन पर ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करना चाहते हैं, तो इस लेख को ध्यान से पढ़ें।
तो यह थी आषाढ़ अमावस्या की पूजा विधि। अगर आप इस व्रत और पूजा से जुड़ी हुई महत्वपूर्ण जानकारी जानना चाहते हैं, तो इसके लिए श्री मंदिर के ऐप पर अवश्य जाएं।
आषाढ़ अमावस्या आध्यात्मिक उन्नति, पितृ शांति और ईश्वरीय कृपा पाने का एक दुर्लभ अवसर है। इस दिन विधिपूर्वक पूजा और व्रत करने से न केवल वर्तमान जीवन में सुख-शांति आती है, बल्कि पूर्वजों की आत्मा भी तृप्त होती है। ऐसी ही और पवित्र तिथियों की जानकारी व पूजन विधि के लिए जुड़े रहिए ‘श्री मंदिर’ के साथ।
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