image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

जगन्नाथ रथयात्रा 2025

क्या आप जानना चाहते हैं जगन्नाथ रथयात्रा 2025 की तिथि, यात्रा का पवित्र मार्ग और इससे जुड़ी अद्भुत धार्मिक परंपराएं? पढ़िए इस भव्य उत्सव से जुड़ी हर खास जानकारी एक ही जगह!

जगन्नाथ रथयात्रा के बारे में

जगन्नाथ रथयात्रा भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की भव्य यात्रा है, जो पुरी (ओडिशा) में हर वर्ष निकलती है। यह यात्रा आस्था, भक्ति और भव्यता का प्रतीक मानी जाती है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...

जगन्नाथ यात्रा: कब से है प्रारम्भ?

ओडिशा के पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा पूरे विश्व भर में प्रसिद्ध है। जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से होता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र एवं बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर नगर का भ्रमण करते हैं, और भ्रमण करते हुए अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं।

इस लेख में जानिए

  • साल 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा कब प्रारंभ होगी?
  • किन तीन शुभ योग में होगी जगन्नाथ रथ यात्रा?
  • कब होगी जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 वापसी?

साल 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा कब प्रारंभ होगी?

जैसा कि हमने आपको बताया कि जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया को प्रारंभ होती है। और इस साल पंचांग के आधार पर आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि 26 जून 2025 को दिन में 01 बजकर 24 मिनट पर प्रारंभ होगी, और ये तिथि 27 जून को सुबह 11 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के आधार पर आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया 27 जून 2025, शुक्रवार को मानी जा रही है, इस कारण जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से शुरू होगी।

इस दिन के शुभ मुहूर्त

मुहूर्तसमय
ब्रह्म मुहूर्त  03:48 ए एम से 04:29 ए एम तक
प्रातः सन्ध्या  04:08 ए एम से 05:10 ए एम तक
अभिजित मुहूर्त  11:34 ए एम से 12:28 पी एम तक
विजय मुहूर्त 02:18 पी एम से 03:13 पी एम तक
गोधूलि मुहूर्त  06:51 पी एम से 07:12 पी एम तक
सायाह्न सन्ध्या  06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक
अमृत काल  12:24 ए एम, जून 28 से 01:57 ए एम, जून 28 तक
निशिता मुहूर्त  11:41 पी एम से 12:22 ए एम, जून 28 तक

विशेष योग

सर्वार्थ सिद्धि योग  05:10 ए एम से 07:22 ए एम तक

कब होगी जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 वापसी?

साल 2025 में जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून से शुरू होगी और 05 जुलाई को समाप्त होगी।

भगवान जगन्नाथ अपने भाई- बहन के साथ 7 दिन तक गुंडीचा मंदिर में रहेंगे और फिर 8वें दिन 05 जुलाई, शनिवार को जगन्नाथ रथ यात्रा की वापसी होगी। वापसी में जगन्नाथ रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर से पुरी मंदिर पहुंचेगी। इसे बहुदा यात्रा कहा जाता है।

जगन्नाथ रथयात्रा क्या है?

जगन्नाथ रथयात्रा वह पर्व है जब भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण), उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने मंदिर से बाहर निकलकर अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) की यात्रा करते हैं। यह यात्रा विशाल और भव्य रथों में संपन्न होती है, जिसे लाखों श्रद्धालु खींचते हैं। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को होती है (जून-जुलाई माह में)। यह एकमात्र ऐसा अवसर होता है जब भगवान जगन्नाथ को आमजन उनके मंदिर से बाहर दर्शन कर सकते हैं।

जगन्नाथ यात्रा का धार्मिक महत्व

भारत के पवित्र चार धामों में से ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ पुरी एक अलौकिक स्थान है। हर वर्ष आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंख ध्वनि के साथ भव्य जगन्नाथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस अद्भुत व अविस्मरणीय यात्रा का दुनिया भर से लोग हिस्सा बनने के लिए आते हैं।

भगवान जगन्नाथ को उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ यात्रा पर ले जाया जाता है, जिसे जगन्नाथ यात्रा के नाम से जाना जाता है। इस रथ यात्रा में पूरी श्रद्धा और विधि विधान के साथ बलभद्र, सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ की आराधना की जाती है। इसमें भव्य एवं विशाल रथों को पुरी की सड़कों पर निकाला जाता है।

आपको बता दें, बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है, जिसका रंग लाल और हरा होता है, और यह यात्रा में सबसे आगे चलता है। सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है जो कि मध्य में चलता है और इसका रंग काला या नीला व लाल होता है। वहीं भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ कहा जाता हैं, जो सबसे अंत में चलता है, जिसका रंग लाल और पीला होता है।

अब अगर रथ की ऊंचाई के बारे में बात करें तो भगवान जगन्नाथ के रथ की ऊंचाई 45.6 फीट होती है। और बलभद्र जी के तालध्वज रथ की ऊंचाई 45 फीट ऊंची होती है। जबकि सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई 44.6 फीट होती है। ये सभी रथ नीम की पवित्र लकड़ियों से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहा जाता हैं।

इसके लिए शुभ नीम के पेड़ की पहचान की जाती है, जिसके लिए जगन्नाथ मंदिर एक खास समिति का गठन करती है। जबकि रथों के लिए काष्ठ का चयन बसंत पंचमी के दिन से ही शुरू हो जाता है और उनका निर्माण अक्षय तृतीया से प्रारम्भ होता है। इन रथों के निर्माण में खास बात ये है कि इसमें किसी भी प्रकार के कील,कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।

और जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं, तब ‘छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान संपन्न किया जाता है। इसके तहत पुरी के गजपति राजा पालकी में यहां आकर तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं, और सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं। यह रस्म यात्रा के दौरान दो बार होती है। एक बार जब यात्रा को गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है तब और दूसरी बार जब यात्रा को वापस जगन्नाथ मंदिर में ले जाया जाता है।

एक पहांडी नामक धार्मिक परंपरा के तहत बलभद्र, सुभद्रा एवं भगवान श्रीकृष्ण को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है। रथ यात्रा से एक दिन पहले श्रद्धालुओं द्वारा भगवान के आगमन के लिए गुंडीचा मंदिर को धुला जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां पर ही देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।

जब जगन्नाथ यात्रा गुंडिचा मंदिर में पहुँचती है तब भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को विधिपूर्वक स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र पहनाएँ जाते हैं। यहां भगवान जी 7 दिनों के लिए विश्राम करते हैं। गुंडीचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को ‘आड़प दर्शन कहा जाता है।

यात्रा में एक अन्य परंपरा ‘हेरा पंचमी’ का भी विशेष महत्व है। इस दिन माँ लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने आती हैं। तब द्वारपाल दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे देवी लक्ष्मी रुष्ट होकर रथ का पहिया तोड़ देती हैं और ‘हेरा गोहिरी साही पुरी नामक एक मोहल्ले में, जहां देवी लक्ष्मी का मंदिर है, वहां लौट जाती हैं। बाद में भगवान जगन्नाथ द्वारा रुष्ट देवी लक्ष्मी को मनाने की परंपरा भी है।

आषाढ़ माह के दसवें दिन सभी रथ पुन: मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथों की वापसी की बहुड़ा यात्रा कहते हैं। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। देवी -देवताओं के लिए मंदिर के द्वार एकादशी को खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान कराकर वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच देव विग्रहों को पुनः प्रतिष्ठित किया जाता है।

आपको बता दें, इस महापर्व के दौरान वहां के घरों में कोई भी पूजा नहीं होती है और न ही किसी प्रकार का उपवास रखा जाता है। इस प्रकार कई रीति-रिवाजों और धूमधाम से इस यात्रा का आयोजन किया जाता है। जिन लोगों को रथ को खींचने का शुभ अवसर प्राप्त होता है, उन्हें अत्यंत सौभाग्यशाली माना जाता है। यह यात्रा धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही प्रकार से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस यात्रा की दिव्यता और सुंदरता दोनों ही अभूतपूर्व हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा क्यों निकाली जाती है?

1. भक्तों को दर्शन का अवसर देने के लिए

पुरी स्थित श्री जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा विराजमान रहते हैं, जहां केवल कुछ विशेष वर्ग के लोग ही उनके दर्शन कर सकते हैं। रथयात्रा ही एकमात्र ऐसा दिन होता है जब भगवान स्वयं मंदिर से बाहर आकर आम जनता को दर्शन देते हैं। इसे 'पारंपरिक लोक-संपर्क' का सबसे बड़ा रूप माना जाता है।

2. भगवान श्रीकृष्ण की गुंडिचा यात्रा की स्मृति में

इस दिन भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र और सुभद्रा अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) की ओर यात्रा करते हैं। यह यात्रा पुराणों और लोककथाओं पर आधारित है जिसमें भगवान अपनी बहन और भाई के साथ रथ पर बैठकर यात्रा करते हैं। यह यात्रा भगवान की लीलाओं और भक्तों से मिलने की इच्छा का प्रतीक मानी जाती है।

3. लोक कल्याण और समता का संदेश

भगवान स्वयं रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं और हर जाति, वर्ग, समुदाय के लोगों को दर्शन देते हैं। यह संदेश देता है कि ईश्वर सभी के लिए समान हैं, चाहे वह किसी भी वर्ग या जाति का हो। रथ की रस्सी खींचना सभी को एक सूत्र में बाँधता है।

4. पौराणिक मान्यता अनुसार

शास्त्रों के अनुसार, जगन्नाथ रथयात्रा में भाग लेने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को होती है और यह अधिदैविक यात्रा मानी जाती है।

जगन्नाथ रथयात्रा की खास बातें

भगवान के रथ यात्रा का महापर्व

यह एकमात्र अवसर होता है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा मंदिर से बाहर निकलकर भक्तों को दर्शन देते हैं।

तीन भव्य रथ

  • नंदिघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ – 16 पहिए)
  • तालध्वज (बलभद्र का रथ – 14 पहिए)
  • दर्पदलन (सुभद्रा का रथ – 12 पहिए)

रथ खींचना है पुण्यदायी कर्म

माना जाता है कि रथ की रस्सी खींचने से जन्म-जन्म के पाप मिटते हैं।

छेरा पहरा परंपरा

पुरी के गजपति महाराज स्वयं सोने का झाड़ू लगाकर रथ की सेवा करते हैं — यह विनम्रता और समानता का प्रतीक है।

गुंडिचा यात्रा

भगवान 7 दिन के लिए अपनी मौसी के घर (गुंडिचा मंदिर) जाते हैं और वहां विराजमान रहते हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा पर किसकी पूजा होती है?

इस दिन मुख्य रूप से तीन देवताओं की पूजा की जाती है:

  • भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण का रूप)
  • बलभद्र (श्री बलराम जी)
  • माता सुभद्रा

इनके भव्य रथों का पूजन करके रथयात्रा शुरू होती है। साथ ही, कुछ लोग इस दिन नृसिंह भगवान और हनुमान जी की भी आराधना करते हैं।

जगन्नाथ रथयात्रा के दिन क्या करना चाहिए?

  • स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पूजा करें।
  • रथयात्रा में भाग लें या घर पर भगवान की झांकी सजाएं।
  • मंदिरों में दर्शन, भजन और कीर्तन करें।
  • रथ की रस्सी खींचने का सौभाग्य मिले तो अवश्य करें।
  • सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।
  • भक्तों को जल, फल या प्रसाद वितरण करें।

जगन्नाथ रथयात्रा के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • किसी प्रकार का मांस, मदिरा या तामसिक भोजन सेवन न करें।
  • क्रोध, द्वेष या अपवित्रता से बचें।
  • धार्मिक भावनाओं का अपमान या उपहास न करें।
  • रथयात्रा मार्ग में अनुशासन भंग न करें।
  • शोरगुल, धक्का-मुक्की या अनावश्यक भीड़ न बढ़ाएं।
  • भगवान के रथ या मूर्ति को अपवित्र हाथों से न छुएं।

ये थी जगन्नाथ पुरी यात्रा प्रारंभ से जुड़ी विशेष जानकारी। हमारी कामना है कि सभी श्रद्धालुओं की यात्रा सुखद रहे। व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' के इस धार्मिक मंच पर।

divider
Published by Sri Mandir·June 12, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

Address:
Firstprinciple AppsForBharat Private Limited 435, 1st Floor 17th Cross, 19th Main Rd, above Axis Bank, Sector 4, HSR Layout, Bengaluru, Karnataka 560102
Play StoreApp Store

हमे फॉलो करें

facebookinstagramtwitterwhatsapp

© 2025 SriMandir, Inc. All rights reserved.