आषाढ़ पूर्णिमा व्रत 2025 का दिन आध्यात्मिक उन्नति, स्नान-दान और गुरु पूजन के लिए विशेष माना जाता है। जानिए इस शुभ तिथि की पूजा विधि, महत्व और इसे करने से मिलने वाले दिव्य फल।
आषाढ़ पूर्णिमा व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को रखा जाता है। इस दिन धार्मिक कार्य, स्नान, दान और व्रत का विशेष महत्व होता है। यह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जो गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पर्व है।
इस लेख में आप जानेंगे-
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को विष्णु भक्त आषाढ़ पूर्णिमा व्रत रखते हैं और श्रद्धापूर्वक स्नान-दान आदि पुण्यकर्म करते हैं। इस दिन जातक श्री हरि की विधिवत् पूजा के साथ गोपद्म व्रत का पालन करते हैं। आपको बता दें कि आषाढ़ पूर्णिमा को 'गुरु पूर्णिमा' या 'व्यास पूर्णिमा' के रूप में भी मनाया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 03:52 ए एम से 04:33 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:12 ए एम से 05:15 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 11:36 ए एम से 12:31 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:20 पी एम से 03:14 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 06:51 पी एम से 07:11 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 06:52 पी एम से 07:54 पी एम तक |
अमृत काल | 12:55 ए एम, जुलाई 11 से 02:35 ए एम, जुलाई 11 तक |
निशिता मुहूर्त | 11:43 पी एम से 12:24 ए एम, जुलाई 11 तक |
आषाढ़ पूर्णिमा के दिन शाम 06:46 बजे चंद्रमा का उदय होगा। जो जातक इस दिन उपवास रखेंगे, उन्हें इस समय पर चंद्रदेव की पूजा करके अर्घ्य देना चाहिए। कहा जाता है कि चंद्र अर्घ्य देने व से जीवन में सदैव सुख- शांति बनी रहती है।
इस साल आषाढ़ पूर्णिमा के दिन भद्रा लगेगी, जिसका वास पाताल लोक में है। 10 जुलाई को भद्रा का समय सुबह 05 बजकर 15 मिनट से दोपहर 01 बजकर 55 मिनट तक है, यानि इसका प्रभाव केवल 1 घंटा 20 मिनट के लिए ही है। मान्यता है कि पाताल लोक व स्वर्ग लोक में भद्रा का वास होने पर मृत्युलोक में कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं होता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन को आध्यात्मिक उन्नति, गुरु-भक्ति, और आत्मशुद्धि के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा को ही गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है और इस अवसर पर अपने गुरु के प्रति श्रद्धा अर्पित कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। साथ ही इस दिन चातुर्मास की शुरुआत होती है, जो तप, संयम और भक्ति का विशेष काल होता है।
आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में गोचर करते हैं। यदि आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में आते हैं, तो वो पूर्णिमा समृद्धि व सौभाग्य प्रदान करने वाली मानी जाती है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर जातक व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। मान्यता है कि ये व्रत मनोवांछित फल देने वाला होता है। साथ ही इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य जीवन के सभी सुखों को भोगने के बाद मोक्ष प्राप्त करता है।
आषाढ़ पूर्णिमा का दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने गुरु का आशीर्वाद लेते हैं, और उनके मार्गदर्शन के लिए कृतज्ञता प्रकट करते हैं।
ये दिन बौद्ध संस्कृति के लिए भी विशेष महत्व रखता है। माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने बोध गया में ज्ञान प्राप्त करने के बाद अपना पहला उपदेश सारनाथ में आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही दिया था।
इस दिन गुरु, भगवान विष्णु, महर्षि वेदव्यास और शिवजी की पूजा का विशेष विधान है। यदि व्यक्ति का कोई सजीव गुरु है, तो उनके चरणों की वंदना कर पूजन करना श्रेष्ठ माना गया है। गुरु के प्रतीक स्वरूप वेदव्यास जी की प्रतिमा या चित्र की पूजा करना भी पुण्यकारी है।
आषाढ़ पूर्णिमा पर गोपद्म व्रत का पालन करने के लिए कुछ विशेष अनुष्ठान होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
तो यह थी आषाढ़ पूर्णिमा व्रत से जुड़ी जानकारी। मान्यता है कि इस दिन जो जातक पूरी श्रद्धा से श्री हरि की उपासना करते हैं, उन पर श्री विष्णु जी की कृपा सदैव बनी रहती हैं। ऐसे ही व्रत, त्यौहार व अन्य धार्मिक जानकारियों के लिए जुड़े रहिए 'श्री मंदिर' पर।
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