आदि पेरुक्कू का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका आध्यात्मिक महत्व जानें। यह लेख आपको हर जरूरी जानकारी देगा, सरल और स्पष्ट भाषा में।
आदि पेरुक्कू एक पारंपरिक तमिल त्योहार है, जो मानसून के दौरान नदियों के जल स्तर बढ़ने पर मनाया जाता है। यह मुख्य रूप से कावेरी नदी के किनारे महिलाओं द्वारा समृद्धि, धन और कृषि की उन्नति के लिए मनाया जाता है।
आदि पेरुक्कु त्योहार कावेरी नदी के प्रति श्रद्धा भाव का प्रतीक है। यह एक विशेष त्योहार है। इस मौके पर लोग कावेरी नदी के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं क्योंकि कावेरी नदी अपने साथ संपन्नता लेकर आती है। इसे तमिल महीने आदि के 18वें दिन मनाया जाता है, इस वर्ष यह उत्सव तिरुचिरापल्ली के अलावा कावेरी नदी के किनारे बसे इरोड, तंजावुर और सलेम में धूमधाम से उत्सव की तरह मनाया जाता है।
मुहूर्त | समय |
ब्रह्म मुहूर्त | 04:19 ए एम से 05:01 ए एम तक |
प्रातः सन्ध्या | 04:40 ए एम से 05:43 ए एम तक |
अभिजित मुहूर्त | 12:00 पी एम से 12:54 पी एम तक |
विजय मुहूर्त | 02:42 पी एम से 03:36 पी एम तक |
गोधूलि मुहूर्त | 07:11 पी एम से 07:32 पी एम तक |
सायाह्न सन्ध्या | 07:11 पी एम से 08:15 पी एम तक |
अमृत काल | 08:43 पी एम से 10:30 पी एम तक |
निशिता मुहूर्त | 12:06 ए एम, अगस्त 03 से 12:49 ए एम, अगस्त 03 तक |
रवि योग | 05:43 ए एम से 04:16 ए एम, अगस्त 03 तक |
आदि पेरुक्कू एक पारंपरिक तमिल उत्सव है, जो कावेरी नदी और जल स्रोतों के प्रति सम्मान, आभार और प्रकृति के साथ संतुलन की भावना को समर्पित होता है। ‘पेरुक्कू’ का अर्थ है ‘बढ़ता हुआ जल’ जो मानसून के समय नदियों के जलस्तर में वृद्धि को दर्शाता है।
यह पर्व विशेषकर उन लोगों द्वारा मनाया जाता है जिनकी आजीविका जल पर निर्भर है किसान, मछुआरे और अन्य ग्रामीण समुदाय। वे इस दिन देवी कावेरी, वरुण देव और स्थानीय ग्राम देवियों का पूजन करते हैं ताकि वर्षा उत्तम हो और फसलें लहलहाएं।
आदि पेरुक्कू केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति मानव की कृतज्ञता का उत्सव है। यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि प्रकृति के संरक्षण और संतुलन के बिना जीवन अधूरा है। यह सामुदायिक जुड़ाव, पारिवारिक मेलजोल और सांस्कृतिक परंपराओं का प्रतीक बन चुका है।
इस दिन देवी कावेरी, वरुण देवता (वर्षा के देवता), देवी पचई अम्मन, देवी कन्नी अम्मन की पूजा होती है। अविवाहित कन्याएं देवी पार्वती को मनचाहे वर के लिए भोग अर्पित करती हैं।
तमिलनाडु में कावेरी नदी के किनारे बसे क्षेत्रों जैसे तिरुचिरापल्ली, इरोड, तंजावुर और सलेम में यह पर्व विशेष धूमधाम से मनाया जाता है।
यह त्योहार तमिल समुदाय के लोगों द्वारा विशेष रूप से मनाया जाता है। खासकर किसान, जल-आधारित जीवनशैली से जुड़े लोग, महिलाएं और अविवाहित कन्याएं इस उत्सव में बढ़-चढ़कर भाग लेती हैं।
यह त्योहार किसानों और उन लोगों द्वारा विशेष तौर पर मनाया जाता है, जिनकी आय पानी पर निर्भर है। पूजा के दौरान लोग मां कावेरी और बारिश के लिए वरुणा देवी की पूजा करते हैं, ताकि बारिश अच्छी हो और उससे फसल की बढ़िया पैदावार हो। इस दिन महिलाएं शांति और सद्भाव का प्रतीक मानी जाने वाली देवी पचई अम्मन और और कन्नी अम्मन की पूजा और आराधना करती हैं। पचई अम्मन और कन्नी अम्मन तमिलनाडु के कई स्थानीय क्षेत्रों में स्थापित हैं। मान्यताओं के अनुसार, इस त्योहार को मनाने से भगवान प्रसन्न होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
इस त्योहार को मनाने के लिए उफनती नदियों से आए पानी का प्रयोग किया जाता है। इस त्योहार पर अधिकांश परिवार खाना बनाकर आसपास के झील या तालाब के किनारे पिकनिक मनाते हैं। साथ ही शाम के वक्त इन जलाशयों के पास दीप जलाकर आभार प्रकट करते हैं।
इसके अलावा, इस त्यौहार के दिन सुबह सवेरे महिलाएं चावल, गुड़, चीनी, नारियल,केले, दिए, हल्दी, फूल आदि पूजा सामग्री लेकर तालाब, नदी आदि के किनारे पर जाती हैं। पूजा शुरू करने से पहले वो पानी में डुबकी लगाती हैं। इसके बाद ही वो धरती माता के स्वरूप के रूप में मिट्टी की ढेरियां बनाती हैं और केले के पत्तों पर चावल के आटे का दीपक बनाती हैं जिसमें वो गुड़ मिला हुआ पानी का इस्तेमाल करती हैं। फिर इस दीपक पर घी डालकर उसे प्रज्वलित करती हैं और इस दीपक को नदी में प्रवाहित कर देती हैं।
इस दिन स्त्रियां चावल के विभिन्न पकवान बनाकर देवी पार्वती को भोग लगाती हैं और नदियों में फूल और चावल विसर्जन कर पूजा की विधि को संपन्न करती हैं।
इस अलावा इस पर्व पर एक अन्य परंपरा के रूप में अविवाहित लड़कियां समाज की विवाहित महिलाओं के साथ अनुष्ठान और पूजा करती हैं। मान्यता है कि, अविवाहित महिलाएं जो चावल और गुड़ से बनी मिठाई, ताड़ के पत्तों की बालियां और काले रंग की माला चढ़ाती हैं, उन्हें मनचाहा वर की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन विवाहित पुरुषों को भी उनके ससुराल वाले घर पर आमंत्रित करते हैं और उन्हें उपहार के रूप में नए कपड़े देते हैं। इसके अलावा विवाहित महिलाएं भी आदि पेरुक्कु से एक महीने पहले तक अपने माता-पिता के घर रहती हैं। फिर आदि पेरुक्कु के एक दिन बाद वो अपने पति के साथ वापस लौटती हैं।
यह पर्व हमें सिखाता है कि हम लोगों को सदैव प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए और उसका सम्मान करना चाहिए।
ऐसे ही विशेष पर्वों के बारे में पढ़ने के लिए श्री मंदिर ऐप पर अवश्य जाएं।
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