जानिए त्रयंबकेश्वर मंदिर का इतिहास, दर्शन का समय और वहाँ कैसे पहुँचें।
त्रयंबकेश्वर मंदिर ऋषिकेश का एक प्रसिद्ध शिवमंदिर है, जिसे ‘तेरह मंजिल मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर गंगा के तट पर और लक्ष्मण झूला के पास स्थित है। इसकी 13 मंजिलें विभिन्न देवी-देवताओं को समर्पित हैं और ऊपरी मंजिल से गंगा व आसपास की पहाड़ियों का पूरा दृश्य मिलता है। इस लेख में जानिए त्रयंबकेश्वर मंदिर ऋषिकेश का इतिहास, धार्मिक महत्व और दर्शन करने की खास बातें।
उत्तराखंड के पवित्र शहर ऋषिकेश में गंगा नदी के तट पर, लक्ष्मण झूला के पार स्थित त्रयंबकेश्वर मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक और पर्यटन स्थल है। यह बहुमंजिला मंदिर “तेरह मंजिल मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें कुल 13 मंजिलें हैं। इस मंदिर में हिंदू देवी-देवताओं की कई मूर्तियाँ स्थापित हैं और यह मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है। ‘त्रयंबकेश्वर’ का अर्थ है ‘त्रिनेत्र’ यानी तीन आंखों वाले, जो भगवान शिव के प्रतीक हैं।
मंदिर का इतिहास
त्रयंबकेश्वर मंदिर के इतिहास को लेकर स्पष्ट जानकारी नहीं है। कहा जाता है कि इसका निर्माण लगभग तीन दशक पूर्व स्वामी कैलाशानंद महाराज द्वारा किया गया था। कुछ मान्यताओं के अनुसार मंदिर की स्थापना 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच आदि शंकराचार्य ने की थी। हालांकि इन कथनों की पुष्टि ऐतिहासिक दस्तावेजों से नहीं होती, फिर भी मंदिर का धार्मिक महत्व काफी गहरा है।
श्रावण मास और महाशिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर में हजारों की संख्या में शिव भक्त आते हैं। भक्त भगवान शिव के दर्शन कर अपनी मनोकामनाएं रखते हैं और यहाँ की विशेष गंगा आरती में भाग लेते हैं। मंदिर में सभी प्रमुख देवी-देवताओं की मूर्तियाँ होने के कारण भक्त एक ही स्थान पर सभी के दर्शन कर सकते हैं। लक्ष्मण झूला से दिखाई देता यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
त्रयंबकेश्वर मंदिर की वास्तुकला इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यह पिरामिड के आकार में बनी तेरह मंजिला इमारत है। सबसे ऊपरी मंजिल पर भगवान शिव का मंदिर है। मंदिर इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि ऊपर जाते हुए श्रद्धालु विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियों के दर्शन करते हुए जाते हैं। मंदिर परिसर में माता लक्ष्मी, देवी दुर्गा, सरस्वती, हनुमान जी, भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण सहित अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं।
मंदिर में तुलसी-रुद्राक्ष की माला, धातु की अंगूठियाँ और धार्मिक वस्तुएं बेचने वाली दुकानें हैं। साथ ही, एक विशाल लाइब्रेरी भी है जिसमें वैदिक और धार्मिक ग्रंथ उपलब्ध हैं। मंदिर की दीवारों पर देवी-देवताओं की आकृतियाँ उकेरी गई हैं जो इसकी सुंदरता को और बढ़ाती हैं।
मंदिर दर्शन का समय: सुबह 06:00 बजे से शाम 07:00 बजे तक।
मंदिर में चढ़ाए जाने वाले प्रसाद में फल, फूल, नारियल, मिठाई, बेलपत्र, दूध, दही, घी आदि शामिल हैं।
हवाई मार्ग
सबसे नजदीकी हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 30 किमी की दूरी पर है। यहाँ से टैक्सी या ऑटो द्वारा मंदिर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग
ऋषिकेश रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 13 किमी दूर है। स्टेशन से ऑटो या टैक्सी लेकर मंदिर तक पहुँचा जा सकता है। लक्ष्मण झूला से मंदिर तक पैदल या नदी मार्ग से भी पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग
ऋषिकेश देश के प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। बस स्टैंड से मंदिर की दूरी लगभग 12 किमी है जिसे आधे घंटे में तय किया जा सकता है।
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