जानिए वृंदावन के प्रसिद्ध गोविंद देव जी मंदिर का ऐतिहासिक महत्व, राजस्थानी-मुगल शैली की अनोखी वास्तुकला, दर्शन समय और यात्रा से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी।
गोविंद देव जी मंदिर वृंदावन का एक ऐतिहासिक और भव्य मंदिर है, जो भगवान श्रीकृष्ण के गोविंद देव स्वरूप को समर्पित है। यह मंदिर अपनी अद्भुत वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन और पूजा करने से भक्तों को भक्ति, प्रेम और जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति होती है। इस लेख में जानिए गोविंद देव जी मंदिर वृंदावन का इतिहास, धार्मिक महत्व और दर्शन की खास बातें।
गोविंद देव जी मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित वृंदावन नगरी का एक प्रमुख और ऐतिहासिक मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के गोविंद स्वरूप को समर्पित है और वैष्णव संप्रदाय का एक पवित्र केंद्र माना जाता है। इसे "राधा गोविंद देव मंदिर" के नाम से भी जाना जाता है।
इस भव्य मंदिर का निर्माण सन् 1590 में आमेर के राजा मानसिंह ने कराया था। निर्माण कार्य महान कृष्णभक्त श्री कल्याणदास जी की देखरेख में संपन्न हुआ। मंदिर की भव्यता इतनी अद्भुत थी कि इसका ऊपरी हिस्सा सात मंज़िलों वाला था और सबसे ऊपर एक विशाल दीपक जलता था जिसमें प्रतिदिन 50 किलोग्राम से अधिक देसी घी का उपयोग होता था। इस दीपक की लौ कई किलोमीटर दूर से दिखाई देती थी। मुगल शासक औरंगजेब ने जब यह दृश्य देखा, तो ईर्ष्या के कारण इस मंदिर को ध्वस्त करने की योजना बनाई। भगवान की कृपा से पुजारियों ने समय रहते भगवान की प्रतिमा को सुरक्षित निकालकर जयपुर पहुंचा दिया, जहाँ आज भी गोविंद देव जी की मूल प्रतिमा विराजमान है। औरंगजेब की सेना मंदिर की केवल चार मंजिलें ही नष्ट कर पाई। बाद में इस मंदिर का आंशिक पुनर्निर्माण कराया गया।
ऐसी मान्यता है कि जब मंदिर खंडहर बन गया था और वहाँ कोई दर्शन को नहीं आता था, तब वहाँ भूत-प्रेतों का वास हो गया था। किंतु उन्होंने कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाई। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के पुनर्निर्माण में इन अदृश्य शक्तियों का सहयोग रहा, क्योंकि इस स्तर की वास्तुकला को मनुष्य मात्र कुछ वर्षों में पुनः निर्माण नहीं कर सकता था।
मंदिर की वास्तुकला
गोविंद देव जी मंदिर की वास्तुकला अत्यंत भव्य और अद्वितीय है। मूल रूप से यह सात मंज़िल का मंदिर था, लेकिन वर्तमान में इसकी चार मंज़िलें ही शेष हैं। मंदिर के दोनों ओर सुंदर और सुदृढ़ स्तंभ बने हुए हैं जो गर्भगृह तक जाते हैं। इसकी रचना शुद्ध लाल बलुआ पत्थर से की गई है, जो इसे विशिष्ट रूप देती है।
गर्मियों में मंदिर खुलने का समय
सर्दियों में मंदिर खुलने का समय
गोविंद देव जी मंदिर, वृंदावन का प्रसाद
गोविंद देव जी को लड्डू, माखन और मिश्री का भोग लगाया जाता है। यह भोग श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है।
हवाई मार्ग
निकटतम हवाई अड्डा आगरा है, जो मथुरा से लगभग 78 किलोमीटर दूर है। दूसरा विकल्प दिल्ली हवाई अड्डा है, जो लगभग 170 किलोमीटर दूर स्थित है। दोनों स्थानों से मथुरा के लिए टैक्सी और बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
मथुरा जंक्शन निकटतम रेलवे स्टेशन है, जहाँ से ऑटो और टैक्सी लेकर मंदिर पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग
मथुरा बस स्टैंड से मंदिर तक आसानी से ऑटो द्वारा पहुँचा जा सकता है। मथुरा उत्तर प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग द्वारा अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।
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