जानिए दक्षिण काली मंदिर का इतिहास, दर्शन व आरती का समय और कैसे पहुँचें।
दक्षिण काली मंदिर हरिद्वार का एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है, जो माता काली को समर्पित है। यह मंदिर गंगा तट के पास स्थित है और अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। मान्यता है कि यहाँ दर्शन और पूजा करने से भय दूर होता है, शक्ति मिलती है और मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इस लेख में जानिए दक्षिण काली मंदिर हरिद्वार का इतिहास, धार्मिक महत्व और यहाँ दर्शन करने की खास बातें।
उत्तराखंड के हरिद्वार में स्थित दक्षिण काली मंदिर, नीलधारा क्षेत्र के चंडी देवी मंदिर मार्ग पर स्थित एक सिद्धपीठ है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि तांत्रिक साधना के लिए भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह मंदिर अपनी अनोखी विशेषताओं के कारण देशभर के भक्तों और साधकों को आकर्षित करता है। देशभर में ऐसा केवल दो ही स्थानों पर दक्षिण काली मंदिर है, जिनमें से एक हरिद्वार में स्थित यह मंदिर है।
दक्षिण काली मंदिर की स्थापना विक्रम संवत 351 में मानी जाती है। इसका उल्लेख स्कंध पुराण में भी मिलता है। यह मंदिर शिव व काली भक्त गुरु कमराज द्वारा स्थापित किया गया था, जिनके कारण इसे ‘कमराज पीठ’ और ‘अमरा गुरु धाम’ के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि माता स्वयं गुरु कमराज के स्वप्न में प्रकट हुईं और मंदिर निर्माण के लिए 108 नरमुंडों की बलि देने की बात कही। यह स्थान एक महामशान था, जहां माता की इच्छा से मुर्दों को जीवित कर उनसे स्वेच्छा से नरमुंडों की बलि ली गई और उन्हीं के ऊपर मंदिर का निर्माण हुआ। कहा जाता है कि यह मूर्ति स्वयंभू है और लाखों वर्षों से यहां स्थित है। यह मंदिर सागर मंथन की कथा से भी जुड़ा है। जब कालकूट विष निकला तो महादेव ने उसे ग्रहण कर गंगा में स्नान किया, जिससे गंगा की धारा नीली हो गई, जिसे आज ‘नीलधारा’ कहा जाता है। इसी नीलधारा के तट पर मां काली विराजमान हैं।
यह मंदिर तांत्रिक साधकों के लिए विशेष स्थान रखता है। मान्यता है कि इस स्थान पर बिना दर्शन और साधना के उनकी साधना अधूरी मानी जाती है। नवरात्रि यहां 15 दिन तक मनाई जाती है, जबकि देश में यह 9 दिन की होती है। शनिवार के दिन यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है। मंदिर की सुरक्षा स्वयं काल भैरव करते हैं। मान्यता है कि सावन में यहां काले-सफेद नाग-नागिन की जोड़ी दिखाई देती है। नीलधारा में स्नान करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर का नाम दक्षिण काली इसलिए पड़ा क्योंकि गंगा की धारा मंदिर के दक्षिण में बहती है। यह मंदिर नील पर्वत और गंगा की तलहटी के बीच स्थित है, जिससे यहां का वातावरण अत्यंत शांत और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है। गर्भगृह में मां काली की मूर्ति विराजमान है। गर्भगृह के कोने में स्थित 2700 साल पुराना त्रिशूल इस मंदिर की प्राचीनता का प्रमाण है।
मंदिर खुलने का समय: सुबह 05:00 AM से रात 10:00 PM तक
सुबह की आरती: 06:00 AM - 07:00 AM
शाम की आरती: 07:00 PM - 08:00 PM
दक्षिण काली मंदिर का प्रसाद
शनिवार को मां को विशेष रूप से खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा नारियल, गुलाब के फूल, काला जामुन और मीठा पान भी अर्पित किया जाता है।
वायु मार्ग: मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा देहरादून का जौली ग्रांट एयरपोर्ट है, जो मंदिर से लगभग 40 किलोमीटर दूर है। यहां से टैक्सी या बस के माध्यम से मंदिर तक पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग: हरिद्वार रेलवे स्टेशन मंदिर से लगभग 5 किलोमीटर दूर स्थित है। स्टेशन से रिक्शा या ऑटो के जरिए मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।
सड़क मार्ग: हरिद्वार सड़क मार्ग से देश के सभी मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली के आईएसबीटी से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। निजी वाहन या सरकारी बसों के माध्यम से भी यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है।
दक्षिण काली मंदिर, हरिद्वार आध्यात्मिक, तांत्रिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत विशिष्ट स्थान है, जहां भक्तों को माँ काली की कृपा और मानसिक शांति का अनुभव होता है।
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