रक्षाबंधन केवल भाई-बहन का पर्व नहीं, बल्कि इसका संबंध भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की कथा से भी है। कथा अनुसार जब भगवान विष्णु वामन अवतार लेकर राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए, तो देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बाँधी और भाई बनाकर विष्णु को वापस वैकुंठ ले आईं। इस घटना से रक्षाबंधन को एक दिव्य और धार्मिक आधार मिला, जो भगवान जगन्नाथ के स्वरूप में आज भी ओडिशा में श्रद्धा से मनाया जाता है।
रक्षाबंधन का पर्व केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है; इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी की तो है ही, लेकिन एक अन्य महत्त्वपूर्ण कथा भगवान जगन्नाथ से भी जुड़ी हुई है। आइये जानते हैं इसके बारे में...
रक्षाबंधन न सिर्फ एक त्यौहार है बल्कि भाई बहन के प्रेम का प्रतीक भी है। रक्षाबंधन के अवसर पर ही आज हम आपको भगवान जगन्नाथ से जुड़ी रक्षाबंधन की एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं
हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को अत्यंत पवित्र एवं महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हीं चारों धामों में से एक है उड़ीसा के समुद्र तट पर स्थित पुरी का जगन्नाथ मंदिर। यह मंदिर आश्चर्यजनक रहस्यों से भरा हुआ है।
यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। आठ सौ साल से भी पुराने इस मंदिर के दर्शन करने देश-विदेश से भक्त आते हैं। सावन माह की पूर्णिमा के दिन समग्र भारत में रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है, परंतु उड़ीसा में पूर्णिमा को “गम्हा पूर्णिमा” के नाम से जाना जाता है।
इस दिन श्री जगन्नाथ जी के बड़े भाई बलभद्र जी का जन्म दिवस मनाया जाता है। बलभद्र जी ने श्रवण नक्षत्र की मकर लग्न पर गम्हा पूर्णिमा को जन्म लिया था। यहां माना जाता है कि भगवान बलभद्र कृषक समुदाय के देवता हैं। इसलिए किसान परिवार के लोग परंपरा के रूप इनके हथियार, लकड़ी के हल की भी पूजा करते हैं।
गम्हा शब्द संभव: गौ और माता नामक दो शब्दों से मिलकर बना है।
मान्यताओं के अनुसार, बलभद्र को मवेशियों से बहुत लगाव था, इसलिए इस दिन मवेशियों को अच्छे से नहलाया जाता है।
इस दिन देवी सुभद्रा अपने भाईयों, भगवान बलभद्र और भगवान जगन्नाथ की कलाई में राखी बांधती हैं। पतारा बिसोई सेवकों के सदस्य इस अवसर पर चार राखियां बनाते हैं। भगवान जगन्नाथ की राखी को लाल और पीले रंग से रंगा जाता है, वहीं भगवान बलभद्र की राखी नीले और बैंगनी रंग की होती है।
गम्हा पूर्णिमा के दिन, मंदिर में भगवान बलभद्र का जन्म समारोह मनाया जाता है। बलभद्र, सुभद्रा, सुदर्शन, भूदेवी और श्रीदेवी को सोने के आभूषण व वस्तुओं से सजाया जाता है। एक पंडित पूजा की तैयारी करता है। उसके बाद बलभद्र जी को राखी अर्पित की जाती है। झूलन अनुष्ठान के दौरान भगवान जगन्नाथ के आदेश से श्रीदेवी, भूदेवी और जगन्नाथ को बलभद्र और सुभद्रा के प्रतिनिधि, मदन मोहन को सौंप दिया जाता है।
घटना को चिह्नित करने के लिए बदादेउला और मार्कंडा पुष्करणी तालाब के पास विशेष अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं। इस दिन देवताओं को ‘गाम्हा मांड’ नामक एक विशेष भोग की पेशकश की जाती है। आज इस अवसर पर देवताओं के पास ‘भोग मंडप’ की समाप्ति के बाद श्री सुदर्शन एक पालकी पर चढ़कर मार्कंडा तालाब तक जाते हैं। मार्कंडा तालाब में सेवक भगवान बलभद्र की मिट्टी की मूर्ति बनाते हैं और विशेष अनुष्ठान करते हैं।
सेवक मंत्रों का जाप करते हैं और मूर्ति में प्राण फूंकते हैं। तत्पश्चात, तालाब में विसर्जित करने से पहले मूर्ति को भोग चढ़ाया जाता है। पंडित मंत्र पढ़ कर मूर्ति की प्रतिष्ठा कर देता है और मूर्ति को भोग निदान किया जाता है। फिर मूर्ति को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के बाद भगवान सुदर्शन अन्य तीन आश्रमों के लिए रवाना हो जाते हैं।
जगन्नाथ पुरी में रक्षाबंधन को मनाने का यह तरीका बेहद खास है। तो यह थी भगवान जगन्नाथ से जुड़ी हुई रक्षाबंधन की कथा, ऐसी ही अन्य रोचक कथाओं को जानने के लिए श्रीमंदिर पर अवश्य बने रहें।
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