क्या करें और क्या न करें पुष्य नक्षत्र में? जानिए जन्म, विवाह, करियर और उपायों से जुड़ी जरूरी जानकारी!
पुष्य नक्षत्र को 'नक्षत्रों का राजा' भी कहा गया है, क्योंकि इसका प्रभाव जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति लेकर आता है। पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है, लेकिन इसकी अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी हैं, जो इसे विशेष रूप से धन और वैभव से जोड़ती हैं। इस लेख में आप जानेंगे पुष्य नक्षत्र का समय, इसका ज्योतिषीय महत्व, इसके शुभ कार्य, प्रभाव और इससे जुड़े रोचक धार्मिक तथ्य।
पुष्य नक्षत्र हिंदू ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में से एक है। इसे शुभ और मंगलकारी नक्षत्र माना जाता है। पुष्य शब्द का अर्थ होता है "पोषण करने वाला" या "समृद्धि देने वाला"। यह नक्षत्र कर्क राशि में आता है और इसका स्वामी ग्रह शनि होता है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कार्यों में सफलता और वृद्धि की संभावना अधिक मानी जाती है, इसलिए इसे शुभ कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, व्यवसाय आरंभ आदि के लिए उत्तम समय माना जाता है। इसकी सकारात्मक ऊर्जा जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसका एक विशिष्ट स्थान है।
पुष्य नक्षत्र का ज्योतिषीय महत्व बहुत खास होता है। इसे "नक्षत्रों का राजा" भी कहा जाता है। यह व्यक्ति के जीवन में स्थिरता, उन्नति, समृद्धि और अच्छे संस्कार लाने वाला माना जाता है। पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातकों में धैर्य, संयम और परोपकार की भावना प्रबल होती है।
ज्योतिष के अनुसार, इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि है और इसका प्रतीक है गाय का थन, जो पोषण व समृद्धि का संकेत देता है। इस नक्षत्र के दौरान किए गए कार्य दीर्घकालिक लाभ देते हैं। गुरु पुष्य योग, रवि पुष्य योग आदि में शुभ कार्यों की विशेष मान्यता होती है। यह व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उत्तम समय माना जाता है।
पुष्य नक्षत्र का स्वामी ग्रह शनि (Saturn) है। हालांकि, इसका राशि स्वामी ग्रह चंद्रमा (Moon) होता है क्योंकि पुष्य नक्षत्र कर्क राशि (Cancer) में आता है। लेकिन नक्षत्र के स्वामी के रूप में शनि ग्रह इसकी विशेषताओं पर प्रमुख प्रभाव डालता है।
इस कारण पुष्य नक्षत्र में शनि की स्थिरता, अनुशासन और धैर्य के गुण दिखाई देते हैं, जबकि चंद्रमा के प्रभाव से भावनात्मक संतुलन, कोमलता और पोषण की भावना भी बनी रहती है। यही कारण है कि पुष्य नक्षत्र को शुभ, संतुलित और समृद्धि देने वाला नक्षत्र माना जाता है।
पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातकों का स्वभाव शांत, विनम्र और संतुलित होता है। ये लोग अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार, जिम्मेदार और अनुशासनप्रिय होते हैं। इनके भीतर दूसरों की मदद करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति रहती है। ये परंपराओं का सम्मान करते हैं और परिवार व समाज में प्रतिष्ठित स्थान पाते हैं।
पुष्य नक्षत्र के जातक मेहनती, धैर्यवान और लंबे समय तक लक्ष्य के प्रति समर्पित रहते हैं। इन्हें शिक्षा, अध्यात्म, चिकित्सा, प्रशासन और परामर्श जैसे क्षेत्रों में विशेष सफलता मिलती है। कभी-कभी अधिक सोचने की प्रवृत्ति के कारण ये थोड़े चिंतित या भावुक भी हो सकते हैं, लेकिन समर्पण और सकारात्मक सोच इन्हें हर चुनौती से उबार लेती है।
IAS, IPS, PCS जैसे प्रशासनिक पदों पर सफलता।
सरकारी विभागों में स्थिर और सम्मानजनक पद मिलते हैं।
न्याय व्यवस्था, पुलिस, सेना, सुरक्षा एजेंसियों में भी अच्छे अवसर।
मैनेजमेंट, HR, टीम लीडरशिप, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट।
बड़ी कंपनियों में उच्च पदों पर धीरे-धीरे पदोन्नति।
बैंकिंग, इन्वेस्टमेंट, अकाउंटिंग, चार्टर्ड अकाउंटेंसी, वित्तीय सलाहकार।
आर्थिक मामलों में सूझबूझ रखने के कारण बैंकिंग, अकाउंटिंग, शेयर मार्केट, इंश्योरेंस और फाइनेंशियल प्लानिंग में सफल हो सकते हैं।
इनका ज्ञान प्रेम इन्हें शिक्षक, प्रोफेसर, स्कॉलर या रिसर्चर बना सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में भी ये ऊँचाइयाँ प्राप्त करते हैं।
सेवा भावना और अनुशासन के कारण डॉक्टर, सर्जन, आयुर्वेदाचार्य, योग चिकित्सक आदि बनने के भी अच्छे योग होते हैं।
पुष्य नक्षत्र को ज्योतिष में बहुत शुभ, सौम्य और स्थिर नक्षत्र माना जाता है। इसका स्वामी शनि है और यह चंद्रमा के अधीन आता है। पुष्य नक्षत्र में जन्मे लोगों का विवाह जीवन भी इनके स्वभाव के अनुसार काफी स्थिर, सामंजस्यपूर्ण और दीर्घकालिक होता है।
शांत, संयमी और धैर्यवान स्वभाव
परिवार के प्रति जिम्मेदार
जीवनसाथी को सम्मान देने वाले
कठिनाइयों में भी रिश्तों को संभालने की अद्भुत कला
अत्यधिक वफादार और ईमानदार
जीवनसाथी के साथ गहरा भावनात्मक संबंध बनाते हैं।
परिवार को जोड़कर रखने की क्षमता होती है।
रिश्तों में स्थिरता और दीर्घायु विवाह का योग बनता है।
छोटी-मोटी समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुलझा लेते हैं।
पति-पत्नी के बीच विश्वास बना रहता है।
शनि देव की पूजा करें: शनिवार के दिन शनि मंत्र का जाप करें — "ॐ शं शनैश्चराय नमः"
गौसेवा से पुण्य और शुभ फल प्राप्त होते हैं।
काले वस्त्र, तिल, लोहे का दान शनिवार को करें।
प्यासे को जल पिलाना और जल की टंकी लगवाना शुभ माना जाता है।
मंगल और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का श्रद्धा भाव से पाठ करना विशेष फलदायी होता है।
मानसिक शांति और स्थिरता के लिए ध्यान करें।
शुद्ध आहार, ईमानदारी और संयमित जीवन फलों को बढ़ाते हैं।
बीज मंत्र (नक्षत्र मंत्र)- "ॐ पौं पुष्याय नमः", इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
शनि शांति मंत्र (क्योंकि शनि स्वामी है)- "ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्॥", शनिवार को विशेष रूप से जाप करें।
गुरु पुष्य योग के समय- "ॐ बृं बृहस्पतये नमः", गुरु के प्रभाव को बढ़ाने के लिए।
शांति और समृद्धि के लिए- "ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः", आर्थिक समृद्धि और सुख के लिए।
विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, संपत्ति खरीदना, वाहन खरीदना आदि शुभ होते हैं।
गरीबों को अन्न, वस्त्र, जल और शिक्षा का दान करें।
पुष्य नक्षत्र का मंत्र और शनि मंत्र का जाप करें।
गौसेवा से पुण्य बढ़ता है।
मानसिक शांति व स्थिरता के लिए ध्यान करें।
माता-पिता और गुरु का आशीर्वाद विशेष फलदायक होता है।
इस समय स्वास्थ्य संबंधी इलाज करना शुभ होता है।
नकारात्मक सोच न रखें: चिंता, क्रोध और ईर्ष्या से बचें।
झूठ और छल-कपट से बचें: ईमानदारी से काम करें।
शराब, मांसाहार और तामसिक भोजन न करें।
गंभीर शल्य चिकित्सा से बचें: यदि संभव हो तो बड़ी सर्जरी टालें।
ऋण न लें: इस नक्षत्र में कर्ज लेना ठीक नहीं माना जाता।
किसी का अपमान न करें: खासकर बुजुर्गों, गुरुजन और साधु-संतों का।
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