श्रीकृष्ण का जन्म किस तिथि को, किस समय और किस स्थान पर हुआ था? जानें मथुरा, कंस, और देवकी-वसुदेव की कथा से जुड़ी प्रमुख जानकारी।
भगवान कृष्ण का जन्म द्वापर युग में भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में रात के समय मथुरा में हुआ था। वे देवकी और वासुदेव के पुत्र थे, जिनका जन्म कंस के अत्याचारों के अंत हेतु हुआ। आइये जानते हैं इसके बारे में...
भगवान श्रीकृष्ण, हिंदू धर्म के प्रमुख आराध्य देवों में से एक हैं। उन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है और वे अपनी लीलाओं, उपदेशों, और प्रेममय स्वभाव के लिए जग विख्यात हैं। उनका जीवन, जन्म से लेकर महाप्रयाण तक, चमत्कारों, संघर्षों, और मानवीय रिश्तों के गहरे पाठ से भरा हुआ है। श्रीकृष्ण का जन्म केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि वह धर्म की पुनः स्थापना और अधर्म के विनाश का प्रतीक है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, उनका जन्मोत्सव हर साल श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जिसे जन्माष्टमी कहते हैं। यह तिथि ‘रोहिणी नक्षत्र’ के संयोग में आती है, और उनका जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सामान्यतः अगस्त या सितंबर माह में आता है।
पौराणिक शास्त्रों और गहन ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर यह माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का दिव्य अवतरण लगभग 5000 से 5200 वर्ष पूर्व द्वापर युग में हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी में हुआ था। वर्तमान में यह उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित है। यह जन्म एक साधारण घटना नहीं थी, बल्कि एक दिव्य और अद्भुत घटना थी। उनका अवतरण उस समय हुआ जब धरती पर अधर्म चरम पर था और धर्म की पुनर्स्थापना आवश्यक हो गई थी।
आइए, उनके जन्म की विस्तृत कहानी पर प्रकाश डालते हैं:
मथुरा नगरी पर उस समय उग्रसेन का पुत्र कंस राज करता था। कंस एक अत्यंत क्रूर, अहंकारी और अत्याचारी शासक था, जिसने अपने ही पिता उग्रसेन को कारागार में डालकर सत्ता हथिया ली थी। उसने अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार किए और चारों ओर हाहाकार मचा रखा था।
कंस की एक बहन थी, देवकी, जिससे वह बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ था। जब देवकी और वसुदेव का विवाह संपन्न हुआ और कंस स्वयं उन्हें रथ में बिठाकर विदा करने जा रहा था, तभी आकाशवाणी हुई। आकाशवाणी ने गरजते हुए कहा: "हे कंस! जिस बहन को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है, उसी का आठवां पुत्र तेरा काल बनेगा। वही तेरा वध करेगा!" इस आकाशवाणी को सुनकर कंस भयभीत और क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत तलवार निकाली और देवकी को मारने के लिए आगे बढ़ा, ताकि भविष्य के खतरे को टाला जा सके।
वसुदेव ने हाथ जोड़कर कंस से विनती की कि वह देवकी को न मारे। वसुदेव ने कंस को यह वचन दिया कि देवकी की आठवीं संतान को वे स्वयं उसके हवाले कर देंगे। कंस ने इस आश्वासन को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन फिर भी उसने बिना देर किए अपनी बहन देवकी और बहनोई वसुदेव को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया। वह उन्हें अपनी निगरानी में रखना चाहता था ताकि आठवें संतान के जन्म के समय किसी भी प्रकार की चालाकी या धोखा न हो सके।
समय बीतता गया। देवकी और वसुदेव के एक-एक कर सात पुत्रों ने जन्म लिया। हर पुत्र के जन्म के बाद कंस उन्हें बेरहमी से मार डालता था। देवकी और वसुदेव का हृदय पुत्रों की मृत्यु से टूट जाता था, लेकिन वे विवश थे। उन्होंने हर बार भगवान से प्रार्थना की कि वे उन्हें इस दुष्ट कंस से मुक्ति दिलाएँ।
जब देवकी आठवें पुत्र से गर्भवती हुईं, तो कारागार में एक अजीब सा तेज और प्रकाश फैलने लगा। देवी-देवता और ऋषि-मुनि गुप्त रूप से कारागार में आने लगे और भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे।
श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी, और आधी रात का समय था। घनघोर वर्षा हो रही थी, बिजली कड़क रही थी, और चारों ओर गहरा अंधकार छाया हुआ था। इसी विकट परिस्थिति में, कंस के कारागार की अंधेरी कोठरी में, देवकी ने एक अलौकिक बालक को जन्म दिया। यह शिशु कोई साधारण नवजात नहीं था — उसके चार हाथ थे, जिनमें शंख, चक्र, गदा और कमल सुशोभित थे। उसका मुखमंडल एक अद्वितीय और शांत दिव्य प्रकाश से दमक रहा था,
वसुदेव और देवकी तत्काल समझ गए कि यह बालक कोई साधारण नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु हैं। भगवान ने अपने दिव्य स्वरूप में माता-पिता को दर्शन दिए और निर्देश दिया कि वे उन्हें तुरंत गोकुल ले जाकर नंद बाबा और यशोदा मैया को सौंप दें। उन्होंने बताया कि यशोदा मैया ने भी एक कन्या को जन्म दिया है, और उन्हें उस कन्या को मथुरा ले आना है। भगवान ने यह भी बताया कि उनके आगमन से कारागार के सभी बंधन खुल जाएँगे और द्वारपाल गहरी नींद में सो जाएँगे।
भगवान के निर्देशानुसार, वसुदेव ने नवजात शिशु कृष्ण को एक टोकरी में रखा और सिर पर रखकर बाहर निकले। कारागार के सभी द्वार स्वयं खुल गए, और पहरेदार गहरी नींद में सो रहे थे। यमुना नदी में उफान था, लेकिन जैसे ही भगवान कृष्ण के पैर जल को स्पर्श किए, यमुना का जल शांत हो गया और बीच में रास्ता बन गया। शेषनाग ने अपने फन से कृष्ण को वर्षा से बचाया।
वसुदेव गोकुल पहुँचे और नंद बाबा के घर में प्रवेश किया। उन्होंने देखा कि यशोदा मैया गहरी नींद में सो रही हैं और उनके पास एक नवजात कन्या लेटी है। वसुदेव ने चुपचाप कृष्ण को यशोदा मैया के पास लिटा दिया और उस कन्या को लेकर वापस मथुरा आ गए। कारागार के द्वार फिर से बंद हो गए और पहरेदार जाग गए।
जैसे ही कंस को आठवें संतान के जन्म की खबर मिली, वह तुरंत कारागार में आया। उसने कन्या को छीन लिया और उसे ज़मीन पर पटकना चाहा। लेकिन कन्या कंस के हाथों से फिसलकर आकाश में उड़ गई और देवी योगमाया के रूप में प्रकट हुई। देवी ने कंस को चेतावनी दी कि उसका काल गोकुल में जन्म ले चुका है और जल्द ही उसका अंत करेगा।
इस घटना के बाद कंस और भी भयभीत हो गया, और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षसों (जैसे पूतना, बकासुर, अघासुर) को गोकुल भेजा, लेकिन सभी असफल रहे। अंततः, श्रीकृष्ण ने युवावस्था में मथुरा आकर कंस का वध किया और अपने नाना उग्रसेन को पुनः राजगद्दी पर बिठाया।
श्रीकृष्ण का जन्म न केवल मथुरा के कारागार में हुआ, बल्कि यह अत्याचार और अधर्म के अंधकार में धर्म और न्याय के प्रकाश का उदय था। उनकी जन्मकथा हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियाँ हों, सत्य और धर्म की हमेशा जीत होती है। यह कथा भगवान के अपने भक्तों के प्रति प्रेम, उनके लीलाओं की दिव्यता और संसार में संतुलन स्थापित करने के उनके परम उद्देश्य को दर्शाती है। जन्माष्टमी का पर्व हमें इसी दिव्य जन्म का स्मरण कराता है और हमें धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
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