जन्माष्टमी दो दिन क्यों है?
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जन्माष्टमी दो दिन क्यों है?

जन्माष्टमी की दो तारीखें भक्तों को अक्सर भ्रमित कर देती हैं। जानिए इसके पीछे की ज्योतिषीय वजह और किस दिन है व्रत का शुभ समय।

जन्माष्टमी दो दिन के बारे में

अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि जन्माष्टमी दो दिन क्यों मनाई जाती है। इस पर्व की तारीख को लेकर हर साल भ्रम की स्थिति बन जाती है। कहीं एक दिन जन्माष्टमी मनाई जाती है, तो कहीं अगली रात। दरअसल, इसके पीछे गहराई से जुड़ी दो धार्मिक परंपराएं स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय की मान्यताएं हैं। आइये जानते हैं इसके बारे में...

जन्माष्टमी दो दिन क्यों है?

श्री कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं का प्रमुख त्योहारों में से एक है। ये पर्व श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व दो दिन मनाया जाता है। इस बार भी 15 और 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। ऐसा माना जाता है कि पहले दिन साधु-संन्यासी, स्मार्त संप्रदाय हर साल जन्माष्टमी मनाते हैं, जबकि दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय और बृजवासी इस त्योहार को मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी अक्सर 2 दिन क्यों मनाई जाती है। अगर नहीं तो आइए जानते हैं क्यों होती है स्मार्तों और वैष्णवों की जन्माष्टमी अलग अलग दिन।

दो दिन जन्माष्टमी मनाने की परंपरा

दरअसल, जन्माष्टमी का पर्व दो अलग-अलग परंपराओं के अनुसार दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन स्मार्त (गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग) जन्माष्टमी मनाते हैं, जबकि दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय (विशेष रूप से साधु-संत और भक्तगण) इस पर्व को मनाते हैं। इसका कारण इन दोनों परंपराओं के धार्मिक नियमों और पंचांग गणनाओं में अंतर है।

स्मार्त और वैष्णव परंपरा में अंतर

स्मार्त परंपरा उन लोगों की होती है जो 'स्मृति' ग्रंथों और धर्मशास्त्रों के अनुसार व्रत-त्योहार मनाते हैं। ये लोग पंचांग में तिथि के आधार पर व्रत करते हैं।

वैष्णव परंपरा उन लोगों की होती है जो भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा करते हैं। ये लोग श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग के अनुसार मनाते हैं। इसी अंतर के कारण दोनों परंपराएं जन्माष्टमी अलग-अलग दिन मनाती हैं।

तिथि और नक्षत्र के आधार पर निर्णय

हिंदू पंचांग के अनुसार, किसी भी व्रत या त्योहार की सही तिथि का निर्धारण सूर्य के उदय (उदयातिथि) के समय की स्थिति से किया जाता है। उदयातिथि का मतलब होता है, जिस तिथि का सूर्य उदय हो, वह तिथि मानी जाती है। यदि सूर्योदय के समय अष्टमी हो और दिन में नवमी लग जाए, तो भी अष्टमी ही मान्य होती है। स्मार्त लोग अक्सर तिथि को प्राथमिकता देते हैं और रोहिणी नक्षत्र पर ध्यान नहीं देते, इसलिए वे पहले दिन व्रत रखते हैं। वहीं, वैष्णव लोग रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी दोनों के मिलन को महत्वपूर्ण मानते हैं। इसलिए वे अगले दिन उपवास करते हैं यदि वह संयोग तब बन रहा हो।

उदयातिथि बनाम ग्रेगोरियन कैलेंडर

समझने के लिए इसे हम ग्रेगोरियन कैलेंडर (अंग्रेजी कैलेंडर) से तुलना कर सकते हैं। दरअसल, अंग्रेजी कैलेंडर में तिथि रात 12 बजे बदल जाती है, लेकिन हिंदू पंचांग में तिथि सूर्योदय के समय बदलती है। इसलिए अगर रात में अष्टमी लगती है, लेकिन सूर्योदय तक नवमी हो जाती है, तो अष्टमी का व्रत उस दिन नहीं रखा जाता, जब तक सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि न हो।

विशेष संयोग का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी पर केवल तिथि नहीं, बल्कि अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र का संयोग भी अत्यंत शुभ माना जाता है। श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में मध्यरात्रि को हुआ था। वैष्णव परंपरा में इस संयोग को देखकर ही व्रत का निर्धारण होता है। इसलिए यदि यह संयोग अगले दिन बन रहा हो, तो वैष्णव उसी दिन उपवास रखते हैं।

पर्व की भव्यता दोनों दिन

दो दिन में पर्व मनाए जाने के बावजूद, दोनों दिन श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का माहौल एक जैसा ही रहता है। मथुरा, वृंदावन, द्वारका सहित पूरे देश में मंदिर सजाए जाते हैं। झांकियां, कीर्तन, भजन, मटकी फोड़ जैसे आयोजन होते हैं। भक्त रात 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म की प्रतीक्षा करते हैं और भगवान को झूले में झुलाते हैं।

निष्कर्ष

जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है क्योंकि स्मार्त और वैष्णव परंपरा के नियम अलग हैं। स्मार्त लोग केवल तिथि पर ध्यान देते हैं, जबकि वैष्णव लोग तिथि के साथ नक्षत्र का भी विशेष ध्यान रखते हैं। हालांकि व्रत और पूजा का दिन भले अलग हो, पर भाव और भक्ति में कोई कमी नहीं होती। दोनों ही दिन श्रीकृष्ण की महिमा का उत्सव हर्षोल्लास और श्रद्धा से मनाया जाता है।

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Published by Sri Mandir·August 6, 2025

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