जन्माष्टमी स्मार्त 2025 कब है?
image
downloadDownload
shareShare
ShareWhatsApp

जन्माष्टमी स्मार्त 2025 कब है?

2025 में स्मार्त परंपरा की जन्माष्टमी कब मनाई जाएगी? जानिए तिथि, पूजन विधि और श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का महत्व स्मार्त परंपरा के अनुसार।

स्मार्त परंपरा की जन्माष्टमी के बारे में

स्मार्त परंपरा में जन्माष्टमी कृष्ण अष्टमी के दिन मनाई जाती है, जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र मध्यरात्रि तक रहे। इसमें उपवास, पूजा, भजन-कीर्तन और रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाकर व्रत पूर्ण किया जाता है।

1.स्मार्त जन्माष्टमी की सम्पूर्ण जानकारी2.चलिए जानते हैं स्मार्त कृष्ण जन्माष्टमी के दिन के शुभ मुहूर्त3.अन्य शहरों में कृष्ण जन्माष्टमी मुहूर्त4.कृष्ण जन्माष्टमी किस दिन मनाएँ? 15 अगस्त या 16 अगस्त को?5.स्मार्त जन्माष्टमी क्या है?6.कौन से लोग स्मार्त जन्माष्टमी मनाते हैं?7.क्यों मनाई जाती है स्मार्त जन्माष्टमी? 8.स्मार्त जन्माष्टमी का महत्व क्या है? 9.स्मार्त जन्माष्टमी कैसे मनाएं? 10.स्मार्त जन्माष्टमी की परंपरा 11.स्मार्त जन्माष्टमी पर पूजा कैसे करें12.स्मार्त जन्माष्टमी पर व्रत नियम13.14.स्मार्त जन्माष्टमी के मंत्र15.स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी में अंतर 16.स्मार्त जन्माष्टमी की विशेष बातें

स्मार्त जन्माष्टमी की सम्पूर्ण जानकारी

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व संपूर्ण भारत में श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। इस अवसर पर घर-घर में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की विशेष तैयारियां की जाती हैं और भक्तजन श्रद्धापूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तगण इस दिन विशेष रूप से शुभ मुहूर्त में भगवान के जन्म का उत्सव मनाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। पंचांगों की गणना के अनुसार, वर्ष 2025 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का यह पर्व भगवान के 5252वें अवतरण के रूप में मनाया जाएगा।

चलिए जानते हैं स्मार्त कृष्ण जन्माष्टमी के दिन के शुभ मुहूर्त

  • भगवान श्रीकृष्ण का 5252वाँ जन्मोत्सव
  • इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
  • निशिता पूजा का समय - 16 अगस्त को 11:40 पी एम से 12:24 ए एम, 17 अगस्त तक
  • अवधि - 00 घण्टे 44 मिनट्स
  • पारण समय - 05:32 ए एम, अगस्त 17 के बाद
  • रोहिणी नक्षत्र के बिना जन्माष्टमी
  • पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी।
  • मध्यरात्रि का क्षण - 12:02 ए एम, अगस्त 17
  • चन्द्रोदय समय - 11:16 पी एम कृष्ण जन्माष्टमी
  • अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 15, 2025 को 11:49 पी एम बजे
  • अष्टमी तिथि समाप्त - अगस्त 16, 2025 को 09:34 पी एम बजे
  • रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ - अगस्त 17, 2025 को 04:38 ए एम बजे
  • रोहिणी नक्षत्र समाप्त - अगस्त 18, 2025 को 03:17 ए एम बजे

अन्य शहरों में कृष्ण जन्माष्टमी मुहूर्त

  • 12:16 ए एम से 01:01 ए एम, अगस्त 17 - पुणे
  • 12:04 ए एम से 12:47 ए एम, अगस्त 17 - नई दिल्ली
  • 11:50 पी एम से 12:36 ए एम, अगस्त 17 - चेन्नई
  • 12:09 ए एम से 12:53 ए एम, अगस्त 17 - जयपुर
  • 11:58 पी एम से 12:43 ए एम, अगस्त 17 - हैदराबाद
  • 12:04 ए एम से 12:48 ए एम, अगस्त 17 - गुरुग्राम
  • 12:06 ए एम से 12:49 ए एम, अगस्त 17 - चण्डीगढ़
  • 11:19 पी एम से 12:03 ए एम, अगस्त 17 - कोलकाता
  • 12:20 ए एम से 01:05 ए एम, अगस्त 17 - मुम्बई
  • 12:01 ए एम से 12:47 ए एम, अगस्त 17 - बेंगलूरु
  • 12:22 ए एम से 01:06 ए एम, अगस्त 17 - अहमदाबाद
  • 12:03 ए एम से 12:46 ए एम, अगस्त 17 - नोएडा

कृष्ण जन्माष्टमी किस दिन मनाएँ? 15 अगस्त या 16 अगस्त को?

इस बार जन्माष्टमी की तिथि को लेकर विशेष संयोग बना है, जिसके कारण 15 और 16 अगस्त दोनों ही तारीखों में लोगों के बीच भ्रम की स्थिति है। दरअसल, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ 15 अगस्त 2025 को रात 11 बजकर 49 मिनट पर होगा और यह 16 अगस्त की रात 9 बजकर 34 मिनट तक रहेगी। हालांकि 15 अगस्त की रात को न तो रोहिणी नक्षत्र का संयोग रहेगा और न ही चंद्रमा वृषभ राशि में होंगे, इसलिए 15 अगस्त को जन्माष्टमी का व्रत रखना या पूजन करना ज्योतिषाचार्यों के अनुसार उचित नहीं माना गया है।

16 अगस्त को अष्टमी तिथि दिनभर रहेगी और इसी रात चंद्रमा वृषभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे, अतः निशिता काल (रात्रि 11 बजकर 40 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक) में पूजन करना ही शुभ रहेगा।

यही कारण है कि प्रमुख पंचांगों के अनुसार 16 अगस्त 2025 को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की सलाह दी गई है। वहीं, जो श्रद्धालु रोहिणी नक्षत्र के संयोग में व्रत रखना चाहते हैं, उनके लिए 17 अगस्त को जन्माष्टमी व्रत रखना और पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा, क्योंकि इस दिन रोहिणी नक्षत्र भी रहेगा और गोकुलाष्टमी व नंदोत्सव भी इसी दिन मनाए जाएंगे।

स्मार्त जन्माष्टमी क्या है?

स्मार्त जन्माष्टमी वह दिन होता है जब गृहस्थ जीवन जीने वाले साधारण भक्त (स्मार्त परंपरा के अनुयायी) भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। यह व्रत भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र के साथ पड़ने पर रखा जाता है। इसे ही स्मार्त जन्माष्टमी कहते हैं।

कौन से लोग स्मार्त जन्माष्टमी मनाते हैं?

स्मार्त जन्माष्टमी मुख्यतः गृहस्थ जन, यानी वे लोग जो परिवार, समाज और जिम्मेदारियों से जुड़े होते हैं, वही मनाते हैं। वहीं, सन्यासी और वैष्णव परंपरा के लोग वैष्णव जन्माष्टमी (जिस दिन निशित काल में रोहिणी नक्षत्र के साथ अष्टमी पड़ती है) को मनाते हैं।

क्यों मनाई जाती है स्मार्त जन्माष्टमी?

स्मार्त जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के मानव रूप में अवतरण का उत्सव है। यह मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कंस के अत्याचार से पृथ्वी की रक्षा के लिए कृष्ण के रूप में जन्म लिया था, और उनका यह जन्म अष्टमी तिथि की आधी रात को हुआ था। इसलिए स्मार्त परंपरा के अनुयायी इसी दिन व्रत, उपवास, पूजा व कीर्तन करते हैं।

स्मार्त जन्माष्टमी का महत्व क्या है?

  • यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के धर्म की स्थापना, अधर्म के विनाश, और भक्तों की रक्षा के उद्देश्य को स्मरण करने का दिन है।
  • इस दिन व्रत रखने और कृष्ण जन्म का उत्सव मनाने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
  • पवित्रता, संयम और भक्ति के साथ किए गए व्रत से पापों का नाश और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है।
  • यह दिन ध्यान, भजन और सेवा के लिए विशेष रूप से श्रेष्ठ माना जाता है।

स्मार्त जन्माष्टमी कैसे मनाएं?

उपवास: भक्त इस दिन निर्जला या फलाहारी व्रत रखते हैं। स्नान और संकल्प: प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लिया जाता है। पूजा विधि: दिनभर भजन-कीर्तन कर रात को 12 बजे निशित काल में श्रीकृष्ण का दूध, दही, घी, शहद व गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। झांकी और दीपदान: भगवान की झांकी सजाई जाती है, और दीप जलाकर आरती की जाती है। मधुर प्रसाद: मक्खन-मिश्री, पंचामृत और तुलसीपत्र से युक्त प्रसाद बांटा जाता है।

स्मार्त जन्माष्टमी की परंपरा

  • घर पर बाल गोपाल की मूर्ति स्थापित कर पूजन किया जाता है।
  • रात्रि जागरण कर भक्तजन भजन व श्रीकृष्ण की लीलाओं का गायन करते हैं।
  • कई स्थानों पर रासलीला, नाटक व झांकियों का आयोजन होता है।
  • बच्चे कृष्ण, राधा, बलराम आदि की वेशभूषा में सजकर उत्सव को जीवंत बनाते हैं।

स्मार्त जन्माष्टमी पर पूजा कैसे करें

श्री मंदिर पर आज हम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आपके लिए संपूर्ण पूजा विधि लेकर आए हैं। यह त्योहार कृष्ण भक्तों के लिए एक उत्सव के समान होता है, जिसे हर हिंदू घर में पूरी भक्ति और आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दौरान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की ज़ोरों-शोरों से तैयारियां की जाती हैं, और उसी में आपकी मदद करने के लिए आज आपको इस पूजा से जुड़ी संपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं।

सबसे पहले ये जान लेते हैं कि कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा के लिए उपासकों को किन किन चीज़ों की आवश्यकता होगी-

  • जिसमें बालगोपाल के लिए झूला, बालगोपाल की धातु की मूर्ति, बांसुरी, बालगोपाल के वस्त्र, श्रृंगार के गहने, बालगोपाल के झूले को सजाने के लिए फूल, तुलसी के पत्ते, चंदन, कुमकुम, अक्षत, मिश्री, सुपारी, पान के पत्ते, पुष्पमाला, तुलसी की माला, खड़ा धनिया, लाल वस्त्र, केले के पत्ते, शहद, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मक्खन, गंगाजल, धूप बत्ती, कपूर, केसर, फल और गंगा जल।

पूजा के लिए इन चीजों की तैयारियां करने बाद

  • कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर गंगाजल जल मिले पानी से स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद मन में श्रीकृष्ण का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। जल और कुश (शुभ कार्यों में उपयोग की जाने वाली घास) के साथ सूर्य को अर्घ्य दें।
  • अपने घर में श्री कृष्ण का झूला फूलों और अन्य सजावटों से सजाएं। यदि आप अपने घर में कृष्ण का झूला सजाने में समर्थ नहीं हैं, तो पास के ही किसी कृष्ण मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करें। (इस पर्व पर लगभग हर मंदिर में लड्डू गोपाल का झूला सजाया जाता है।)
  • लड्डू गोपाल की मूर्ति को झूले पर स्थापित करें। अर्धरात्रि में कृष्ण के जन्म से पहले बाल गोपाल की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद मूर्ति को शुद्ध जल से स्नान करवाएं और फिर कान्हा को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं। फिर उनकी मूर्ति को पुनः झूले पर स्थापित करें और उनकी प्रिय बांसुरी भी मूर्ति के पास में रख दें।
  • अब पूजा स्थल पर चौकी बनाकर उस पर पान का पत्ता रखें, फिर उसके ऊपर एक सिक्का रखकर सुपारी को उस पर स्थापित करें। फिर पूजा स्थल पर घी का दीपक, धूपबत्ती व अगरबत्ती लगाएं।
  • इसके अलावा मध्य रात्रि तक कीर्तन-भजन करें और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाएं । अब रात में 12 बजे आप भगवान का जन्मोत्सव मनाएं और उनको झूला झूलाएं।
  • अब लड्डूगोपाल को चन्दन, कुमकुम, अक्षत, पुष्पमाला इत्यादि चढ़ाएं। इसके बाद माखन-मिश्री, पंजीरी, फल (ककड़ी, केला, पपीता या कोई भी मौसमी फल) और पंचामृत का भोग लगाएं। भोग को तुलसी के पत्तों से अवश्य सजाएँ। क्योंकि इसके बिना भोग अधूरा माना जाता है।
  • पूजा की थाल सजाकर भगवान श्रीकृष्ण की आरती करें। इसके बाद आराम से झूले को हिलाते हुए श्री कृष्ण से प्रार्थना करें, और प्रसाद सब में वितरित करके खुद भी भोग को ग्रहण कर लें।

स्मार्त जन्माष्टमी पर व्रत नियम

स्नान व संकल्प – प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें: “आज मैं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत कर रहा/रही हूँ, कृपया इस व्रत को स्वीकार करें।” फलाहार या निर्जला उपवास – इस दिन निर्जल या केवल फलाहारी व्रत रखा जाता है, कुछ लोग दिनभर केवल एक बार फल ग्रहण करते हैं। अष्टमी तिथि का पालन – अष्टमी तिथि जब दिन में हो, उसी दिन व्रत रखा जाता है, रात में श्रीकृष्ण जन्म का उत्सव मनाया जाता है। रात्रि जागरण – भगवान कृष्ण का जन्म रात 12 बजे होता है, इसलिए भक्त पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं। मूर्ति स्थापना और पूजन – घर में बाल गोपाल की मूर्ति रखकर उनका षोडशोपचार पूजन करें: पंचामृत स्नान, वस्त्र, फूल, तुलसी, धूप-दीप आदि। अभिषेक और आरती – निशीथ काल में श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करें और आरती गाएं। प्रसाद वितरण – मक्खन-मिश्री, पंचामृत और फल-मेवा का प्रसाद बांटें।

  • मनोकामना पूर्ति और सौभाग्य की प्राप्ति।
  • संतान सुख और संतान की रक्षा का आशीर्वाद।
  • कष्ट, पाप और रोगों का नाश होता है।
  • घर में शांति, समृद्धि और भक्ति का वातावरण बनता है।
  • श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति भाव में वृद्धि होती है।
  • यह व्रत मुक्ति मार्ग की ओर एक कदम माना जाता है

स्मार्त जन्माष्टमी के मंत्र

पूजा और ध्यान में उपयोग के लिए निम्न मंत्रों का उच्चारण करें:

ध्यान मंत्र

  • ॐ वासुदेवाय विद्महे । भक्ति वल्लभाय धीमहि । तन्नो कृष्णः प्रचोदयात्॥

मूल मंत्र

  • ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥

आरती मंत्र (संक्षेप)

  • आरती कुंज बिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की...

संकल्प के समय

  • मम सम्पूर्ण पापक्षय पूर्वक श्रीकृष्ण प्रीत्यर्थं उपवासं करिष्ये॥

स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी में अंतर

स्मार्त और वैष्णव जन्माष्टमी में मुख्य अंतर तिथि की गणना और पालन की पद्धति में होता है। स्मार्त जन्माष्टमी सामान्य गृहस्थों द्वारा मनाई जाती है और इसमें वही तिथि मानी जाती है जब अष्टमी तिथि दिन के समय में हो। इसके अनुसार जो लोग गृहस्थ जीवन में होते हैं, वे उसी दिन उपवास, पूजन और रात्रि जागरण करते हैं।

दूसरी ओर, वैष्णव जन्माष्टमी मुख्यतः वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा मनाई जाती है, जो शास्त्रों में वर्णित अधिक सटीक गणना के अनुसार अष्टमी तिथि को निशीथ काल (मध्यरात्रि) और रोहिणी नक्षत्र के योग में मनाते हैं। यदि अष्टमी तिथि दिन में है लेकिन रात तक नहीं रहती, तो वैष्णव इसे अगले दिन मनाते हैं। इसीलिए कई बार दोनों जन्माष्टमियों में एक दिन का अंतर देखा जाता है। वैष्णव जन्माष्टमी में श्रीकृष्ण के जन्म के समय पंचामृत अभिषेक, झांकी, रासलीला और भव्य आयोजन विशेष रूप से होते हैं, जबकि स्मार्त जन्माष्टमी अधिक साधारण और व्यक्तिगत पूजन पर केंद्रित होती है।

स्मार्त जन्माष्टमी की विशेष बातें

  • यह जन्माष्टमी गृहस्थ जीवन वालों के लिए अनुकूल होती है — जिनके लिए अगले दिन ऑफिस, परिवारिक जिम्मेदारियां रहती हैं।
  • यह व्रत सामान्य अनुशासन में भी पालन योग्य होता है — जैसे फलाहार, भजन-पूजन, संकीर्तन।
  • बाल गोपाल को झूला झुलाना, झांकी सजाना, और रात्रि भक्ति कार्यक्रम प्रमुख होते हैं।
  • कई स्थानों पर इस दिन माखन मिश्री और ध्यान-भक्ति आधारित आयोजन होते हैं।

तो ये थी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मुहूर्त व तिथि से जुड़ी पूरी जानकारी। आप इस पर्व पर विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करें। हमारी कामना है कि यशोदा नंदन आप पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।

divider
Published by Sri Mandir·August 5, 2025

Did you like this article?

srimandir-logo

श्री मंदिर ने श्रध्दालुओ, पंडितों, और मंदिरों को जोड़कर भारत में धार्मिक सेवाओं को लोगों तक पहुँचाया है। 50 से अधिक प्रसिद्ध मंदिरों के साथ साझेदारी करके, हम विशेषज्ञ पंडितों द्वारा की गई विशेष पूजा और चढ़ावा सेवाएँ प्रदान करते हैं और पूर्ण की गई पूजा विधि का वीडियो शेयर करते हैं।

हमारा पता

फर्स्टप्रिंसिपल ऐप्सफॉरभारत प्रा. लि. 435, 1st फ्लोर 17वीं क्रॉस, 19वीं मेन रोड, एक्सिस बैंक के ऊपर, सेक्टर 4, एचएसआर लेआउट, बेंगलुरु, कर्नाटका 560102
YoutubeInstagramLinkedinWhatsappTwitterFacebook