कृष्ण जन्मोत्सव पर खीरा काटने की परंपरा का रहस्य क्या है? जानिए इसका प्रतीकात्मक अर्थ और धार्मिक मान्यता।
जन्माष्टमी में खीरा काटना एक विशेष परंपरा है। इसे श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक माना जाता है। आधी रात जब भगवान कृष्ण का जन्म होता है, तब खीरा काटकर उसके बीज निकालना नाभि छेदन (नाल काटने) की प्रतीकात्मक क्रिया मानी जाती है।
जन्माष्टमी का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन लोग लड्डू गोपाल यानी बाल स्वरूप में भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। इस साल जन्माष्टमी 16 अगस्त को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान को सुंदर तरीके से सजाया जाता है और उन्हें कई तरह के भोग भी चढ़ाए जाते हैं।
जन्माष्टमी की पूजा में खीरे का बहुत खास महत्व होता है। माना जाता है कि बिना खीरे को काटे पूजा पूरी नहीं मानी जाती। खीरा काटने की परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी हुई है।
दरअसल, जिस तरह बच्चे के जन्म के समय उसकी गर्भनाल (नाल) काटी जाती है, उसी तरह जन्माष्टमी की रात खीरे का तना काटा जाता है। यह परंपरा श्रीकृष्ण के जन्म का प्रतीक मानी जाती है। इसलिए इसे कई जगहों पर "नल छेदन" कहा जाता है।
जब कृष्ण बाल्यावस्था में थे, तो वे अपने सखाओं के साथ गाय चराने जाते थे। एक बार, उन्होंने देखा कि कुछ ग्वाल बालक खीरे (ककड़ी) चुरा रहे हैं। कृष्ण ने उन्हें ऐसा करने से रोका, लेकिन बच्चों ने नहीं माना। तब कृष्ण ने खीरे को अपनी चक्रधारी माया से काट दिया, जिससे बच्चों को पता चला कि वे कोई साधारण बालक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान हैं।
जब खीरे का नाल छेदन (तना काटना) किया जाता है, उसके बाद श्रीकृष्ण की आरती होती है। फिर खीरे को भगवान को अर्पित किया जाता है। थोड़ी देर बाद वही खीरा प्रसाद के रूप में भक्तों में बांट दिया जाता है।
जन्माष्टमी की रात ठीक 12 बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए उसी समय खीरे के डंठल को एक सिक्के से काटकर भगवान के जन्म की परंपरा निभाई जाती है। इसके बाद शंख बजाकर इस पावन क्षण को और भी खास बनाया जाता है। फिर बाल गोपाल की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कई बार डंठल वाला खीरा नहीं मिलता, तो लोग खीरे को बीच से काटकर भी भगवान का जन्म कराते हैं। श्रीकृष्ण के जन्म के बाद भक्त उन्हें झूले पर बिठाते हैं, प्यार से झुलाते हैं और दुलारते हैं। इसके बाद भगवान को उनकी पसंद की चीजें भोग में चढ़ाई जाती हैं। इस दिन खासतौर पर पंजीरी, चरणामृत और खीरा जरूर अर्पित किया जाता है।
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