श्रीकृष्ण जन्मोत्सव को किन-किन नामों से जाना जाता है? जानें जन्माष्टमी के अन्य नाम और उनका अर्थ।
जन्माष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, गोकुलाष्टमी, कृष्णाष्टमी, अष्टमी रोहिणी और श्री जयंती जैसे नामों से भी जाना जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
भगवान श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, जिन्होंने अधर्म और अन्याय का विनाश कर धर्म की स्थापना के लिए धरती पर अवतरण लिया। उनका जीवन आदर्श नीति, प्रेम, और जीवन-दर्शन का अमूल्य स्रोत है। श्रीकृष्ण को उनके विभिन्न रूपों और लीलाओं के आधार पर कई नामों से जाना जाता है - कन्हैया, गोपाल, श्याम, मुरलीधर, केशव, वासुदेव, द्वारकेश और द्वारकाधीश, हर नाम उनके व्यक्तित्व का एक नया आयाम प्रस्तुत करता है। उनका जन्म द्वापर युग में मथुरा के कारागार में हुआ, जब उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव को कंस ने बंदी बना रखा था लेकिन उनका पालन-पोषण नंद बाबा और यशोदा माता ने किया।
श्रीकृष्ण का जीवन बचपन की लीलाओं से लेकर महाभारत के युद्ध तक प्रेरणाओं से भरा है। महाभारत में अर्जुन के सारथी बनकर उन्होंने केवल युद्ध का मार्गदर्शन ही नहीं किया, बल्कि जीवन का सार बताने वाली भगवद् गीता भी प्रदान की, जिसे आज भी विश्व की महानतम दार्शनिक कृतियों में गिना जाता है।
हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। यह पर्व पूरे भारत में भक्ति, भजन, झांकी, और रात्रि पूजन के साथ मनाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह पर्व देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे -
गोकुलाष्टमी (महाराष्ट्र) - महाराष्ट्र में जन्माष्टमी को गोकुलाष्टमी कहा जाता है। यहाँ का सबसे प्रमुख आयोजन होता है दही-हांडी उत्सव, जिसमें युवा टोली बनाकर ऊँची मटकी को फोड़ते हैं, जो श्रीकृष्ण की माखन चोरी लीला का प्रतीक है। यह उत्सव खासकर मुंबई और आसपास के क्षेत्रों में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
श्रीकृष्ण जयंती (तमिलनाडु और केरल) - दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु और केरल में, इस पर्व को श्रीकृष्ण जयंती कहा जाता है। घरों में श्रीकृष्ण की छोटे - छोटे पैर चावल या चूने से बनाए जाते हैं, जो यह दर्शाते हैं कि बाल कृष्ण घर में प्रवेश कर रहे हैं। फल, माखन, और मिश्री का भोग चढ़ाया जाता है और भक्ति गीतों का आयोजन होता है।
अष्टमी रोहिणी (केरल) - केरल में जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र एक साथ आते हैं, तब जन्माष्टमी को अष्टमी रोहिणी के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व अधिक शांति और साधना से मनाया जाता है। मंदिरों में कीर्तन, श्रीकृष्ण की मूर्तियों का अभिषेक और विशेष पूजा होती है। गुरुवायूर मंदिर इस दिन श्रद्धालुओं से भर जाता है।
नंदोत्सव (जन्म के अगले दिन) - श्रीकृष्ण के जन्म के अगले दिन, नंद बाबा के घर में हुए आनंद उत्सव को नंदोत्सव कहा जाता है। यह दिन विशेष रूप से गोकुल और वृंदावन में उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। मंदिरों में मटकी फोड़, झांकियां, प्रसाद वितरण और उत्सव नृत्य होते हैं।
जन्माष्टमी सिर्फ भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह उनके अनंत प्रेम, नीति, करुणा और त्याग की याद भी दिलाता है। हर साल करोड़ों भक्त इस दिन को भक्ति, उल्लास और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इस त्योहार की खास बात यह है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों और तरीकों से मनाया जाता है। यही इसे एक धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक उत्सव भी बना देता है जो भारत की विविधता और आध्यात्मिक परंपरा का सुंदर चित्र पेश करता है।
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