
क्या आप जानते हैं मकरविलक्कु 2026 कब है? जानिए इस पवित्र पर्व की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और सबरीमाला में होने वाले इस दिव्य उत्सव का धार्मिक महत्व – सब कुछ एक ही जगह!
मकरविलक्कु एक पारंपरिक हिन्दू उत्सव है, जो त्रिकूट पर्वत पर स्थित अयप्पा मंदिर से जुड़ा है। इस दौरान भक्त दीप जलाकर भगवान अयप्पा की भक्ति प्रदर्शित करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न करते हैं।
मकरविलक्कु दक्षिण भारत, विशेषकर केरल राज्य में मनाया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र और भव्य पर्व है, जो भगवान अयप्पा को समर्पित है। यह उत्सव हर वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर सबरीमाला मंदिर में मनाया जाता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु ‘मकर ज्योति’ एक दिव्य प्रकाश के दर्शन के लिए पोन्नम्बलमेडु पहाड़ी पर एकत्रित होते हैं, जिसे भगवान अयप्पा का आशीर्वाद माना जाता है।
मकरविलक्कु की शुरुआत तिरुवभरणम जुलूस, यानी भगवान अयप्पा के पवित्र आभूषणों की शोभायात्रा से होती है, जो इस पर्व की धार्मिक गरिमा को और बढ़ाती है। सात दिनों तक चलने वाला यह उत्सव भक्तों के लिए श्रद्धा, भक्ति और दिव्यता का प्रतीक है, जो उन्हें आत्मिक ऊर्जा और ईश्वर से गहरे जुड़ाव का अनुभव कराता है।
मकरविलक्कु पर्व हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर 14 या 15 जनवरी को पड़ता है। यह पर्व केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में बड़े हर्ष और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान अयप्पा के भक्त दूर-दूर से सबरीमाला पहुंचते हैं ताकि वे पवित्र मकर ज्योति के दर्शन कर सकें। मकरविलक्कु का दिन भगवान अयप्पा की विशेष पूजा, अर्पण और धार्मिक अनुष्ठानों से भरा होता है। माना जाता है कि इस शुभ अवसर पर मकर ज्योति का दर्शन करने से भक्तों के जीवन में सौभाग्य, शांति और आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है।
मकरविलक्कु उत्सव का इतिहास भगवान अयप्पा की पूजा परंपरा और केरल के सबरीमाला मंदिर की आस्था से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह पर्व मकर मास के पहले दिन, अर्थात मकर संक्रांति के अवसर पर मनाया जाता है और केरल में इसे शुभारंभ का प्रतीक माना जाता है।
माना जाता है कि इस दिन भगवान अयप्पा ने दैत्य महिषी का वध कर धर्म की पुनर्स्थापना की थी। उनकी इस दिव्य विजय के उपलक्ष्य में भक्त हर वर्ष मकरविलक्कु पर्व मनाते हैं। परंपरानुसार, पंडलम महल से भगवान अयप्पा के पवित्र आभूषणों का जुलूस (तिरुवाभरणम) सबरीमाला तक लाया जाता है। इस यात्रा में भक्त बड़ी श्रद्धा और उत्साह से सम्मिलित होते हैं।
किंवदंती है कि जब भगवान अयप्पा भक्तों को दर्शन देते हैं, उसी समय आकाश में एक दिव्य प्रकाश या मकर ज्योति प्रकट होती है। यह अद्भुत ज्योति सबरीमाला मंदिर के सामने स्थित पोन्नम्बलामेडु पहाड़ी पर दिखाई देती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही शुभ क्षण होता है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
सबरीमला मंदिर में मकरविलक्कु का आयोजन एक अत्यंत भव्य और पवित्र पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन आयोजित होता है और भगवान अयप्पा को समर्पित होता है। इस दिन लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से सबरीमला पहुँचकर भगवान अयप्पा के दर्शन करते हैं।
मकरविलक्कु उत्सव की शुरुआत “तिरुवाभरणम” जुलूस से होती है, जिसमें भगवान अयप्पा के शाही आभूषण पंडलम महल से सबरीमला लाए जाते हैं। यह यात्रा अत्यंत धार्मिक वातावरण में, भक्ति गीतों और जयकारों के साथ संपन्न होती है।
मंदिर में पहुँचने के बाद भगवान अयप्पा का विशेष श्रृंगार और पूजा-अर्चना की जाती है। शाम के समय जब मुख्य पूजा समाप्त होती है, तब आकाश में दिखाई देने वाली “मकर ज्योति” (दिव्य प्रकाश) के दर्शन भक्त बड़ी श्रद्धा से करते हैं। यह ज्योति सबरीमला मंदिर से लगभग 8 किलोमीटर दूर पोन्नम्बलामेडु पहाड़ी पर दिखाई देती है और इसे भगवान अयप्पा की दिव्य उपस्थिति का प्रतीक माना जाता है।
इस पवित्र क्षण को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु मंदिर प्रांगण और आस-पास की पहाड़ियों पर एकत्रित होते हैं। भक्तों का विश्वास है कि इस दिव्य प्रकाश के दर्शन से पापों का नाश होता है, मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में शुभता आती है।
मकरविलक्कु उत्सव भगवान अयप्पा की भक्ति, आत्म-अनुशासन और दिव्य कृपा का प्रतीक है। यह पर्व 41 दिनों की तपस्या के बाद मनाया जाता है, जिसे मंडलम व्रतम कहा जाता है। इस दौरान भक्त सात्विक जीवन जीते हैं, ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और मन, वचन, कर्म से शुद्ध रहते हैं।
मकर संक्रांति के दिन सबरीमाला मंदिर में प्रकट होने वाला मकरज्योति इस उत्सव का सबसे पवित्र क्षण होता है। इसे भगवान अयप्पा के दिव्य आशीर्वाद और ज्ञानोदय का प्रतीक माना जाता है। मकरविलक्कु भक्तों को आंतरिक शांति, आत्म-शुद्धि और भगवान के प्रति गहरी भक्ति का अनुभव कराता है। यह केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आत्म-नियंत्रण, एकता और आध्यात्मिक जागरण की यात्रा है, जो भक्तों को ईश्वर से जोड़ती है और जीवन में नई ऊर्जा भरती है।
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