
क्या आप जानते हैं माघ बिहू 2026 कब है? जानिए इस पारंपरिक असमिया त्योहार की तिथि, पूजा विधि, मुहूर्त और इसे मनाने की विशेष विधि से जुड़ी पूरी जानकारी – सब कुछ एक ही जगह!
माघ बिहू, जिसे भोगाली बिहू भी कहा जाता है, असम का प्रमुख त्योहार है। यह जनवरी के महीने में मनाया जाता है। यह फसल कटाई का पर्व है और इसमें लोग आनंद, भोजन, नृत्य और मेल-मिलाप का उत्सव मनाते हैं।
भारत में फसलों से जुड़े हज़ारों उत्सव मनाए जाते हैं, जिसमें से एक प्रचलित उत्सव है माघ बिहु। हिंदू धर्म के अनुसार, माघ बिहु का उत्सव संक्रांति की रात से शुरू हो जाता है। यह त्यौहार हर वर्ष माघ की शुरुआत में मनाया जाता है। भारत में लोहड़ी और पोंगल जैसे कई त्योहार हैं, जो किसानों और फसलों से जुड़े हैं। इन्हीं में से एक है माघ बिहु, जो विशेष रूप से असम में मनाया जाता है। माघ बिहु अक्सर माघ महीने यानी जनवरी की शुरुआत में 15 या 16 तारीख को मनाया जाता है।
असम के लोग इस दिन को नए वर्ष की शुरुआत के रूप में मनाते हैं। जिस दिन पूरे देश में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है, उस दिन असम में माघ बिहु मनाने की प्रथा है। कई लोग इस उत्सव को भोगली बिहु के नाम से भी जानते हैं।
माघ बिहू का इतिहास 3500 ईसा पूर्व से है और इसकी जड़ें असम के प्राचीन कृषि समाजों में हैं, जो फसल के मौसम के अंत का जश्न मनाते हैं और एक नए कृषि चक्र की शुरुआत का स्वागत करते हैं। यह त्योहार मूल निवासी दिमासा कचारी जनजाति द्वारा शुरू किया गया था और इसका सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व भी है। 'बिहू' शब्द 'बिशु' (शांति) और 'भोग' (भोज) से मिलकर बना है।
यह त्योहार लोगों के बीच सामाजिक जुड़ाव और सामुदायिक संबंधों को मजबूत करता है। लोग एक साथ आते हैं, रिश्ते बनाते हैं, और एक-दूसरे के साथ खुशियां और पकवान बांटते हैं। भरपूर फसल के लिए देवताओं और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का यह एक माध्यम है। इस दौरान अस्थायी झोपड़ियां (भेलाघर) बनाना और पारंपरिक अलाव (मेइजी) जलाना शामिल है, जो सामुदायिक प्रयास और एक साथ आने का प्रतीक है।
माघ बिहू की शुरुआत उरूका नामक दिन से होती है। इस दिन गांव के लोग मिलकर खुले मैदान या खेतों में ‘भेलाघर’ (बांस और पुआल से बना अस्थायी घर) तैयार करते हैं। भेलाघर के पास ‘मेजी’ नाम का बड़ा अलाव बनाया जाता है। लोग रात भर गीत, नृत्य और दावतों का आनंद लेते हैं - इसे भोज और मेल-मिलाप की रात कहा जाता है। लोग पारंपरिक असमिया व्यंजन जैसे पिठा, लारू (तिल या नारियल के लड्डू), मछली और मांस के पकवान बनाते हैं।
अगली सुबह लोग मेजी को आग लगाते हैं, जो बुराइयों और नकारात्मकता को जलाने का प्रतीक है। लोग सूर्य देव को नमस्कार करते हैं और नई फसल से बने पकवानों का प्रसाद चढ़ाते हैं। इसके बाद घर-घर में भोजन, मिठाई और पारंपरिक खेलों का दौर चलता है। ग्रामीण इलाकों में लोग मवेशियों को नहलाते हैं, उन्हें हल्दी लगाते हैं और सजाते हैं — इसे ‘गोरु बिहू’ कहा जाता है।
माघ बिहू असम का एक बहुत महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्यौहार एक तरह से सर्दियों के अंत और बसंत की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। माघ बिहू को मनाने का मूल उद्देश्य है, प्रकृति और भगवान को फसलों की अच्छी पैदावार के लिए धन्यवाद देना।
माघ बिहू का यह त्योहार नया नहीं बल्कि कई हज़ारों साल पुराना है। कुछ विद्वानों के अनुसार, माघ बिहू का 3500 ईशा पूर्व जितना पुराना है। मान्यता है, कि उस समय के लोग बेहतर फसल के लिए अग्नि यज्ञ किया करते थे। ऐसा भी माना जाता है, कि भारत के पूर्वी क्षेत्रों में पाई जाने वाली कृषि जनजाति ने इस त्यौहार की शुरुआत की थी।
विष्णु पुराण के अनुसार, प्राचीन काल में इस त्यौहार को बिसवा के नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है, कि यह त्यौहार तब मनाया जाता है जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान ग्रहण करता है। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, बिहू बिसवा का ही आधुनिक संस्करण रूप माना जाता है।
इस उत्सव के दौरान भगवान अग्नि की पूजा सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसके साथ ही, इसी दिन किसान अपनी नई फसल की कटाई भी शुरू करते हैं। माघ बिहू का यह त्योहार अपने साथ यह संदेश लेकर आता है, कि किसानों की फसल की कटाई हो चुकी है, तो अब उन्हें अपने जीवन में कुछ क्षण आराम के मिलेंगे।
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