
क्या आप जानते हैं रथ सप्तमी 2026 कब है? यहां जानिए रथ सप्तमी की तिथि, सूर्य देव की पूजा-विधि, स्नान-दान के नियम, व्रत विधान और इस शुभ पर्व के महत्व से जुड़ी सभी आवश्यक धार्मिक जानकारियां — एक ही स्थान पर!
रथ सप्तमी सूर्यदेव के रथोत्सव का पावन पर्व है, जिसे सूर्य जयंती भी कहा जाता है। इस दिन सूर्यदेव की आराधना, अर्घ्यदान और व्रत का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि रथ सप्तमी पर सूर्यदेव के रथ की दिशा परिवर्तन से जीवन में ऊर्जा, स्वास्थ्य और समृद्धि बढ़ती है। भक्तजन सूर्योदय के समय स्नान कर पुण्य, तेज और आरोग्य की कामना करते हैं।
माघ के महीने में बसंत ऋतु की शुरूआत होती है और इसी माघ की सप्तमी को हिंदूओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार भी मनाया जाता है। इस त्योहार का नाम है रथ सप्तमी। यह हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे रथ सप्तमी या अचला सप्तमी भी कहते हैं। मगर क्या आप जानते हैं, कि रथ सप्तमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है? अगर नहीं, तो आज के इस लेख में हम इसी के बारे में आपको जानकारी देंगे।
रथ सप्तमी हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। इसे सूर्य जयंती भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन भगवान सूर्य देव के पृथ्वी पर प्रकट होने का उत्सव माना जाता है। इस दिन सूर्य देव अपने रथ पर सवार होकर ‘उत्तरायण’ के पूर्ण प्रभाव में माने जाते हैं, जिससे प्रकृति में ऊर्जा, प्रकाश और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। इस दिन सूर्य देव और उनकी पत्नी उषा की पूजा का विशेष विधान है। माना जाता है कि सूर्य देव की आराधना करने से व्यक्ति के भाग्य का विकास, स्वास्थ्य और धन-समृद्धि में वृद्धि होती है। यह तिथि प्रकृति में ऊर्जा के बढ़ने का प्रतीक मानी जाती है, क्योंकि इस समय दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
रथ सप्तमी का त्योहार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान सूर्य को समर्पित होता है। इसी कारण इस दिन को सूर्य जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है, कि इस दिन ऋषि कश्यप और माता अदिति को भगवान सूर्य पुत्र के रूप में प्राप्त हुए थे। यह दिन सूर्य देव का प्रतीक माना जाता है। इसके अलावा, इसी दिन भगवान सूर्य ने अपने रथ को सात घोड़ों द्वारा उत्तरी गोलार्द्ध की उत्तर पूर्वी दिशा की ओर घुमाया था।
सनातन धर्म के अनुसार, द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शरीर की ताकत पर अधिक अहंकार होने लगा था। इसी अहंकार के चलते शाम्ब सभी लोगों का उपहास करता रहता था। एक बार श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने दुर्वासा ऋषि का उपहास किया और भरे दरबार में उन्हें बहुत अपमानित किया और दुर्वासा ऋषि की कमज़ोर स्थिति को देखकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा।
इस पर दुर्वासा ऋषि बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने शाम्ब को कुष्ठ रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। दुर्वासा ऋषि ने शाम्ब को श्राप देते हुए कहा, कि “तुम्हें जिस शारीरिक शक्ति और यौवन का बहुत अहंकार है। यही तुम्हारा रूप क्षणभर में कुरूप में बदल जाएगा।”
दुर्वासा ऋषि की बात सुन शाम्ब व्याकुल हो उठा। उसी वक्त वहां भगवान श्री कृष्ण पहुंचे और उन्होंने शाम्ब से कहा, कि “तुमने ऋषि दुर्वासा का अपमान किया है, तुम्हें इसका पश्चाताप करना होगा।” तब उन्होंने शाम्ब से दुर्वासा ऋषि के श्राप से मुक्त होने के लिए सूर्य देव की उपासना करने को कहा। इसके बाद, श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब ने कई सालों तक सूर्य देव की उपासना की। सूर्य देव ने उसके भक्ति भाव से प्रसन्न होकर उसे श्राप से मुक्त कर दिया।
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