नर्मदा जयंती कब है
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नर्मदा जयंती कब है?

क्या आप जानते हैं नर्मदा जयंती 2026 कब है? यहां जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, नर्मदा स्नान और माता नर्मदा की आराधना से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण धार्मिक परंपराओं की संपूर्ण जानकारी — एक ही स्थान पर!

नर्मदा जयंती के बारे में

नर्मदा जयंती देवी नर्मदा के प्रकट होने की तिथि के रूप में मनाई जाती है, जो माघ मास की शुक्ल सप्तमी को आती है। इस दिन भक्त नर्मदा नदी के तट पर स्नान, पूजन और दीपदान कर आध्यात्मिक शुद्धि और पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। नर्मदा जयंती पर नदी की परिक्रमा और दान-पुण्य का भी विशेष महत्त्व है।

नर्मदा जयंती कब है

भारत में 7 प्रमुख नदियां हैं, उन्हीं में से एक है नर्मदा। इसी नर्मदा नदी से जुड़ी है नर्मदा जयंती जिसे हर साल देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को नर्मदा जयंती मनाई जाती है। इस पावन अवसर पर भक्तजन नर्मदा नदी की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि माँ नर्मदा के पूजन से जीवन में शांति, सुख और समृद्धि का आगमन होता है। नर्मदा नदी का उद्गम मध्य प्रदेश के अमरकण्टक से होता है। यही स्थान नर्मदा जयंती के अवसर पर पूजन और पवित्र स्नान के लिए सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है।

  • इस वर्ष नर्मदा जयंती 25 जनवरी 2026 को मनाई जाएगी।
  • सप्तमी तिथि 25 जनवरी की रात 12 बजकर 39 मिनट पर प्रारंभ होगी।
  • सप्तमी तिथि का समापन 25 जनवरी की रात 11 बजकर 10 मिनट पर होगा।

नर्मदा जयंती का महत्व

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, मां नर्मदा ने गंगा के तट पर कई वर्षों तक भगवान शिव की तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब मां नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान माँगा, कि ‘चाहे प्रलय ही क्यों ना आ जाए लेकिन मेरा नाश किसी भी परिस्थिति में ना हो, मैं ही पृथ्वी पर एकमात्र ऐसी नदी रहूँ जो सभी पापों का नाश कर सके, मेरा हर एक पत्थर बिना किसी प्राण प्रतिष्ठा के पूजनीय हो और मेरे तट पर सभी देवी-देवताओं का निवास रहे।

भगवान शिव से मिले वरदान के कारण ही नर्मदा नदी का कभी विनाश नहीं हुआ। नर्मदा नदी के हर एक पत्थर को शिवलिंग का रूप माना जाता है और इन्हीं के तट पर सभी देवी-देवता निवास करते हैं। इतना ही नहीं, ऐसा कहा जाता है, कि नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

पूजन और स्नान विधि

भारत में नर्मदा जयंती को एक त्योहार की तरह मनाया जाता है। इस दिन मां नर्मदा के जन्मदिवस को काफी भव्य रूप से मनाया जाता है और नर्मदा के तटों को सजाया जाता है। नर्मदा जयंती के दिन मां नर्मदा की पूजा करने के लिए सर्वप्रथम स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद, माँ नर्मदा को चुनरी और श्रृंगार का सामान अर्पित करें। फिर उन्हें फल, फूल, मिठाई आदि भी चढ़ाएँ। इसके साथ ही, इस दिन हवन करने का भी विधान है। इस दिन अनाज, वस्त्र, गुड़, फल या भोजन का दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। दान से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। नर्मदा जयंती के दिन मां नर्मदा की परिक्रमा करना भी बहुत ज़रूरी होता है।

नर्मदा जयंती पर क्या करें

  • यदि संभव हो तो नर्मदा या किसी अन्य पवित्र नदी में सूर्योदय के समय स्नान करें। यदि ऐसा संभव न हो तो घर पर सामान्य पानी में थोड़ा नर्मदा जल मिलाकर स्नान करें
  • सुबह उठकर घर की साफ-सफाई करें।
  • पीले रंग के वस्त्र पहनें और सूर्य देव को जल अर्पित करें।
  • लक्ष्मी-नारायण और मां नर्मदा की विधि-विधान से पूजा करें।
  • नर्मदा अष्टक, नर्मदा चालीसा या 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करें।
  • नर्मदा जयंती के दिन उपवास रखा जाता है।
  • कुछ लोग इस दिन विशेष प्रकार के भोजन से परहेज भी करते हैं।
  • आप नदी के किनारे स्थित मंदिरों में होने वाले विशेष समारोहों में भाग ले सकते हैं, जहाँ अक्सर भजन-कीर्तन और आरती का आयोजन होता है।
  • कुछ स्थानों पर, मंदिर में भंडारे का भी आयोजन किया जाता है।

नर्मदा जयंती के लाभ

  • नर्मदा माता की पूजा और तट पर स्नान करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है।
  • मन के संकट, भय और तनाव दूर होते हैं।
  • मानसिक स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • नर्मदा नदी में स्नान करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • आयुर्वेद के अनुसार, पवित्र नदी का जल और स्नान शरीर को शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक बनाता है।
  • माता नर्मदा की पूजा करने से संपत्ति और धन की वृद्धि होती है।
  • जीवन में सुख-समृद्धि और सुखमय परिवार की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन किए गए दान, पूजा और व्रत से पापों का नाश होता है।
  • यह जीवन में अच्छे कर्मों और पुण्य का संचित करता है।
  • नर्मदा जयंती मनाने से व्यक्ति सात्विक आचरण, संयम और अनुशासन की ओर बढ़ता है।
  • यह दिन जीवन में सकारात्मक बदलाव और आत्मिक विकास का संदेश देता है।

पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, जब देवताओं ने अंधकासुर नाम के राक्षस का वध किया था। तो उस समय उस राक्षसी वध करने के दौरान देवताओं ने कई पाप किये थे, जिस कारण सभी देवता पाप में लिप्त थे। वह अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते थे, लेकिन उन्हें इसका कोई विकल्प समझ नहीं आ रहा था। तब उन्हें महादेव का स्मरण आया और उन्हें ज्ञात हुआ कि सिर्फ भगवान शिव ही उन्हें इस मुश्किल से बाहर निकाल सकते हैं। यह सोचकर सभी देवता भगवान विष्णु और ब्रह्मा सहित भगवान शिव के पास पहुँचे।

उन्होंने भगवान शिव को अपने पाप कर्मों की कथा सुनाई और उनसे विनती की, कि वह उनके पाप दूर करने का कोई उपाय बताएं। भगवान शिव उस समय ध्यान में लीन थे। मगर जैसे ही महादेव ने अपनी आंखें खोली तो उनकी आंखों से एक चमकता बिंदु उत्पन्न हुआ और पृथ्वी पर अमरकंटक स्थान के मेकल पर्वत पर जा गिरा।

इस बिंदु के गिरने से एक कन्या ने जन्म लिया। यह कन्या परम रूपवती थी। इसका नाम भगवान विष्णु और देवताओं द्वारा नर्मदा रखा गया। इस तरह भगवान शिव ने सभी देवताओं के अनुरोध पर नर्मदा नदी को उनके पापों को नष्ट करने के लिए उत्पन्न किया।

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Published by Sri Mandir·December 3, 2025

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