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वाराही देवी मंदिर

वाराही देवी मंदिर शक्ति के उपासकों और भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है।

मानसखण्ड, उत्तराखंड, भारत

वाराही मंदिर उत्तराखंड राज्य के लोहाघाट शहर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। शक्तिपीठ कहलाने वाला मां वाराही का मंदिर समुद्र तल से लगभग 1850 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर को देवीधुरा के नाम से भी जाना जाता है। देवीधुरा में स्थित माँ वाराही का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। देवीधुरा में स्थित मां वाराही धाम अटूट आस्था का केंद्र है। वाराही देवी मंदिर शक्ति के उपासकों और भक्तों के लिए एक पवित्र स्थान है।

मंदिर का इतिहास

चंद राजाओं के शासन काल में इस शक्तिपीठ में ‘चंपा देवी’ और ‘लाल जीभ वाली महाकाली’ की मूर्ति स्थापित की गयी है। हर साल महाकाली को नियमित बलि चढ़ाई जाने लगी। कहा जाता है कि वाराही की मूर्ति रुहेलों के आक्रमण के दौरान कत्यूरी राजाओं द्वारा घने जंगल के मध्य एक भवन में स्थापित की गई थी। धीरे-धीरे इसके आसपास गांव बस गए और यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। इस मंदिर से जुडी पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा के पुत्र, राजा प्रजापति दक्ष की सती नाम की एक बेटी थी। उन्होंने भगवान शिव से विवाह किया। परन्तु सती के पिता दक्ष को शिव जी पसंद नहीं थे। उन्हें नीचा दिखाने के लिए दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया। लेकिन जानबूझकर अपने दामाद शिव को अपमानित करने के लिए इसमें शामिल नहीं किया। अपने पिता के फैसले से आहत होकर, सती ने अपने पिता से मिलने और उन्हें आमंत्रित न करने का कारण पूछने का फैसला किया। जब उन्होंने दक्ष के महल में प्रवेश किया, तो वहां पर शिवजी का अपमान किया जाने लगा। अपने पति के खिलाफ कुछ भी सहन करने में असमर्थ देवी सती ने खुद को यज्ञ अग्नि को समर्पित कर दिया। जब शिव जी के सेवकों ने उन्हें माता सती की मृत्यु के बारे में बताया तो वे क्रोधित हो गए और उन्होंने अपनी जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया। वीरभद्र ने दक्ष के महल में उत्पात मचाया और दक्ष को मार दिया। शिवजी ने सती की मृत्यु से शोक व्यक्त करते हुए उनके शरीर को हाथों में उठा लिया। साथ ही विनाश का नृत्य (तांडव) शुरू कर दिया। ब्रह्मांड को बचाने और शिव की पवित्रता को वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का उपयोग करके सती के निर्जीव शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया। माता सती का अंग इस स्थान पर गिरने से यह शक्तिपीठ के रूप में स्थापित हो गया।

मंदिर का महत्व

मां वाराही देवी के बारे में मान्यता है कि इस मूर्ति को कोई भी व्यक्ति खुली आंखों से नहीं देख सकता, क्योंकि मूर्ति के तेज के कारण आंखों की रोशनी चली जाती है। इसलिए ताम्रपतिका में "देवी की मूर्ति" रखी जाती है। माँ भक्तों की मन्नतें पूर्ण करती हैं। मां के दरबार में अर्जी लगाने के लिए लोग दूर दूर से पहुंचते हैं।

मंदिर की वास्तुकला

यह 7 फीट से अधिक ऊंचाई के ऊंचे मंच पर आधारित सरल रूप से निर्मित किया गया मंदिर है। मंदिर के निर्माण के लिए 6 सीढ़ियां बनाई गई हैं। यहां पर एक प्रवेश द्वार भी बनाया गया है। जो दो भागों में विभाजित है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक साधारण शंक्वाकार मीनार है। गर्भगृह के सामने उत्तर भारतीय शैली में तीन मेहराबों वाला एक बरामदा है। मंदिर के ठीक बगल में भक्तों के ठहरने के लिए एक दो मंजिला इमारत भी बनाई गई है। मंदिर का परिवेश घने जंगल और हरी-भरी हरियाली से आच्छादित है।

मंदिर का समय

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वाराही देवी मंदिर खुलने और बंद होने का समय

07:00 AM - 08:00 PM

मंदिर का प्रसाद

वाराही देवी मंदिर में बलि देने का प्रावधान है। इसके अलावा फल,फूल, मिठाई आदि का भी भोग लगाया जाता है।

यात्रा विवरण

मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है

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