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दक्ष महादेव हरिद्वार

इसे दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत

उत्तराखंड का हरिद्वार जिला भारत के 7 पवित्र स्थानों में से एक है। यहां की हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड कहा जाता है। गंगा आरती व कुंभ मेले के लिए विश्व प्रसिद्ध हरिद्वार में भगवान शिव के कई मंदिर हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां स्थापित शिवलिंग धरती लोक के साथ पाताल लोक में भी स्थित है। हम बात कर रहे हैं हरिद्वार के कनखल में स्थित दक्ष महादेव मंदिर की। इसे दक्षेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इसी मंदिर में माता सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी थी। यहां स्थापित अनोखे शिवलिंग के दर्शन को दूर-दूर से लोग आते हैं। हरिद्वार के 5 पवित्र स्थलों की सूची में इस मंदिर का नाम शामिल है।

मंदिर का इतिहास

कनखल में स्थित यह मंदिर हरिद्वार के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, माता सती के पिता राजा दक्ष ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन किया था। राजा ने इसमें सभी देवी-देवताओं, ऋषियों व संतों को आमंत्रित किया, लेकिन अपने दामाद यानी महादेव को आमंत्रण नहीं भेजा, जिससे उनका बहुत अपमान हुआ। ​पति का यह अपमान देख माता सती बहुत दुखी हो गईं और उन्होंने अपने पिता द्वारा किए जा रहे यज्ञ में कूदकर आहूति दे दी। माता के प्राणों की आहूति देख महादेव क्रोधित हो गए और अपनी जटाओं से वीरभद्र को पैदा किया। भगवान ने वीरभद्र को आदेश दिया कि राजा दक्ष का सिर काटकर यज्ञ को ध्वस्त कर दो। कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु, ब्रह्मा व अन्य देवी-देवताओं ने महादेव को शांत कराने का प्रयास किया, लेकिन भगवान का क्रोध शांत नहीं हुआ। जिसके बाद सिर कटे राजा दक्ष ने प्रभु से क्षमा मांगी। महादेव ने माफी स्वीकार कर ली और भगवान विष्णु, ब्रह्मा व देवी-देवताओं के आग्रह पर राजा दक्ष को बकरे का सिर लगाकर पुन: जीवित कर दिया। यही नहीं, राजा दक्ष के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि कनखल दक्षेश्वर महादेव के नाम से जाना जाएगा। सावन के महीने में प्रभु यहीं वास करेंगे। 1810 ई में रानी धनकौर ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

मंदिर का महत्व

दक्ष मंदिर में शिवलिंग के दर्शन के बिना हरिद्वार की यात्रा अधूरी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि सावन महीने में मंदिर में दक्षेश्वर महादेव के नाम से गंगाजल चढ़ाने पर हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही वैवाहिक जोड़े यहां भगवान से जन्म जन्मांतर का आशीर्वाद लेने आते है।

मंदिर की वास्तुकला

माता सती के प्राणों का गवाह है दक्षेश्वर मंदिर। मंदिर के मुख्य द्वार के सामने भगवान शिव और माता सती की एक बहुत बड़ी प्रतिमा है। भगवान ने माता के मृत शरीर को अपने हाथों में उठाया हुआ है, जोकि यज्ञ में दिए माता के प्राणों को दर्शाता है। मुख्य द्वारा के दोनों तरफ बड़े-बड़े शेरों की प्रतिमा लगी है। मंदिर में सबसे खास है यहां स्थापित शिवलिंग। पूरे विश्व में यहां स्थापित एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो आकाशमुखी नहीं बल्कि पातालमुखी है। यानी शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा जमीन के नीचे है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में सती कुंड, शिवलिंग व नंदी जी विराजमान हैं। मंदिर परिसर में गणेश जी, मां दुर्गा व अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी बने हुए हैं। मंदिर के ठीक सामने गंगा की धारा बह रही है।

मंदिर का समय

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मंदिर खुलने का समय

05:00 AM - 09:00 PM
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सुबह की आरती का समय

06:00 AM - 07:00 AM
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शाम की आरती का समय

07:00 PM - 08:00 PM

मंदिर का प्रसाद

महादेव के इस मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र, दूध, केला, शहद, घी, फूल आर्पित किया जाता है।

यात्रा विवरण

मंदिर के लिए यात्रा विवरण नीचे दिया गया है

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