संपत्ति विवाद से मुक्ति एवं धन-धान्य की प्राप्ति के लिए आषाढ़ एकादशी शक्तिपीठ विशेष श्री वराह वाराही महायज्ञ
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आषाढ़ एकादशी शक्तिपीठ विशेष

श्री वराह वाराही महायज्ञ

संपत्ति विवाद से मुक्ति एवं धन-धान्य की प्राप्ति के लिए
temple venue
शक्तिपीठ श्री वाराही देवी मंदिर , देवीधुरा, उत्तराखंड
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संपत्ति विवाद से मुक्ति एवं धन-धान्य की प्राप्ति के लिए आषाढ़ एकादशी शक्तिपीठ विशेष श्री वराह वाराही महायज्ञ

भगवान विष्णु के पृथ्वी पर कुल 24 अवतार हुए हैं, जिनमें से 10 मुख्य अवतार हैं। मत्स्य और कश्यप के बाद भगवान विष्णु का तीसरा अवतार ‘वराह’ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र के रसातल में खींच लिया जिससे पृथ्वी जलम्न होने लगी, तभी उसे वहां से निकालने के लिए ब्रह्मा जी के नाक से भगवान विष्णु के वराह अवतार का जन्म हुआ। जब भगवान वराह अपने थूंंथने की सहायता से पृथ्वी को जल से बाहर निकालने लगे, तब हिरण्याक्ष दैत्य ने भगवान वराह काे युद्ध के लिए ललकारा। लंबे समय तक युद्ध के उपरांत विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य का वध कर दिया और इसके बाद पृथ्वी को रसातल से बाहर लाकर तीनों लोकों को भयमुक्त कर दिया।

वहीं देवी वाराही हिन्दू धर्म की सप्तमातृका में से एक और भूदेवी यानी पृथ्वी का एक रूप है। इन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी माना गया है जो भगवान विष्णु के वराहावतार की शक्ति रूपा हैं। माना जाता है कि लक्ष्मी जहां धन प्रदान करती हैं, वहीं वाराही देवी दुर्भाग्य को दूर करती हैं। कहा जाता है कि देवी वाराही वह हैं जो आपको धरती पर मिलने वाली हर चीज़ दे सकती हैं। देवी महात्म्य के अनुसार, देवी दुर्गा अपने स्वयं के भीतर से मातृकाओं का निर्माण करती हैं जो राक्षसों के खिलाफ युद्ध में उनका नेतृत्व करती हैं। देवी वाराही, शुंभ-निशुंभ एवं रक्तबीज जैसे दैत्यों को मारने में देवी दुर्गा की सहायता की थी। मान्यता है कि प्राचीन काल में सभी राजा अपने राज्य में धन-संपत्ति के लिए देवी वाराही की पूजा करते थे। कहते हैं कि वराह वराही अवतार की पूजा करने से भौतिक सुख-सुविधा, बाधाओं से मुक्ति के साथ भूमि या संपत्ति के लेन-देन में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। श्री मंदिर के माध्यम से आषाढ़ एकादशी पर कराएं शक्तिपीठ विशेष श्री वराह वाराही महायज्ञ।

शक्तिपीठ श्री वाराही देवी मंदिर , देवीधुरा, उत्तराखंड

शक्तिपीठ श्री वाराही देवी मंदिर , देवीधुरा, उत्तराखंड
भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह हैं और माता वाराही उनकी महाऊर्जा मानी जाती हैं। जब दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र के रसातल में छिपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी को बचाया। पृथ्वी माता वाराही का ही स्वरूप थी, और उनकी ऊर्जा से भगवान वराह की शक्ति दोगुनी हो गई। इससे उन्होंने हिरण्याक्ष का नाश कर तीनों लोकों को भयमुक्त किया। माता वाराही को सप्तमातृका में स्थान मिला है और उन्हें लक्ष्मी का स्वरूप भी माना जाता है।

भारत में माता वाराही के कुछ ही प्रसिद्ध मंदिर हैं। इनमें उत्तराखंड के देवीधुरा में स्थित श्री वाराही मंदिर एक प्रमुख शक्तिपीठ है। कहा जाता है कि यहां माता सती के दांत गिरे थे। इस मंदिर की विशेषता यह है कि माता की मूर्ति में इतनी ऊर्जा है कि कोई व्यक्ति सीधे आंखों से उनके दर्शन नहीं कर सकता। इसलिए, मूर्ति को कांच और तांबे की पेटी में रखा जाता है, जिससे भक्त उनके दर्शन कर पाते हैं। इस मंदिर में माता वाराही के साथ भगवान वराह की पूजा भी की जाती है। उत्तराखंड, जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, यहां भगवान शिव के साथ-साथ भगवान विष्णु की महिमा का विशेष वर्णन है। यहां भगवान विष्णु के किसी भी अवतार की पूजा करना अत्यंत फलदाई माना जाता है। इसलिए, श्री वाराही मंदिर में माता वाराही और भगवान वराह की पूजा करने से भक्तों को विशेष फल की प्राप्ति होती है।

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