भगवान विष्णु के पृथ्वी पर कुल 24 अवतार हुए हैं, जिनमें से 10 मुख्य अवतार हैं। मत्स्य और कश्यप के बाद भगवान विष्णु का तीसरा अवतार ‘वराह’ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र के रसातल में खींच लिया जिससे पृथ्वी जलम्न होने लगी, तभी उसे वहां से निकालने के लिए ब्रह्मा जी के नाक से भगवान विष्णु के वराह अवतार का जन्म हुआ। जब भगवान वराह अपने थूंंथने की सहायता से पृथ्वी को जल से बाहर निकालने लगे, तब हिरण्याक्ष दैत्य ने भगवान वराह काे युद्ध के लिए ललकारा। लंबे समय तक युद्ध के उपरांत विष्णुजी ने सुदर्शन चक्र से उस दैत्य का वध कर दिया और इसके बाद पृथ्वी को रसातल से बाहर लाकर तीनों लोकों को भयमुक्त कर दिया।
वहीं देवी वाराही हिन्दू धर्म की सप्तमातृका में से एक और भूदेवी यानी पृथ्वी का एक रूप है। इन्हें देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी माना गया है जो भगवान विष्णु के वराहावतार की शक्ति रूपा हैं। माना जाता है कि लक्ष्मी जहां धन प्रदान करती हैं, वहीं वाराही देवी दुर्भाग्य को दूर करती हैं। कहा जाता है कि देवी वाराही वह हैं जो आपको धरती पर मिलने वाली हर चीज़ दे सकती हैं। देवी महात्म्य के अनुसार, देवी दुर्गा अपने स्वयं के भीतर से मातृकाओं का निर्माण करती हैं जो राक्षसों के खिलाफ युद्ध में उनका नेतृत्व करती हैं। देवी वाराही, शुंभ-निशुंभ एवं रक्तबीज जैसे दैत्यों को मारने में देवी दुर्गा की सहायता की थी। मान्यता है कि प्राचीन काल में सभी राजा अपने राज्य में धन-संपत्ति के लिए देवी वाराही की पूजा करते थे। कहते हैं कि वराह वराही अवतार की पूजा करने से भौतिक सुख-सुविधा, बाधाओं से मुक्ति के साथ भूमि या संपत्ति के लेन-देन में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं। श्री मंदिर के माध्यम से आषाढ़ एकादशी पर कराएं शक्तिपीठ विशेष श्री वराह वाराही महायज्ञ।