सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों के लिए सबसे शुभ माना गया है। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली हर तिथि का अपना अलग विशेष महत्व है, जिसमें से एक है अमावस्या तिथि। इसे सर्वपितृ अमावस्या या महालया अमावस्या भी कहते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पड़ने वाली यह अंतिम तिथि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि इस तिथि पर उन पूर्वजों का भी श्राद्ध किया जा सकता है जिनकी मृत्यु तिथि आपको ज्ञात नहीं हो, या पितृ पक्ष के दौरान भूलवश आप जिन पूर्वजों का श्राद्ध न कर पाए हों। हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार 'पितृ दोष' पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं और नकारात्मक कर्मों के कारण होता है। इस दौरान पूर्वजों को पिशाच योनि में कष्ट भोगने पड़ते हैं। पिशाच योनि एक ऐसी अवस्था है जिसमें आत्मा अपने पापों और बुरे कर्मों के कारण पीड़ादायक और अशांत स्थिति में फंसी रहती है। इस स्थिति में आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाती और वह दुख और असंतोष का अनुभव करती है। इस योनि में आत्मा तब तक फंसी रहती है जब तक उसे पुण्य कर्मों या आध्यात्मिक अनुष्ठानों के द्वारा मुक्त नहीं कराया जाता। पितृ दोष से पीड़ित जातक के जीवन में आर्थिक परेशानियां, रिश्तों में तनाव, विवाद और स्वास्थ्य संबधी समस्याओं का सिलसिला लगा ही रहता है। माना जाता है कि महालया अमावस्या के इस अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि पर पितृ दोष शांति पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
वहीं हिंदु धर्म में माना जाता है कि सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। भगवान शिव को समर्पित अघोर मंत्र एक शक्तिशाली मंत्र है, जो आत्माओं को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कराने की शक्ति रखते हैं। यह मंत्र विशेष रूप से भगवान शिव के अघोर रूप को समर्पित है जो उनके निडर और करुणामय स्वभाव का प्रतीक है। यही कारण है कि पितृ दोष शांति पूजा के साथ 11,000 अघोर मंत्रों का जाप करने से न केवल पिशाच योनि में कष्ट भोग रहे पूर्वजों की आत्माओं को शांति मिलती है, बल्कि भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से भी सुरक्षा भी प्राप्त होती है। यदि यह अनुष्ठान किसी ज्योतिर्लिंग में किया जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इसीलिए महालया अमावस्या तिथि पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में 11,000 शिव अघोर मंत्र जाप और पावन नर्मदा घाट पर पितृ दोष शांति पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान शिव के साथ अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं।