दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए शक्तिपीठ गुप्त नवरात्रि अष्टमी विशेष कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ एवं चंडी हवन
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शक्तिपीठ गुप्त नवरात्रि अष्टमी विशेष

कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ एवं चंडी हवन

दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए
temple venue
शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
pooja date
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दुर्घटनाओं, बीमारियों एवं खतरों से सुरक्षा के लिए शक्तिपीठ गुप्त नवरात्रि अष्टमी विशेष कवच अर्गला कीलक स्तोत्र पाठ एवं चंडी हवन

वैदिक पंचांग के अनुसार गुप्त नवरात्रि आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष से शुरू होती है। इस शुभ पर्व के नौ दिनों में मां दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों की गुप्त रूप से पूजा की जाती है, यही वजह है कि इस पर्व को गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि के आठवें दिन मां दुर्गा की विशेष पूजा करने की परंपरा है। मां दुर्गा को प्रसन्न करने के सबसे चमत्कारी मंत्र और श्लोक श्री दुर्गा सप्तशती में मिलते हैं। इस शास्त्र को देवी भगवती का साक्षात स्वरूप बताया गया है। मान्यता है कि दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ करने से कवच, अर्गला और कीलक का भक्ति भाव से पाठ करने के समान ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

शास्त्रों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति गुप्त नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है तो उसे देवी दुर्गा की दिव्य कृपा प्राप्त होती है और उसके घर के सभी संकट दूर हो जाते हैं। इसलिए कई लोग देवी दुर्गा से क्षमा मांगने और दुर्घटनाओं, बीमारियों और जीवन के खतरों से सुरक्षा पाने के लिए गुप्त नवरात्रि के दौरान कवच, अर्गला और कीलक का पाठ करते हैं। कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र पाठ के साथ चंडी हवन करना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए गुप्त नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर शक्तिपीठ काली घाट मंदिर में कवच, अर्गला और कीलक स्तोत्र पाठ और चंडी यज्ञ का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और माँ दुर्गा का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करें।

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल

शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर , कोलकत्ता, पश्चिम बंगाल
कालीघाट मंदिर, जो कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जो शक्ति, ऊर्जा और विनाश की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है, उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं। उनकी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रह हैं। गौरतलब है कि प्रतिमा में मां काली की जीभ स्वर्ण से बनी हुई है।

सन् 1847 में जान बाजार की महारानी रासमणि ने मंदिर का निर्माण करवाया था। कालीघाट मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी बहुत बड़ा है। यह मंदिर कई सैकड़ों वर्षों से श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा है, जो यहां आकर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कालीघाट में देवी काली की पूजा से भक्तों को डर, बुराई, और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और जीवन में शांति, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इसके अलावा, यह मंदिर बंगाल के सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है और यहां के धार्मिक त्योहार, विशेषकर दुर्गा पूजा और काली पूजा, बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

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