भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए नवरात्रि शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग संयुक्त विशेष 51,000 माँ काली रुद्र रूप मंत्र जाप और शक्तिपीठ नव चंडी हवन
भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए नवरात्रि शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग संयुक्त विशेष 51,000 माँ काली रुद्र रूप मंत्र जाप और शक्तिपीठ नव चंडी हवन
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नवरात्रि शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग संयुक्त विशेष

51,000 माँ काली रुद्र रूप मंत्र जाप और शक्तिपीठ नव चंडी हवन

भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए
temple venue
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, खंडवा, कोलकत्ता
pooja date
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भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा के लिए नवरात्रि शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग संयुक्त विशेष 51,000 माँ काली रुद्र रूप मंत्र जाप और शक्तिपीठ नव चंडी हवन

हिंदु वैदिक पंचाग के अनुसार, हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है। शारदीय नवरात्रि में नौ दिनों तक देवी दुर्गा की शक्ति के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दौरान मां काली की भी पूजा की जाती है, जो मां दुर्गा का ही उग्र रूप हैं। पौराणिक कथानुसार रक्तबीज नामक एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे यह वरदान प्राप्त था कि उसके खून की हर बूंद से एक नया राक्षस पैदा हो सकता था। इस वरदान के कारण रक्तबीज ने तीनों लोकों में उत्पात मचा दिया। सभी देवता उसे हराने में असमर्थ थे क्योंकि, जब भी वे रक्तबीज को घायल करते, उसके खून से कई और असुर उत्पन्न हो जाते। सभी देवताओं ने मां काली की शरण में गए और उनसे मदद मांगी। रक्तबीज का नाश करने के लिए माँ काली प्रकट हुईं और उन्होंने अपनी जीभ युद्धभूमि पर फैला दी, जिससे रक्त की कोई भी बूंद जमीन पर नहीं पाई। इस तरह, उन्होंने रक्तबीज को पुनर्जन्म से रोक दिया और उसे पराजित किया। लेकिन असुरों का संघार करते हुए मां काली का क्रोध इतना विकराल रूप धारण कर चुका था कि उन्हें शांत करना मुश्किल हो गया था। देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने मां काली को शांत करने के कई प्रयास किए लेकिन वह हर बार विफल हुए। अंत में स्वंय भगवान शिव मां काली के मार्ग में लेट गए, जैसे ही मां काली के चरण भगवान शिव पर पड़े तो वह ठिठक गई और उनका क्रोध शांत हो गया।

भगवान शिव के ऊपर चरण रखे हुए मां काली के इस रूप का दक्षिणा काली नाम से जाना गया। मां काली का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भक्त कई तरह के मंत्रों का जाप करते हैं, जिनमें से एक है माँ काली रुद्र रूप मंत्र। यह मंत्र मां काली के दक्षिणा स्वरूप को समर्पित है। मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान मां काली के इस मंत्र का जाप करने से मां काली द्वारा भय एवं नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वहीं यदि इस मंत्र जाप के साथ नव चंडी हवन किया जाए तो यह पूजा कई गुना अधिक फलदायी हो सकती हैं, क्योंकि नव चंडी हवन एक विशेष और शक्तिशाली अग्नि अनुष्ठान है। इस अग्नि अनुष्ठान में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इसलिए नवरात्रि के पांचवें दिन के शुभ अवसर पर खंडवा स्थित श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में 51,000 माँ काली रुद्र रूप मंत्र का जाप एवं शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर में नव चंडी हवन का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर पहली बार नवरात्रि के शुभ अवसर पर शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग में इस संयुक्त पूजा का आयोजन कर रहा है। मां काली से द्वारा भय और नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस संयुक्त पूजा में भाग लें।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, खंडवा, कोलकत्ता

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ कालीघाट मंदिर, खंडवा, कोलकत्ता
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, इन्हें स्वयंभू लिंग माना जाता है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नाम के द्वीप पर स्थित है। यहां ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप में मौजूद है। जिनमें से एक को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है। अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही की जाती है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। मान्यता है कि मां नर्मदा भी यहां स्वयं ॐ के आकार में बहती हैं। शास्त्रों के अनुसार ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुराणों में स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख है। पौराणिक कथा के अनुसार, भोलेनाथ तीनों लोकों के भ्रमण के बाद यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं। कहते हैं पृथ्वी पर ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज चौसर पांसे खेलते हैं।

वहीं कालीघाट मंदिर, जो कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित है, हिंदू धर्म के 51 शक्तिपीठों में से एक है और अत्यंत महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। यह मंदिर देवी काली को समर्पित है, जो शक्ति, ऊर्जा और विनाश की देवी मानी जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहां देवी सती का दाहिने पैर की उंगली गिरी थी, जब भगवान शिव उनके शव को लेकर तांडव कर रहे थे। इस कारण, यह स्थल अत्यंत पवित्र 51 शक्तिपीठों में शामिल है। यहां इस मंदिर में देवी काली की प्रचण्ड रूप की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में देवी काली भगवान शिव की छाती पर पैर रखे नजर आ रही हैं और उनके गले में नरमुंडों की माला है, उनके हाथ में कुछ कुल्हाड़ी और कुछ नरमुंड हैं, कमर में कुछ नरमुंड भी बंधे हुए हैं। उनकी जीभ बाहर निकली हुई है और जीभ से कुछ रक्त की बूंदे टपक रह हैं। गौरतलब है कि प्रतिमा में मां काली की जीभ स्वर्ण से बनी हुई है।

సమీక్షలు & రేటింగ్స్

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Achutam Nair

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Ramesh Chandra Bhatt

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Aperna Mal

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Shivraj Dobhi

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Mukul Raj

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Reviews from our devotees who booked Puja with us
Amrita Shetty

Amrita Shetty

24 March, 2025

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Amazing experience and feel like blessed, so happy


Shukrutha

Shukrutha

24 March, 2025

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Very happy and pleased about the Puja, although i couldn’t attend the temple I’m delighted that I could it online & loved to hear my name and gotra Sankalp..! Thanks to Srimandir for this innovative initiative..!! Feeling blessed & Grateful 😇


Kuldeep Prakash Sunkerikar

Kuldeep Prakash Sunkerikar

24 March, 2025

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Initially we were septic about this but based on all the updates, photos and video provided we are really happy. Keep doing the good work.

మన గత పూజా అనుభవాల సంగ్రహావలోకనం

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