उच्चतम शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन में विकास के लिए गुप्त नवरात्रि नवमी विशेष मां मातंगी तंत्र युक्त हवन और मां सरस्वती पूजा
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गुप्त नवरात्रि नवमी विशेष

मां मातंगी तंत्र युक्त हवन और मां सरस्वती पूजा

उच्चतम शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन में विकास के लिए
temple venue
कालीमठ मंदिर , रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड
pooja date
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उच्चतम शिक्षा एवं व्यावसायिक जीवन में विकास के लिए गुप्त नवरात्रि नवमी विशेष मां मातंगी तंत्र युक्त हवन और मां सरस्वती पूजा

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रि की शुरूआत होती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से तांत्रिक साधना की जाती है, इसलिए इस पर्व को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दस महाविद्याओं में नौवीं महाविद्या हैं माँ मातंगी इसलिए इनकी पूजा नवमी तिथि पर करना अत्यंत फलदायी मानी गई है। देवी मातंगी को तांत्रिकों की सरस्वती देवी कहा जाता है। इसी कारण तंत्र साधना में इन्हें विद्या, कला, संगीत, तंत्र, और वाणी की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इनकी पूजा से भक्तों को उच्चतम शिक्षा, करियर में सफलता, व्यवसायिक जीवन में विकास और धन-संपदा का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। वहीं माता सरस्वती की अराधना से भी भक्तों को शिक्षा व व्यवसायिक जीवन में सफल होने का वरदान मिलता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी अपने साथ कुछ खाने की सामग्री लेकर महादेव और माता पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर गए। भगवान शिव और माता पार्वती ने विष्णु जी द्वारा लाया गया भोजन किया लेकिन उसके कुछ अंश धरती पर गिर गए। उन अंशों से एक श्याम वर्ण की देवी का जन्म हुआ जो मातंगी नाम से विख्यात हुईं। अन्य शास्त्रों में कहते हैं कि देवी मातंगी हनुमाजी और शबरी के गुरु मतंग ऋषि की पुत्री थीं। मतंग ऋषि के यहां माँ दुर्गा के आशीर्वाद से मातंगी देवी का जन्म हुआ था। देवी सरस्वती की तांत्रिक रूप होने के कारण मां मातंगी की अराधना गुप्त नवरात्रि में करने से अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसलिए गुप्त नवरात्रि के शुभ अवसर पर रूद्रप्रयाग के कालीमठ मंदिर में मां मातंगी तंत्र युक्त हवन के साथ मां सरस्वती की पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग ले और देवी से उच्चतम शिक्षा एवं व्यवसायिक जीवन में अपार सफलता का आशीष पाएं।

कालीमठ मंदिर ,रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड

कालीमठ मंदिर ,रूद्रप्रयाग, उत्तराखंड
रुद्रप्रयाग जिले में गुप्तकाशी शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर स्थित है कालीमठ मंदिर। ये पवित्र मंदिर माँ काली को समर्पित है, जो उग्र देवी के रूप में विराजमान हैं। यहां विराजित मां काली अपने भक्तों की रक्षा करती हैं और उनके जीवन से बुरी शक्तियों का विनाश करती हैं। यह एकमात्र ऐसा स्थान है जहां मां काली अपनी बहनों माता लक्ष्मी और मां सरस्वती के साथ विराजित हैं। इस मंदिर से आठ किलोमीटर की ऊंचाई पर एक दिव्य चट्टान है। इस शीला को कालीशिला के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज राक्षसों से परेशान देवी-देवताओं ने मां भगवती की तपस्या की थी।

तब यहां माँ भगवती 12 वर्ष की बालिका के रूप में प्रकट हुईं, कालीशिला में देवताओं के 64 यंत्र हैं। असुरों के आतंक के बारे में सुनकर माता का शरीर क्रोध से काला पड़ गया और उन्होंने क्रोध का रूप धारण कर लिया। युद्ध में माता ने दोनों राक्षसों का वध कर दिया। इन 64 यंत्रों से मां को मिली थी शक्ति कालीमठ मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि इसमें कोई मूर्ति नहीं है। कालीमठ मंदिर में एक कुंड है, जो चांदी के बोर्ड/श्रीयंत्र से ढका हुआ है। भक्त मंदिर के अंदर स्थित कुंड की पूजा करते हैं, यह पूरे वर्ष में केवल शारदीय नवरात्र में अष्टमी को खोला जाता है। दिव्य देवी को बाहर निकाला जाता है और पूजा भी आधी रात को ही की जाती है, तब केवल मुख्य पुजारी ही उपस्थित होते हैं।

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