आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष से गुप्त नवरात्रि की शुरूआत होती है। मान्यता है कि इन नौ दिनों में दस महाविद्याओं की गुप्त रूप से तांत्रिक साधना की जाती है, इसलिए इस पर्व को गुप्त नवरात्रि कहते हैं। दस महाविद्याओं में नौवीं महाविद्या हैं माँ मातंगी इसलिए इनकी पूजा नवमी तिथि पर करना अत्यंत फलदायी मानी गई है। देवी मातंगी को तांत्रिकों की सरस्वती देवी कहा जाता है। इसी कारण तंत्र साधना में इन्हें विद्या, कला, संगीत, तंत्र, और वाणी की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। इनकी पूजा से भक्तों को उच्चतम शिक्षा, करियर में सफलता, व्यवसायिक जीवन में विकास और धन-संपदा का आशीर्वाद प्राप्त हो सकता है। वहीं माता सरस्वती की अराधना से भी भक्तों को शिक्षा व व्यवसायिक जीवन में सफल होने का वरदान मिलता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी अपने साथ कुछ खाने की सामग्री लेकर महादेव और माता पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर गए। भगवान शिव और माता पार्वती ने विष्णु जी द्वारा लाया गया भोजन किया लेकिन उसके कुछ अंश धरती पर गिर गए। उन अंशों से एक श्याम वर्ण की देवी का जन्म हुआ जो मातंगी नाम से विख्यात हुईं। अन्य शास्त्रों में कहते हैं कि देवी मातंगी हनुमाजी और शबरी के गुरु मतंग ऋषि की पुत्री थीं। मतंग ऋषि के यहां माँ दुर्गा के आशीर्वाद से मातंगी देवी का जन्म हुआ था। देवी सरस्वती की तांत्रिक रूप होने के कारण मां मातंगी की अराधना गुप्त नवरात्रि में करने से अत्यंत शुभ फल की प्राप्ति होती है। इसलिए गुप्त नवरात्रि के शुभ अवसर पर रूद्रप्रयाग के कालीमठ मंदिर में मां मातंगी तंत्र युक्त हवन के साथ मां सरस्वती की पूजा का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग ले और देवी से उच्चतम शिक्षा एवं व्यवसायिक जीवन में अपार सफलता का आशीष पाएं।