बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के आशीर्वाद के लिए स्कंद षष्ठी संतान सुख विशेष पुत्रदा षष्ठी पूजा और गर्भ रक्षाम्बिका हवन
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स्कंद षष्ठी संतान सुख विशेष

पुत्रदा षष्ठी पूजा और गर्भ रक्षाम्बिका हवन

बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के आशीर्वाद के लिए
temple venue
एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु
pooja date
7 November, Thursday, स्कंद षष्ठी
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बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के आशीर्वाद के लिए स्कंद षष्ठी संतान सुख विशेष पुत्रदा षष्ठी पूजा और गर्भ रक्षाम्बिका हवन

सनातन धर्म में कार्तिक मास का विशेष महत्व होता है, वहीं इस माह में आने वाले त्योहार भी अत्यंत फलदायी होते हैं। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को देश के कुछ हिस्सों में छठ पूजा मनाई जाती है, वहीं दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का प्रचलन है। दरअसल छठ पर्व पर सूर्यदेव की आराधना के साथ षष्ठी देवी के पूजन का विशेष महत्व है। हिंदू धर्म में भगवती षष्ठी देवी शिशुओं की देवी हैं। इन्हें छठ मैया भी कहते हैं, जो बच्चों के दाता और रक्षक के रूप में पूजी जाती है। यह वनस्पति एवं प्रजनन की देवी हैं और मान्यता है कि यह बच्चे के जन्म के दौरान सहायता करती हैं। षष्ठी देवी, मूल प्रकृति के छठे अंश से प्रकट हुई, तभी से इनका नाम षष्ठी देवी पड़ा। वहीं दक्षिण भारत में माता षष्ठी को भगवान कार्तिकेय की प्रियतमा यानि पहली पत्नी कहा गया है। लोग यहां माता षष्ठी को देवी देवसेना कहकर पुकारते हैं। माना जाता है कि जिन्हें संतान नहीं होती, उन्हें यह संतान प्राप्ति का आशीष देती है, संतान को दीर्घायु प्रदान करती है। बच्चों की रक्षा करना भी इनका स्वाभाविक गुण धर्म है।

भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदा वृद्धमाता के रुप में अप्रत्यक्ष रुप से विद्यमान रहती हैं। वह उनकी रक्षा करने के साथ उनका भरण-पोषण भी करती हैं। इनको प्रसन्न करने के लिए लोग कई तरह के अनुष्ठान करते हैं जिसमें पुत्रदा षष्ठी पूजा और गर्भ रक्षाम्बिका हवन भी शामिल है। जहां संतान की खुशहाली एवं रक्षा के लिए पुत्रदा षष्ठी पूजन किया जाता है। वहीं, गर्भ रक्षाम्बिका हवन का भी विशेष महत्व है। माँ गर्भ रक्षाम्बिका, जो कि देवी पार्वती का स्वरूप मानी जाती हैं, उनकी उपासना गर्भवती माताओं एवं शिशु की सुरक्षा हेतु की जाती है। विशेष रूप से दक्षिण भारत में माँ गर्भ रक्षाम्बिका की पूजा संतान प्राप्ति, सुरक्षित प्रसव और माँ तथा शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा हेतु अत्यधिक प्रचलित है। इसलिए कार्तिक माह के शुभ अवसर पर स्कंद षष्ठी के दिन तिरुनेलवेली के एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में पुत्रदा षष्ठी पूजा और गर्भ रक्षाम्बिका हवन का आयोजन किया जाएगा। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और बच्चों की सुरक्षा और कल्याण के आशीर्वाद के लिए माता षष्ठी से विशेष आशीर्वाद प्राप्त करें।

एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु

एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर, तिरुनेलवेली, तमिलनाडु
तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में स्थित एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर एक पूजनीय तीर्थस्थल है, जिसका आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है। 120 साल पहले प्रतिष्ठित ऋषि मायांडी सिद्धर द्वारा स्थापित यह मंदिर चिरस्थायी परंपरा और भक्ति का प्रमाण है। ऋषि मायांडी सिद्धर ने भगवान राम के गहन ध्यान और दर्शन के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया था। इस मंदिर से जुडी कई चमत्कारिक कथाओं के बारे में सुनने को मिलता है, जिनमें भगवान पेरुमल की मुख्य मूर्ति भी शामिल है, जिसे मूर्तिकला का कोई औपचारिक ज्ञान न रखने वाले एक साधारण व्यक्ति ने गढ़ा था। मंदिर में कई पवित्र मूर्तियाँ हैं, जिनमें शुद्ध स्पष्ट क्वार्ट्ज से बना उल्लेखनीय स्फटिक लिंगम भी शामिल है।

शास्त्रों के अनुसार, स्फटिक लिंगम की पूजा करने से भक्तों में आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान और शक्ति आती है, साथ ही चिंताएँ और नकारात्मक प्रभाव से भी राहत मिलता है। यह स्फटिक लिंगम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह ऋषिकेश के बाद भारत में सबसे बड़े स्फटिक लिंगम में से एक है। भक्तगण एट्टेलुथुपेरुमल मंदिर में भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान कार्तिकेय, भगवान शिव और भगवान हनुमान से आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं। मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं और जीवन में उन्हें सभी प्रयासों में सफलता मिलती है।

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