🪔संकष्टी चतुर्थी पर भगवान गणेश की पूजा क्यों है महत्वपूर्ण?
✨ क्या है उच्चिष्ट गणेश की कहानी?🙏
सनातन धर्म में संकष्टी चतुर्थी का अत्यंत महत्व है, इस तिथि के स्वामी गणेश जी हैं। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता माना जाता है, जिसका अर्थ है सभी बाधाओं और कठिनाइयों को दूर करने वाला। मान्यता है कि भगवान गणेश मूलाधार चक्र पर शासन करते हैं, जो परिवार, स्थिरता और धन से जुड़ा मूल चक्र है। यह दर्शाता है कि भगवान गणेश हमारे सुख शांति का मूल कारण हैं, जिनके आशीर्वाद के बिना कुछ संभव नहीं है। बात करें अगर मूलाधार चक्र की तो ये हमारे ऊर्जा तंत्र का आधार है। मूलाधार चक्र का जागरण जीवन में स्थिरता, संतुलन और ऊर्जा प्रवाह को सुनिश्चित करता है। यह चक्र दैवीय व दैत्य शक्तियों के बीच की सीमा का प्रतीक है। दैत्य लोक, जो मूलाधार चक्र के नीचे स्थित है और भू लोक में नकारात्मकता प्रवेश करने की चेष्टा करता है। जबकि देव लोक, सहस्रार चक्र के ऊपर स्थित है, जहाँ दिव्य ऊर्जा का निवास है। मूलाधार चक्र हमारी जड़ है, जहाँ कुंडलिनी शक्ति सुप्त अवस्था में निवास करती है। इस कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए उच्चिष्ट गणेश की उपासना की जाती है जो बाधाओं को दूर करते हैं और नकारात्मक शक्तियों को मूलाधार चक्र के नीचे सीमित रखते हैं।
उच्चिष्ट गणपति भगवान गणेश का एक तांत्रिक रूप हैं, जिनकी अराधना से अत्यंत लाभ होते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, विद्यावान नाम का एक राक्षस था जिसके आतंक से सभी परेशान थें। उसे केवल कोई ऐसा व्यक्ति मार सकता था जो न तो मानव हो और न ही पशु। भगवान गणेश ने यह शर्त तो पूरी की। लेकिन दूसरी शर्त यह थी कि राक्षस को केवल सोते समय ही मारा जा सकता था, ऋद्धि और सिद्धि इस कार्य में भाग लेने के लिए तैयार नहीं थीं। तब, सभी देवताओं और ऋषियों ने अथर्ववेद के मंत्रों के साथ एक यज्ञ किया। इस यज्ञ से देवी नील सरस्वती शक्ति के रूप में प्रकट हुईं। भगवान गणेश ने नील सरस्वती के साथ मिलकर राक्षस का वध किया। उस क्षण से, उच्चिष्ट गणपति के रूप में भगवान गणेश की पूजा शुरू हुई। इसलिए, भगवान गणेश को समर्पित संकष्टी चतुर्थी के शुभ दिन पर काशी के श्री चिंतामणि गणेश मंदिर में मूलाधार चक्र जागृति पूजन और उच्चिष्ट गणेश तंत्रयुक्त महायज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करें।