पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की खुशहाली के लिए श्राद्ध नवमी ज्योतिर्लिंग और नर्मदा घाट संयुक्त विशेष पितृ दोष शांति महापूजा एवं शिव रुद्राभिषेक
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श्राद्ध नवमी ज्योतिर्लिंग और नर्मदा घाट संयुक्त विशेष

पितृ दोष शांति महापूजा एवं शिव रुद्राभिषेक

पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की खुशहाली के लिए
temple venue
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं नर्मदा घाट, खंडवा, मध्य प्रदेश
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पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की खुशहाली के लिए श्राद्ध नवमी ज्योतिर्लिंग और नर्मदा घाट संयुक्त विशेष पितृ दोष शांति महापूजा एवं शिव रुद्राभिषेक

सनातन धर्म में पितृ पक्ष का विशेष महत्व है। यह समय पूर्वजों की आत्माओं की शांति के लिए की सबसे शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज पितृ लोक से धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से खुश होकर आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष की हर तिथि का अपना विशेष महत्व होता है, जिसमें से एक है श्राद्ध नवमी तिथि। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है, जिनका निधन किसी भी माह की नवमी तिथि को हुआ हो। हिंदु धर्म ग्रंथों के अनुसार 'पितृ दोष' पूर्वजों की अधूरी इच्छाओं और नकारात्मक कर्मों के कारण होता है। इस दौरान पूर्वजों को पिशाच योनि में कष्ट भोगने पड़ते हैं। पिशाच योनि एक ऐसी स्थिति है, जिसमें आत्मा अपने पिछले जन्मों के पापों और बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप एक निम्नतर अवस्था में फंसी रहती है और कष्ट सहती है। इस योनि में आत्मा तब तक रहती है जब तक इसे पुण्य कर्मों या आध्यात्मिक अनुष्ठानों के द्वारा मुक्त नहीं किया जाता। पितृ दोष के कारण आर्थिक परेशानियां, रिश्तों में तनाव, विवाद और स्वास्थ्य संबधी समस्याओं का सिलसिला लगा ही रहता है। मान्यता है कि पितृ दोष से मुक्ति और पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पितृ दोष शांति पूजा करनी चाहिए।

वहीं, गरुड़ पुराण के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान रुद्राभिषेक करने से भी पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। भगवान शिव परमपिता और महाकाल है। उनकी पूजा से हर प्रकार की अशांति और दोष को खत्म किया जा सकता है। भगवान शिव की पूजा के लिए कई तरह के अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें से एक है रुद्राभिषेक। रुद्राभिषेक का अर्थ है रुद्र रूपी शिवलिंग का मंत्रोच्चार के साथ पवित्र जल, दूध, शहद और अन्य सामग्रियों से स्नान कराना। यदि रुद्राभिषेक किसी ज्योतिर्लिंग में किया जाए तो इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। इसीलिए 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक और नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में शिव रुद्राभिषेक और पावन नर्मदा घाट पर पितृ दोष शांति पूजा आयोजन किया जा रहा है। इसके अलावा, पितृपक्ष में पूर्वजों के लिए दान पुण्य करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस समय दान करने से दोगुने फल की प्राप्ति होती है, जिनमें पितृ पक्ष विशेष पंच भोग, दीप दान भी शामिल है। इसलिए इस पूजा के साथ अतिरिक्त विकल्प के रूप में दिए गए जैसे पंच भोग, दीप दान एवं गंगा आरती का चुनाव करना आपके लिए फलदायी हो सकता है। इसलिए इस पूजा में इन विकल्पों को चुनकर अपनी पूजा को और भी अधिक प्रभावशाली बनाएं। अपने पूर्वजों की आत्माओं की शांति और परिवार की खुशहाली के लिए श्री मंदिर के माध्यम से इस पूजा में भाग लें और भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करें।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं नर्मदा घाट, खंडवा, मध्य प्रदेश

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर एवं नर्मदा घाट, खंडवा, मध्य प्रदेश
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, इन्हें स्वयंभू लिंग माना जाता है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नाम के द्वीप पर स्थित है। यहां ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप में मौजूद है। जिनमें से एक को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है। अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही की जाती है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। मान्यता है कि मां नर्मदा भी यहां स्वयं ॐ के आकार में बहती हैं। शास्त्रों के अनुसार ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुराणों में स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख है।

पौराणिक कथा के अनुसार, भोलेनाथ तीनों लोकों के भ्रमण के बाद यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं। कहते हैं पृथ्वी पर ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज चौसर पांसे खेलते हैं। रात्रि में शयन आरती के बाद यहां प्रतिदिन चौपड़ बिछाए जाते हैं और गर्भग्रह बंद कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात है कि जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है वहां हर दिन चौपड़ बिखरे पाए जाते हैं। यह तथ्य इस मंदिर के धार्मिक महत्व को और बढा देता है यही कारण है कि सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन विशेष महत्व है। तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओमकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं अन्यथा वे अधूरे ही माने जाते हैं।

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