ऋण मुक्ति एवं धन की प्रचुरता के लिए ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग विशेष ऋण मुक्ति शिव हवन और रुद्राभिषेक
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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग विशेष

ऋण मुक्ति शिव हवन और रुद्राभिषेक

ऋण मुक्ति एवं धन की प्रचुरता के लिए
temple venue
श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर , खंडवा, मध्य प्रदेश
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ऋण मुक्ति एवं धन की प्रचुरता के लिए ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग विशेष ऋण मुक्ति शिव हवन और रुद्राभिषेक

भगवान शिव को अत्यंत उदार देवता माना जाता है इसलिए उन्हें प्रसन्न करना बहुत आसान है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में ऋण मुक्ति शिव हवन के साथ रुद्राभिषेक करने से व्यक्ति को धन-धान्य की प्राप्ति होती है और भगवान शिव कर्ज मुक्ति और धन संचय का आशीष देते हैं। पौराणिक कथा के अनुसार, धन के देवता कुबेर भगवान शिव के परम भक्त थे। कुबेर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस ज्योतिर्लिंग में कठोर तपस्या की। इसके लिए उन्होंने यहां एक शिवलिंग स्थापित किया। भगवान शिव कुबेर की भक्ति से प्रसन्न हुए एवं कुबेर को देवताओं का धनपति बना दिया।

इसके अलावा भगवान शिव ने कुबेर के स्नान के लिए अपनी जटा से कावेरी नदी उत्पन्न की जो कि नर्मदा में जाकर मिलती है। यहां पर कावेरी ओमकार पर्वत का चक्कर लगते हुए संगम पर वापस नर्मदा से मिलती है। जिसे नर्मदा और कावेरी का संगम कहा जाता है। वहीं शिव पुराण में कहा गया है कि अगर कोई व्यक्ति कर्ज से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहा है, EMI चुकाने में सक्षम नहीं है तो सोमवार के दिन भगवान शिव का रुद्राभिषेक करना अत्यंत फलदायी साबित होता है। इसलिए, सोमवार को ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में होने वाले ऋण मुक्ति शिव हवन एवं रुद्राभिषेक में श्री मंदिर के माध्यम से भाग लें और भोलेनाथ से ऋण मुक्ति एवं धन की प्रचुरता का आशीष पाएं।

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ,खंडवा, मध्य प्रदेश

श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर ,खंडवा, मध्य प्रदेश
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से चौथा ज्योतिर्लिंग है श्री ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, इन्हें स्वयंभू लिंग माना जाता है। यह मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के बीच मन्धाता या शिवपुरी नाम के द्वीप पर स्थित है। यहां ज्योतिर्लिंग दो स्वरूप में मौजूद है। जिनमें से एक को ममलेश्वर के नाम से और दूसरे को ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। ममलेश्वर नर्मदा के दक्षिण तट पर ओंकारेश्वर से थोड़ी दूर स्थित है। अलग होते हुए भी इनकी गणना एक ही की जाती है। ओमकार का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। मान्यता है कि मां नर्मदा भी यहां स्वयं ॐ के आकार में बहती हैं। शास्त्रों के अनुसार ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। पुराणों में स्कन्द पुराण, शिवपुराण व वायुपुराण में ओम्कारेश्वर क्षेत्र की महिमा का उल्लेख है।

पौराणिक कथा के अनुसार भोलेनाथ तीनों लोकों के भ्रमण के बाद यहां रात्रि में शयन के लिए आते हैं। कहते हैं पृथ्वी पर ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां शिव-पार्वती रोज चौसर पांसे खेलते हैं। रात्रि में शयन आरती के बाद यहां प्रतिदिन चौपड़ बिछाए जाते हैं और गर्भग्रह बंद कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात है कि जिस मंदिर के भीतर रात के समय परिंदा भी पर नहीं मार पाता है वहां हर दिन चौपड़ बिखरे पाए जाते हैं। यह तथ्य इस मंदिर के धार्मिक महत्व को और बढा देता है यही कारण है कि सभी तीर्थों के दर्शन पश्चात ओंकारेश्वर के दर्शन व पूजन विशेष महत्व है। तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओमकारेश्वर में अर्पित करते हैं, तभी सारे तीर्थ पूर्ण माने जाते हैं अन्यथा वे अधूरे ही माने जाते हैं।

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